समाजवादी मुहब्बत का पहला खत.... (हास्य) डियर इनबॉक्स वाली लड़की !
ये जो साल भर से आप रोज इनबॉक्स में मैसेज करतीं हैं- 'गुडनाईट'।तो मैं क्या लिखूं! इधर से मैं भी लिख देता हूँ - शुभरात्रि।उधर दिल में अधूरे अरमान लिए आप सो जाती होंगी और इधर बेचैनी के आलम में मैं।इसके आगे न कभी आप बढ़ती हैं न मैं।
आप भी सोचती होंगी कि कहां पत्थर पर दूब जमा रही हूँ। या फिर मैं आपके जज्बात नहीं समझता। है न?
लेकिन ऐसा नहीं है। हम सब समझते हैं। लेकिन क्या करें अस्पताल में भावनाओं की कीमत नहीं होती और यूपी में दिल की। हम भी किसी से मुहब्बत करेंगे यही सोचते सोचते तो सर के कुछ बाल भी अब 'समाजवादी रंग' पकड़ने लगे हैं।
आप क्या जानिएगा 'समाजवादी मुहब्बत' ऐसी ही होती है, सबसे अलग चुपचाप बस अपनी धुन में। बहुत मासूम सी लजीली सकुचाती हुई सी। आंखों में लाज भरे सड़क पर किनारे किनारे चलती हुई।मैं जानता हूँ जब आप आइने के सामने खड़ी होकर दुपट्टे को उंगलियों में लपेटते हुए मेरे बारे में सोचती होंगी तो आपका दिल कहता होगा - का असित बाबू! आप तो इनबॉक्स में मैसेज का जवाब भी नहीं देते। भला ऐसी भी क्या बेरुखी? सीने में दिल है भी कि नहीं?
कसम से रोना आता है यार आपके इस मासूम सवाल पर। कमबख्त ये भी नहीं जानती कि यूपी में अठारह साल से लेकर चालीस साल तक सीने में दिल होता ही नहीं।यूपी का लड़का अठारह का होते ही बुक स्टालों पर पांच दस रुपये में बिकने वाली नेवी आर्मी सीआरपीएफ टाईप सफेद पन्नों से दिल लगा लेता है।और कॉम्पिटीशन बुक्स के उतार-चढ़ाव में खोया रहता है। तीन-चार सालों बाद जब इन सफेद पन्नों की सफेदी बालों पर उतरने लगती है तो बीटेक या बी एड् रुपी नायिका से मुहब्बत कर बैठता है यह जानते हुए कि ये भी पक्का बेवफाई ही करेगी। लेकिन करे क्या - दिल के बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।जब तक वो बीटेक् और बीएड की डिग्री हासिल करता है तब तक गांव वाले उसका नाम 'इन्जीनियर साहेब' और 'मास्टर साहेब' रख चुके होते हैं। मतलब यह समाजवादी मुहब्बत का फ्रस्ट्रेशन काल होता है। इसमें पदनाम तो मिल जाता है कमबख्त पद ही नहीं मिलता।फ्रस्ट्रेशन के इस गम को गलत करने के लिए बीटेक् वाला फेसबुक पर आकर 'एंजिलप्रिया' बनता है, और बीएड वाला ग्रुपों का 'एडमिन' बन कर इनविटेशन भेजता है।
समाजवादी लैपटॉप पर चलने वाली उंगलियों पर लगे ललके नेलपालिश को निहारते हुए सुग्गे जैसे लाल होठों से जैसे फूल झरते हैं - बी ए लास्ट ईयर में हैं हम।
लड़के के फार्म भरे हुए दिमाग में तुरंत नर्सिंग का त्रिवर्षीय कोर्स या बी टी सी का द्विवर्षीय कोर्स दौड़ने लगता है। और अगले दिन से 'लछिमी' नीले सलवार सूट पर सफेद रंग का कोट डाले या तो नर्सिंग सीख रही होती हैं, या बीटीसी कर रही होती हैं। और लडके का दिल एक बार फिर फार्म-फार्म खेलने लगता है। अब तक अपने लिए फार्म भरता था अब लछिमी के लिए भरता है ...
यही हमारी समाजवादी मुहब्बत की दास्तान है इनबॉक्स वाली लड़की। बस इतना ही समझ लो कि इस जनम में प्यार कैंसिल है। अगले जनम में किसी और प्रदेश में जनम लिए तो तुम्हारे इस स्माइली का जवाब देंगे - वो भी मुस्कुरा के :)
साभार असित कुमार मिश्र
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ये जो साल भर से आप रोज इनबॉक्स में मैसेज करतीं हैं- 'गुडनाईट'।तो मैं क्या लिखूं! इधर से मैं भी लिख देता हूँ - शुभरात्रि।उधर दिल में अधूरे अरमान लिए आप सो जाती होंगी और इधर बेचैनी के आलम में मैं।इसके आगे न कभी आप बढ़ती हैं न मैं।
आप भी सोचती होंगी कि कहां पत्थर पर दूब जमा रही हूँ। या फिर मैं आपके जज्बात नहीं समझता। है न?
लेकिन ऐसा नहीं है। हम सब समझते हैं। लेकिन क्या करें अस्पताल में भावनाओं की कीमत नहीं होती और यूपी में दिल की। हम भी किसी से मुहब्बत करेंगे यही सोचते सोचते तो सर के कुछ बाल भी अब 'समाजवादी रंग' पकड़ने लगे हैं।
आप क्या जानिएगा 'समाजवादी मुहब्बत' ऐसी ही होती है, सबसे अलग चुपचाप बस अपनी धुन में। बहुत मासूम सी लजीली सकुचाती हुई सी। आंखों में लाज भरे सड़क पर किनारे किनारे चलती हुई।मैं जानता हूँ जब आप आइने के सामने खड़ी होकर दुपट्टे को उंगलियों में लपेटते हुए मेरे बारे में सोचती होंगी तो आपका दिल कहता होगा - का असित बाबू! आप तो इनबॉक्स में मैसेज का जवाब भी नहीं देते। भला ऐसी भी क्या बेरुखी? सीने में दिल है भी कि नहीं?
कसम से रोना आता है यार आपके इस मासूम सवाल पर। कमबख्त ये भी नहीं जानती कि यूपी में अठारह साल से लेकर चालीस साल तक सीने में दिल होता ही नहीं।यूपी का लड़का अठारह का होते ही बुक स्टालों पर पांच दस रुपये में बिकने वाली नेवी आर्मी सीआरपीएफ टाईप सफेद पन्नों से दिल लगा लेता है।और कॉम्पिटीशन बुक्स के उतार-चढ़ाव में खोया रहता है। तीन-चार सालों बाद जब इन सफेद पन्नों की सफेदी बालों पर उतरने लगती है तो बीटेक या बी एड् रुपी नायिका से मुहब्बत कर बैठता है यह जानते हुए कि ये भी पक्का बेवफाई ही करेगी। लेकिन करे क्या - दिल के बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।जब तक वो बीटेक् और बीएड की डिग्री हासिल करता है तब तक गांव वाले उसका नाम 'इन्जीनियर साहेब' और 'मास्टर साहेब' रख चुके होते हैं। मतलब यह समाजवादी मुहब्बत का फ्रस्ट्रेशन काल होता है। इसमें पदनाम तो मिल जाता है कमबख्त पद ही नहीं मिलता।फ्रस्ट्रेशन के इस गम को गलत करने के लिए बीटेक् वाला फेसबुक पर आकर 'एंजिलप्रिया' बनता है, और बीएड वाला ग्रुपों का 'एडमिन' बन कर इनविटेशन भेजता है।
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समाजवादी लैपटॉप पर चलने वाली उंगलियों पर लगे ललके नेलपालिश को निहारते हुए सुग्गे जैसे लाल होठों से जैसे फूल झरते हैं - बी ए लास्ट ईयर में हैं हम।
लड़के के फार्म भरे हुए दिमाग में तुरंत नर्सिंग का त्रिवर्षीय कोर्स या बी टी सी का द्विवर्षीय कोर्स दौड़ने लगता है। और अगले दिन से 'लछिमी' नीले सलवार सूट पर सफेद रंग का कोट डाले या तो नर्सिंग सीख रही होती हैं, या बीटीसी कर रही होती हैं। और लडके का दिल एक बार फिर फार्म-फार्म खेलने लगता है। अब तक अपने लिए फार्म भरता था अब लछिमी के लिए भरता है ...
यही हमारी समाजवादी मुहब्बत की दास्तान है इनबॉक्स वाली लड़की। बस इतना ही समझ लो कि इस जनम में प्यार कैंसिल है। अगले जनम में किसी और प्रदेश में जनम लिए तो तुम्हारे इस स्माइली का जवाब देंगे - वो भी मुस्कुरा के :)
साभार असित कुमार मिश्र
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