लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने 68 हजार 5०० शिक्षक भर्ती मामले में पासिंग मार्क बढ़ाये जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर अहम फैसला देते हुए कहा है कि वर्ष 2०18 के शासनादेश के तहत 4० एवं 45 प्रतिशत पासिंग माक्र्स पर सात माह में रिजल्ट घोषित करें।
अदालत ने सात जनवरी को जारी शासनादेश रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने याची मौहम्मद रिज़वान और कई अन्य की ओर से दायर याचिकाओ पर शुक्रवार को यह आदेश दिए। याची गणों की ओर से अधिवक्ता अमित सिंह भदौरिया ने बताया कि अदालत ने भर्ती के समय पहले से वर्ष 2०18 में तय किये गए नियम कायदों के अनुसार पासिंग माक्र्स का औसत 4० प्रतिशत एवं 45 प्रतिशत ही तय किया है। कहा गया कि बाद में सात जनवरी 2०19 के शासनादेश से इस भर्ती में पासिंग माक्र्स बढ़ाकर 6० एवं 65 प्रतिशत कर दिए थे। सुनवाई के समय राज्य सरकार की ओर से कहा गया था कि बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने क्वालिफाइंग अंको में बढ़ोत्तरी की है। सरकार की ओर से अधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार स्वयं ऐसे कार्य कर रही है, जिससे बच्चो की शिक्षा एवं पढ़ाई बहुत अच्छी हो सके और स्कूलों को योग्य शिक्षक मिले। याचिका दायर कर सरकार द्वारा सहायक शिक्षकों की भर्ती में पैसठ एवं साठ प्रतिशत पासिंग अंक (क्वालीफायग ) किए जाने के शासनादेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि यह शासनादेश शिक्षामित्रों के हितों के खिलाफ है। क्योकि शिक्षा मित्र 6० एवं 65 प्रतिशत क्वालीफाईग माक्र्स नहीं ला सकेंगे। याचिका का कड़ा विरोध कर राज्य सरकार की ओर से विशेष अधिवक्ता की दलील थी कि शिक्षा को उन्नत और उच्च श्रेणी का बनाने के लिए एवं शिक्षा को बेहतर बनाने के उद्देश्य से सात जनवरी को जारी शासनादेश उचित है। सुनवाई के समय यह भी कहा गया कि गत 25 जुलाई 2०17 को उच्चतम न्यायालय ने शिक्षामित्रों को दो अवसर दिए जाने के आदेश दिए थे। दोनो तरफ की बहस एसं सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया था।
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