आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई जवां तो दिखना चाहता है, लेकिन जीवनशैली में परिवर्तन के चलते जिम में जाकर पसीना बहाना हर किसी के बस की बात नहीं है। ऐसे में आप योग का सहारा लेकर घर पर ही अभ्यास कर अपनी जवां दिखने की ख्वाहिश को पूरा कर सकते हैं।
बस जरूरत है आपको हलासन करने की।
खास बात यह है कि इस आसन में शरीर का आकार खेत में चलाए जाने वाले हल के समान हो जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हलासन से हमारी रीढ़ सदा जवान बनी रहती है। मेरुदंड संबंधी नाइड़ियों के स्वस्थ रहने से वृद्धावस्था के लक्षण जल्दी नहीं आते हैं। अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, दमा, सिरदर्द, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं। लीवर और प्लीहा बढ़ गए हो तो हलासन से सामान्यावस्था में आ जाते हैं।

इस तरह करें आसन
1.सबसे पहले शवासन की अवस्था में जमीन पर लेट जाएं। एड़ी और पंजों को मिला लें। हाथों की हथेलियों को जमीन पर रखकर कोहनियों को कमर से सटाए रखें।
2.श्वास को सुविधानुसार बाहर निकाल दें। फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटाते हुए पहले 60 फिर 90 डिग्री के कोण तक एक साथ धीरे-धीरे भूमि से ऊपर उठाते जाएं। घुटना सीधा रखते हुए पैर पूरे ऊपर 90 डिग्री के कोण में आकाश की ओर उठाएं।
3.हथेलियों को जमीन पर दबाते हुए हथेलियों के सहारे नितंबों को उठाते हुए पैरों को पीछे सिर की ओर झुकाते हुए पंजों को जमीन पर रख दें।
4.अब दोनों हाथों के पंजों की संधि कर सिर से लगाएं। फिर सिर को हथेलियों से थोड़ा सा दबाएं, जिससे आपके पैर और पीछे की ओर खसक जाएंगे।
5.वापस से एक बार शवासन में लौट आएं अर्थात पहले हाथों की संधि खोलकर वापस से हथेलियों के बल पर 90 और फिर 60 डिग्री में पैरों को लाते हुए जमीन पर टिका दें। इस तरह से रोजाना अभ्यास करने से धीरे-धीरे आपको फायदा नजर आने लगेगा।
आसन करते वक्त ध्यान रहे कि पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें। स्त्रियों को यह आसन योग शिक्षक की सलाह पर ही करना चाहिए। रीढ़ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
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बस जरूरत है आपको हलासन करने की।
खास बात यह है कि इस आसन में शरीर का आकार खेत में चलाए जाने वाले हल के समान हो जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हलासन से हमारी रीढ़ सदा जवान बनी रहती है। मेरुदंड संबंधी नाइड़ियों के स्वस्थ रहने से वृद्धावस्था के लक्षण जल्दी नहीं आते हैं। अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, दमा, सिरदर्द, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं। लीवर और प्लीहा बढ़ गए हो तो हलासन से सामान्यावस्था में आ जाते हैं।

इस तरह करें आसन
1.सबसे पहले शवासन की अवस्था में जमीन पर लेट जाएं। एड़ी और पंजों को मिला लें। हाथों की हथेलियों को जमीन पर रखकर कोहनियों को कमर से सटाए रखें।
2.श्वास को सुविधानुसार बाहर निकाल दें। फिर दोनों पैरों को एक-दूसरे से सटाते हुए पहले 60 फिर 90 डिग्री के कोण तक एक साथ धीरे-धीरे भूमि से ऊपर उठाते जाएं। घुटना सीधा रखते हुए पैर पूरे ऊपर 90 डिग्री के कोण में आकाश की ओर उठाएं।
3.हथेलियों को जमीन पर दबाते हुए हथेलियों के सहारे नितंबों को उठाते हुए पैरों को पीछे सिर की ओर झुकाते हुए पंजों को जमीन पर रख दें।
4.अब दोनों हाथों के पंजों की संधि कर सिर से लगाएं। फिर सिर को हथेलियों से थोड़ा सा दबाएं, जिससे आपके पैर और पीछे की ओर खसक जाएंगे।
5.वापस से एक बार शवासन में लौट आएं अर्थात पहले हाथों की संधि खोलकर वापस से हथेलियों के बल पर 90 और फिर 60 डिग्री में पैरों को लाते हुए जमीन पर टिका दें। इस तरह से रोजाना अभ्यास करने से धीरे-धीरे आपको फायदा नजर आने लगेगा।
आसन करते वक्त ध्यान रहे कि पैर तने हुए तथा घुटने सीधे रहें। स्त्रियों को यह आसन योग शिक्षक की सलाह पर ही करना चाहिए। रीढ़ संबंधी गंभीर रोग अथवा गले में कोई गंभीर रोग होने की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
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