परिषदीय विद्यालयों में अब हर वर्ष टेट की तरह परीक्षा करवाकर शिक्षकों की परखी जाएगी दक्षता-योग्यता।
उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत कानून तैयार करने के मूड में,
न्याय विभाग व अधिकारियों के बीच चल रहा है मंथन।
अब आसान नही है बेसिक स्कूलों में शिक्षकों को मौजमस्ती करना,
अब टीचरों को पठन-पाठन के साथ तय करना होगा नौकरी का सफर,
उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत बेसिक स्कूलों में गुणवत्ता बरकरार रहे जिसके लिए एक कानून पारित करने के मूड में पूरी तरह दिख रही है। 6-14 वर्ष के बच्चों की बुनियादी शिक्षा मजबूती पर जोर देने के साथ - साथ इन स्कूलों में अध्यापन का कार्य कर रहे टीचरों की दक्षता और योग्यता परखने के लिए तैयारी पूरी कर चुकी है। अब हर वर्ष कक्षा 1 से 8 तक के तैनात अध्यापकों को टेट जैसी योग्यता परीक्षा को हर वर्ष पास करना होगा। टीचर किस कक्षा में अध्यापन कार्य करने लायक है जिसके लिए टेट की तर्ज पर 100 अंकों की परीक्षा शैक्षिक सत्र के जून महीने में पास करने के बाद ही अंक देकर तय हो सकेगा। इस परीक्षा को पास करने के लिए 100 में 60 अंक प्राप्त करने वाले टीचर को योग्य माना जाएगा। 45 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले शिक्षक को भी सामान्य शिक्षक की श्रेणी में गिना जाएगा। इससे कम अंक प्राप्त करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंन्त्री,बेसिक शिक्षा मंत्री और बेसिक शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों के बीच विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है। जिसका प्रस्ताव भी तैयार किया जा चुका है।
यह प्रस्ताव पूर्व की सरकारों ने कई बार तैयार करने की जहमत उठाई तो शिक्षक संगठनों के विरोध दर्ज कराने के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। ज्ञात हो कि बेसिक शिक्षा मंत्री किरन पाल सिंह व अधिकारियों के बीच प्रस्ताव बनाकर शिक्षकों की दक्षता को परखने की कवायद पर टीचरों के संगठनों की ओर से सड़कों पर उतरने को लेकर सरकार को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। चूँकि आर टी एक्ट के तहत एक मामले को कानून नही बनाया जा सका था। तब से अब तक का सफर टीचरों के लिए राहत भरा रहा है। अब स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों को मजबूरन इस कानून का पालन कर अपनी दक्षता और योग्यता की पहचान दर्ज करानी ही पड़ेगी। मामला कानून के दायरे किया जा रहा जिससे शिक्षक संगठन चाह कर भी इसका विरोध नही कर सकते हैं। अधिकारियों की राय है कि यदि यह कानून लागू होता है तो बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार में ऐतिहासिक कदम होगा। सरकार की मंशा है कि इस कार्यक्रम की शुरुआत अगले सत्र 2018 तक हर हाल में लागू किया जा सके जिसके लिए अभी से तैयारी तेज कर दी गई है।।
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उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत कानून तैयार करने के मूड में,
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- चीन और पाकिस्तान से मदद मांग रहा ये शिक्षामित्र!
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न्याय विभाग व अधिकारियों के बीच चल रहा है मंथन।
अब आसान नही है बेसिक स्कूलों में शिक्षकों को मौजमस्ती करना,
अब टीचरों को पठन-पाठन के साथ तय करना होगा नौकरी का सफर,
उत्तर प्रदेश सरकार शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत बेसिक स्कूलों में गुणवत्ता बरकरार रहे जिसके लिए एक कानून पारित करने के मूड में पूरी तरह दिख रही है। 6-14 वर्ष के बच्चों की बुनियादी शिक्षा मजबूती पर जोर देने के साथ - साथ इन स्कूलों में अध्यापन का कार्य कर रहे टीचरों की दक्षता और योग्यता परखने के लिए तैयारी पूरी कर चुकी है। अब हर वर्ष कक्षा 1 से 8 तक के तैनात अध्यापकों को टेट जैसी योग्यता परीक्षा को हर वर्ष पास करना होगा। टीचर किस कक्षा में अध्यापन कार्य करने लायक है जिसके लिए टेट की तर्ज पर 100 अंकों की परीक्षा शैक्षिक सत्र के जून महीने में पास करने के बाद ही अंक देकर तय हो सकेगा। इस परीक्षा को पास करने के लिए 100 में 60 अंक प्राप्त करने वाले टीचर को योग्य माना जाएगा। 45 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले शिक्षक को भी सामान्य शिक्षक की श्रेणी में गिना जाएगा। इससे कम अंक प्राप्त करने वालों को सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंन्त्री,बेसिक शिक्षा मंत्री और बेसिक शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों के बीच विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है। जिसका प्रस्ताव भी तैयार किया जा चुका है।
यह प्रस्ताव पूर्व की सरकारों ने कई बार तैयार करने की जहमत उठाई तो शिक्षक संगठनों के विरोध दर्ज कराने के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। ज्ञात हो कि बेसिक शिक्षा मंत्री किरन पाल सिंह व अधिकारियों के बीच प्रस्ताव बनाकर शिक्षकों की दक्षता को परखने की कवायद पर टीचरों के संगठनों की ओर से सड़कों पर उतरने को लेकर सरकार को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था। चूँकि आर टी एक्ट के तहत एक मामले को कानून नही बनाया जा सका था। तब से अब तक का सफर टीचरों के लिए राहत भरा रहा है। अब स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों को मजबूरन इस कानून का पालन कर अपनी दक्षता और योग्यता की पहचान दर्ज करानी ही पड़ेगी। मामला कानून के दायरे किया जा रहा जिससे शिक्षक संगठन चाह कर भी इसका विरोध नही कर सकते हैं। अधिकारियों की राय है कि यदि यह कानून लागू होता है तो बेसिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार में ऐतिहासिक कदम होगा। सरकार की मंशा है कि इस कार्यक्रम की शुरुआत अगले सत्र 2018 तक हर हाल में लागू किया जा सके जिसके लिए अभी से तैयारी तेज कर दी गई है।।
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