रांची : गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु
आपने, गोविंद दियो बताय। यह पंक्ति है तो कबीरदास की, लेकिन गुरु की महिमा
से शास्त्र भरे पड़े हैं। हर धर्म में उनकी महिमा का बखान किया गया है।
सबने गुरु को लगभग भगवान का दर्जा दिया है।
कारण साफ है कि जन्म भले भगवान
की देन हो, लेकिन दुनियादारी और भगवान की समझ गुरु से ही मिलती रही है।
गुरु पूर्णिमा के दिन इस पंक्ति का अर्थ और महत्व और बढ़ जाता है, लेकिन
आपको यह जानकर गहरा धक्का लगेगा कि कभी दुनियादारी से लेकर भगवान तक का
ज्ञान दिलाने वाले गुरुओं की अब हालत यह हो गई है कि आरक्षित पद रहने के
बावजूद परीक्षा में खुद पास होने लायक न्यूनतम अंक नहीं ला पा रहे हैं।
मसला है राज्य के हाई स्कूलों में कम से कम तीन साल से पढ़ा रहे गुरुओं का।
सरकार ने प्लस टू स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया
शुरू कराई है। 10 विषयों में 2800 स्नातकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षकों के लिए
नियुक्ति होनी है। इनमें 50 फीसद पद (1400) हाई स्कूलों में कम से कम तीन
साल से पढ़ा रहे शिक्षकों के लिए आरक्षित रखे गए। शेष पर खुली नियुक्ति
होनी है। परीक्षा को पास करने के लिए 50 फीसद न्यूनतम अंक निर्धारित किए गए
थे। नियुक्ति के लिए जब प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन किया गया तो इसमें
शामिल अधिकांश शिक्षक फेल हो गए। विस्तृत परीक्षा परिणाम और चौंकाने वाला
है। किसी विषय में एक ही शिक्षक तो किसी में छह पास हो सके। भौतिकी विज्ञान
में एक भी शिक्षक परीक्षा पास करने लायक न्यूनतम 50 फीसद अंक नहीं ला सका।
कुल 1400 पदों के लिए हुई परीक्षा में मात्र 136 गुरुजी को पास होने लायक
न्यूनतम अंक मिल सका। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा अभी तक जारी 10
विषयों के परिणाम में गणित में 140 पदों के विरुद्ध मात्र एक शिक्षक
परीक्षा पास कर सके। रसायन विज्ञान में तीन तथा जीव विज्ञान में छह शिक्षक
पास हो सके। अन्य विषयों में भी शिक्षकों के लिए आरक्षित पदों के विरुद्ध
बहुत कम शिक्षक उत्तीर्ण हो सके।