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UP election 2017 : 06 लाख शिक्षक व उनके परिवारजन नहीं देगें इस बार वोट

लखनऊ, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पलट कर पदोन्नति मेें पुनः आरक्षण प्रदान करने की नीयत से राज्य सभा से पारित कराये गए 117वें संविधान संशोधन बिल को पूरे तौर पर वापस कराने हेतु सर्वजन हिताय संरक्षण
समिति उ0प्र0ने सभी राजनीतिक दलों को पत्र भेजकर मांग की है कि वे इस बाबत अपने चुनाव घोषणा.पत्र में पार्टी की नीति स्पष्ट करें जिससे प्रदेश के सरकारी विभागों व सार्वजनिक निगमों के 18 लाख कर्मचारी . अधिकारी, 06 लाख शिक्षक व उनके परिवारजन यह निर्णय ले सकें कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में उन्हें वोट दें या न दें। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, उप्र के मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव, रालोद अध्यक्ष अजीत सिंह को अलग.अलग भेजे गए पत्र में समिति के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे ने लिखा है कि वोट की राजनीति के चलते सर्वाेच्च न्यायालय के पदोन्नति में आरक्षण को असंवैधानिक करार देने के 27 अप्रैल 2012 के फैसले को निष्प्रभावी करने हेतु लोकतांत्रिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर राज्यसभा में 117वां संविधान संशोधन बिल पारित कराया गया।

इसके पूर्व भी चार बार संविधान संशोधन कर सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों को निष्प्रभावी किया जा चुका है। 17 जून 1995 को काँग्रेस सरकार ने 77वां संविधान संशोधन किया तो 09 जून 2000 को 81वां, 08 सितम्बर 2000 को 82वां और 04 जनवरी 2002 को 85वां संविधान संशोधन एन0डी0ए0 सरकार द्वारा किया गया और पांचवी बार 17 दिसम्बर 2012को काँग्रेस व भाजपा ने मिलकर राज्यसभा में 117वां संविधान संशोधन बिल पारित कराया जिसे अब लोकसभा से पारित कराने का दुष्चक्र चल रहा है जिससे पूरे देश के सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों, अधिकारियों व् शिक्षकों में भारी रोष व्याप्त है। पत्र में लिखा गया है कि एम नागराज बनाम भारत सरकार के मुकदमें में 19 अक्टूबर 2006 को दिये गये फैसले में सर्वाेच्च न्यायालय ने संवैधानिक सिथति स्पष्ट करते हुए कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण देने के पहले संख्यात्मक आंकड़े देकर प्रत्येक मामले में पिछड़ापन प्रमाणित करने, सचुचित प्रतिनिधित्व न होना प्रमाणित करने और प्रशासनिक क्षमता पर दुष्प्रभाव न पडऩे जैसे बाध्यकारी कारण प्रमाणित करने होंगे।

पत्र में लिखा गया है कि 117वें संविधान संशोधन के जरिये तीनों बाध्यकारी कारण बताने की सर्वाेच्च न्यायालय की संवैधानिक व्याख्या अप्रासांगिक की जा रही है जिससे अनुसूचित जाति जनजाति के 20.25 साल कनिष्ठ कार्मिक, सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के वरिष्ठ कार्मिकों के बास और सुपरबास बन जायेंगे जो कि न केवल अन्यायपूर्ण होगा अपितु इससे विभाग तथा कार्मिकों की कार्यक्षमता प्रभावित होगी सामाजिक समरसता बिगड़ेगी और आपसी मनमुटाव फैलेगा जो राष्ट्रहित में नहीं होगा।

पत्र में मांग की गयी है कि राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्र में और मुददों के साथ इस मामले पर स्पष्ट उल्लेख करें कि उनका दल पदोन्नति में आरक्षण व 117वें संविधान संशोधन बिल का समर्थन करेगा या विरोध। समिति ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति में आरक्षण समर्थक व 117वें संविधान संशोधन बिल का समर्थन करने वाले दलों को प्रदेश के 18 लाख कर्मचारी .अधिकारी 06 लाख शिक्षक व उनके परिवार जन वोट नहीं देंगे और इस मामले में राजनीति कर रहे राजनीतिक दलों की वोट की राजनीति का वोट से ही करारा जवाब दिया जाएगा। इस मौके पर ए ए फारूकी, एच एन पाण्डे ,राम प्रकाश,राजीव सिंह ,कायम रज़ा रिज़वी ,संदीप राठौर ,रामराज दुबे ,डी सी दीक्षित ,वाई एन उपाध्याय ,कमलेश मिश्र ,अजय सिंह, पवन सिंह ,अँकुर भारद्वाज, निशांत नवीन ,राजीव श्रीवास्तव, पी के सिंह , डॉ मौलेंदु मिश्र ,अजय तिवारी ,डॉ आर के दलेला,आर पी उपाध्याय ,देवेंद्र द्विवेदी, आर बी एल यादव, बी एस गांधी, सर्वेश शुक्ल ,प्रेमा जोशी, आनंद कुमार ,अश्वनी उपाध्याय, आर के पाण्डेय मुख्यतया उपस्थित थे।
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