स्वाति गुप्ता जी की कलम से...
टेट मोर्चे से जुड़ने के बाद सभी टेट साथियों के संघर्ष को बहुत ही करीब से देखा है, परिस्थितियाँ कुछ भी रही पर कभी टेट मोर्चा इतनी विवादास्पद परिस्थितियों से नही गुज़रा, आरोप प्रत्यारोप पहले भी लगते आये, लोगों में आपसी मतभेद भी बहुत हुए मनभेद भी बहुत थे किंतु जब बात लक्ष्य प्राप्ति की आती तो उस पर सभी एकमत होते चयनितों की जीत का शायद यही सबसे बड़ा कारण था।
पर आजकल देख रही हूँ कि ये कलह बी जे पी और कांग्रेस पार्टी की तर्ज़ पर इस कदर बढ़ गई है कि कोई एक दूसरे को फूटी आँख भी नही सुहाता अगर कोई अच्छे के लिए भी अपना समर्थन दे तो लोग उसमे छिद्रान्वेषन करते हैं व नकारात्मकता ही खोजते है। कल ही की बात लीजिये कि अरविंद राजपूत जी की धरने के समर्थन में पोस्ट आती है और उसका खुल कर विरोध होता है।
समझ नही आता कि हम कहाँ जा रहे हैं, मैं ये मानती हूं कि सब एक क्राइटेरिया फॉलो नही करते किसी को अगर एक चीज़ का लाभ मिल सकता है तो किसी को नही।इसीलिए सबलोगो में एकमतता नही पर फिर भी हम एक ही संघर्ष के साथी हैं रास्ते भले ही अलग अलग हो पर लक्ष्य या मंज़िल हम सभी की एक ही है।
सच कहूँ तो चयनित अचयनित के बीच विरोध ज्यो ज्यो बढ़ता गया हम अपने लक्ष्य से उतना ही भटकते और दूर होते गए। न तो सभी चयनित बुरे थे न ही सभी अचयनित अच्छे हैं हम ने खुद ही चयनितों से दूरियां बढ़ा ली फिर उनके संघर्ष में साथ न देने की बात करते है उनमे से सभी तो बुरे नही होंगे कोई तो विश्वस्त होगा।
शायद अगर कोई अनुभवी चयनित नेता आज हमारे साथ होता तो हम उसके अनुभव का लाभ ले सकते थे हो सकता था हमारा ये संघर्ष काफी पहले ही समाप्त हो गया होता।
25 जुलाई का आर्डर ही जब नेताओ को स्पष्ट नही है तो वो किस तरह सी एम के सामने अपबे पक्ष मज़बूती से रख सकते है,कहीं ऐसा न हो कि मैं और अहं की लड़ाई में हम हार जाए और हम ये अंतिम अवसर यानी अपना सर्वस्व भी खो दें।
मुझे लगता है हमको इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए क्योंकि व्यक्तिगत हित कभी सामूहिक हित से ऊपर नही होता।
मैं भली भांति जानती हूं कि मेरी यह बात बहुत से टेट साथियो को सख्त नागवार गुज़रेगी। और उसका जमकर विरोध भी होगा।पर विरोध के डर से मैं सभी के हित को दांव पर लगता भी तो नही देख सकती। गलती करने से अच्छा है हम किसी अनुभवी की राय ले।आप सभी के विचार व सुझाव आमंत्रित हैं।
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