सरकार की ओर से बताया गया कि यह परीक्षा आवश्यक योग्यता के अंतर्गत नहीं है केवल क्वालिफाइंग है और परीक्षा के अंकों का 60 प्रतिशत अभ्यर्थी के मूलांकों में जोड़ा जाएगा। योग्यताधारक शिक्षामित्रों को 25 अंकों का वेटेज भी दिया जाएगा। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोंसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने विनय कुमार पांडेय और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया।
उल्लेखनीय
है कि परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती के लिए आयोजित की
जाने वाली लिखित परीक्षा भर्ती के लिए निर्धारित अर्हता नहीं बल्कि चयन
प्रक्रिया का हिस्सा होगी। इस बदलाव को अंजाम देने के लिए योगी सरकार की
कैबिनेट ने उप्र बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन के प्रस्ताव
पर मुहर लगाई थी। माना जा रहा है कि नियमावली में यह संशोधन कर सरकार ने
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68,500 शिक्षकों की भर्ती के लिए 12 मार्च को
प्रदेश के सभी मंडल मुख्यालयों पर आयोजित होने वाली लिखित परीक्षा के आड़े
आ रही तकनीकी बाधा से पार पा लिया है। यह पहला मौका है जब प्राथमिक
शिक्षकों की भर्ती के लिए लिखित परीक्षा हो रही है।
परिषदीय
प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती पहले शैक्षिक गुणांक (एकेडमिक
मेरिट) के आधार पर होती थी। योगी सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए
शैक्षिक गुणांक के अलावा लिखित परीक्षा को भी आधार बना दिया। शिक्षकों की
भर्ती के लिए लिखित परीक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए सरकार ने उप्र बेसिक
शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली, 1981 में संशोधन किया था। उस समय लिखित
परीक्षा को नियमावली के नियम-8 में शामिल कर दिया गया था। नियम-8 अर्हता से
संबंधित है। कुछ अभ्यर्थियों ने सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती
दी। यह दलील देते हुए कि प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए शैक्षिक
अर्हता तय करने का अधिकार राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) को है,
न कि राज्य सरकार को।