भर्ती आयोगों के अध्यक्षों को भाजपा सरकार राजनीतिक शिष्टाचार का पाठ पढ़वाकर ही मानी। सरकार की मंशा भांपकर सबसे पहले अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष ने पद छोड़ा।
प्रतियोगियों को साधा और आयोग अध्यक्ष व सदस्यों पर शिकंजा कस दिया है। 1प्रदेश में अधिकारी-कर्मचारी सहित, शिक्षक व प्राचार्य आदि के चयन के लिए मुख्य रूप से चार भर्ती आयोग कार्यरत हैं। इन आयोगों से सरकारी व सहायता प्राप्त संस्थाओं के लिए चयन होता है। आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों को भले ही पारदर्शी तरीके से नियुक्तियां करने का निर्देश है, लेकिन इन पदों पर सरकार के चहेतों को ही तैनाती मिलती आ रही है। इसीलिए सत्ता बदलने पर राजनीतिक शिष्टाचार के तहत अध्यक्ष व सदस्य पद छोड़ देते हैं। बीते मार्च माह में प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई भाजपा सरकार ने आते ही सबसे पहले आयोगों पर शिकंजा कसा। सभी जगह पर नियुक्तियां, साक्षात्कार व परीक्षा परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी गई। सरकार के जिम्मेदारों ने आयोगों के अध्यक्षों को खुले तौर पर संदेश दिया कि वे राजनीतिक शिष्टाचार का पालन करें। इसीलिए भर्तियां रुकने के दौरान ही आयोग अध्यक्षों के इस्तीफे की खूब चर्चा होती रही। सबसे पहले छह अप्रैल को अधीनस्थ सेवा चयन आयोग लखनऊ के अध्यक्ष राजकिशोर यादव ने इस्तीफा सौंप दिया। सरकार अब अधीनस्थ आयोग का पुनर्गठन करने जा रही है। ऐसा ही संदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग उप्र के अध्यक्षों को भी दिया गया, लेकिन वह पद छोड़ने को तैयार नहीं थे, बल्कि चयन बोर्ड अध्यक्ष ने तो लंबित परीक्षा परिणाम जारी करना शुरू कर दिया। इस पर सरकार ने दोनों आयोगों के विलय की योजना बनाकर उसे लागू करने का निर्देश दिया। यही नहीं दोनों आयोगों को शासन ने पत्र भेजकर विलय के बारे में प्रस्ताव तक मांगा। यह सरकार की ओर से दूसरा बड़ा संदेश था, उसकी भी अनदेखी होने पर शासन ने आयोगों के विलय की दो कमेटियां बनाकर प्रक्रिया आगे बढ़ा दी। साथ ही अगस्त माह में ही नया आयोग अमल में लाने की तैयारी शुरू हो गई। तब उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष ने इस्तीफा दिया और माध्यमिक के अध्यक्ष अगले हफ्ते यह औपचारिकता निभाएंगे। उप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य अभी पद पर बरकरार हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यूपीपीएससी संवैधानिक इकाई है। वहां भी साक्षात्कार का कार्यक्रम घोषित हो चुका है। इसी बीच सरकार ने आयोग के भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतों का संज्ञान लेकर जांच शुरू कराने की दिशा में बढ़ चली है। इसके पहले यहां के सचिव और लंबे समय से जमे परीक्षा नियंत्रक को हटाया जा चुका है।1’>>विलय के दांव से दो और आयोगों के अध्यक्ष इस्तीफे को विवश1’>>यूपीपीएससी पर सीबीआइ ने कस दिया है शिकंजा
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
- क्या कर सकती है सरकार शिक्षामित्रों के लिए: पढ़ें एक नजर में
- टीम संघ सुप्रीम कोर्ट एक्सलूसिव अपडेट जजमेंट 25 जुलाई 2017 समीक्षा: ओम नारायण तिवारी
- यूपी में लड़ने-मरने को तैयार शिक्षामित्रों से योगी सरकार की अपील , संयम बनाए रखें
- विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों का अवकाश स्वीकृत न करने, 100% उपस्थित सुनिश्चित करने के संबंध में आदेश जारी
- सहायक अध्यापक के पद से हटना मंजूर नहीं, और बिल लाकर TET से छूट देकर सरकार करे भर्ती, अपर मुख्य सचिव से हुई वार्ता में शिक्षामित्रों ने रखी अपनी बात
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए 07-12-12 के विज्ञापन से भर्ती प्रक्रिया शुरू कराने के सम्बन्ध में
प्रतियोगियों को साधा और आयोग अध्यक्ष व सदस्यों पर शिकंजा कस दिया है। 1प्रदेश में अधिकारी-कर्मचारी सहित, शिक्षक व प्राचार्य आदि के चयन के लिए मुख्य रूप से चार भर्ती आयोग कार्यरत हैं। इन आयोगों से सरकारी व सहायता प्राप्त संस्थाओं के लिए चयन होता है। आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों को भले ही पारदर्शी तरीके से नियुक्तियां करने का निर्देश है, लेकिन इन पदों पर सरकार के चहेतों को ही तैनाती मिलती आ रही है। इसीलिए सत्ता बदलने पर राजनीतिक शिष्टाचार के तहत अध्यक्ष व सदस्य पद छोड़ देते हैं। बीते मार्च माह में प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई भाजपा सरकार ने आते ही सबसे पहले आयोगों पर शिकंजा कसा। सभी जगह पर नियुक्तियां, साक्षात्कार व परीक्षा परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी गई। सरकार के जिम्मेदारों ने आयोगों के अध्यक्षों को खुले तौर पर संदेश दिया कि वे राजनीतिक शिष्टाचार का पालन करें। इसीलिए भर्तियां रुकने के दौरान ही आयोग अध्यक्षों के इस्तीफे की खूब चर्चा होती रही। सबसे पहले छह अप्रैल को अधीनस्थ सेवा चयन आयोग लखनऊ के अध्यक्ष राजकिशोर यादव ने इस्तीफा सौंप दिया। सरकार अब अधीनस्थ आयोग का पुनर्गठन करने जा रही है। ऐसा ही संदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग उप्र के अध्यक्षों को भी दिया गया, लेकिन वह पद छोड़ने को तैयार नहीं थे, बल्कि चयन बोर्ड अध्यक्ष ने तो लंबित परीक्षा परिणाम जारी करना शुरू कर दिया। इस पर सरकार ने दोनों आयोगों के विलय की योजना बनाकर उसे लागू करने का निर्देश दिया। यही नहीं दोनों आयोगों को शासन ने पत्र भेजकर विलय के बारे में प्रस्ताव तक मांगा। यह सरकार की ओर से दूसरा बड़ा संदेश था, उसकी भी अनदेखी होने पर शासन ने आयोगों के विलय की दो कमेटियां बनाकर प्रक्रिया आगे बढ़ा दी। साथ ही अगस्त माह में ही नया आयोग अमल में लाने की तैयारी शुरू हो गई। तब उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष ने इस्तीफा दिया और माध्यमिक के अध्यक्ष अगले हफ्ते यह औपचारिकता निभाएंगे। उप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य अभी पद पर बरकरार हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यूपीपीएससी संवैधानिक इकाई है। वहां भी साक्षात्कार का कार्यक्रम घोषित हो चुका है। इसी बीच सरकार ने आयोग के भ्रष्टाचार की गंभीर शिकायतों का संज्ञान लेकर जांच शुरू कराने की दिशा में बढ़ चली है। इसके पहले यहां के सचिव और लंबे समय से जमे परीक्षा नियंत्रक को हटाया जा चुका है।1’>>विलय के दांव से दो और आयोगों के अध्यक्ष इस्तीफे को विवश1’>>यूपीपीएससी पर सीबीआइ ने कस दिया है शिकंजा
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