इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग से पांच साल (एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017) में हुई सभी भर्तियों की सीबीआइ जांच के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकार और सीबीआइ से एक सप्ताह में जवाब मांगा है।
कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ प्रारंभिक जांच कर सकती है लेकिन, आयोग के सदस्यों को समन देकर
पूछताछ न करे। कोर्ट ने अगली सुनवाई 18 जनवरी को तय की है। हालांकि भारत सरकार के सहायक सॉलीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश ने सीबीआइ की तरफ से इस आशय का आश्वासन भी दिया।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उप्र लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की तरफ से दाखिल याचिका पर दिया है। याची के वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन का कहना है कि उप्र लोकसेवा आयोग संवैधानिक संस्था है जिसकी जांच नहीं कराई जा सकती। राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि 31 जुलाई 2017 के आदेश को याचिका में चुनौती नहीं दी गई है। राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने 21 नवंबर को सीबीआइ जांच की अधिसूचना जारी की है। कोर्ट ने याची को संशोधन अर्जी के माध्यम से 31 जुलाई के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने की भी छूट दी है। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि सीबीआइ जांच की संस्तुति भेजने के लिए उसके पास क्या तथ्य हैं? पूर्व राज्यपाल जेएफ रिबेरो व अन्य की जनहित याचिका निस्तारित होने के बाद वर्तमान याचिका में उनकी तरफ से अर्जी दी गई है। आलोक मिश्र व सतीश चतुर्वेदी ने भी रखने की अनुमति मांगी। भारत सरकार की तरफ से विनय कुमार सिंह ने भी पक्ष रखा।
सीबीआइ जांच करेगी या विवेचना
कोर्ट ने जानना चाहा कि सीबीआइ जांच करेगी या विवेचना। यदि विवेचना करेगी तो प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ्तारी भी कर सकती है। इस पर अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि सीबीआइ प्रारंभिक जांच फिर प्राथमिकी दर्ज कर विवेचना करेगी। कोर्ट ने कहा कि सीबीआइ जांच कर सकती है लेकिन, वह आयोग सदस्यों को समन कर पूछताछ नहीं करे।
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