हाईकोर्ट ने शनिवार को प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका दिया है। प्राथमिक
विद्यालयों में सहायक अध्यापक बनाए गए 1.70 लाख शिक्षामित्रों का समायोजन
असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है।
कोर्ट ने इससे संबंधित सरकार के सभी प्रशासनिक आदेशों सहित शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के लिए बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में किए गए संशोधन और उन्हें दिए गए दो वर्षीय दूरस्थ शिक्षा प्रशिक्षण को भी असंवैधानिक और अवैध करार दिया है।
शिक्षामित्रोें के समायोजन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने कहा कि न्यूनतम अर्हता में छूट देने का सहायक अध्यापकों की नियुक्ति असंवैधानिक
•बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन को अदालत ने बताया असंवैधानिक
•शिक्षामित्रों को दिया गया दो वर्षीय दूरस्थ शिक्षा प्रशिक्षण भी मनमाना व अवैध बताया
शिक्षामित्रों न्यूनतम अर्हता नहीं रखते
पीठ ने कहा निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम प्रावधानों के अनुसार शिक्षामित्र, एनसीटीई की ओर से तय की गई न्यूनतम अर्हता भी नहीं रखते हैं। प्रदेश सरकार को बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन कर न्यूनतम योग्यता और अध्यापक की परिभाषा बदलने और केंद्र व एनसीटीई की ओर से तय मानक से इतर जाकर नियुक्ति के नए मानक बनाने का अधिकार नहीं है। प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित करने के लिए बेसिक शिक्षक सेवा नियमावली 1981 में संशोधन करके शिक्षामित्रों को न सिर्फ टीईटी की अनिवार्यता से छूट दे दी बल्कि एनसीटीई से दो वर्षीय दूरस्थ प्रशिक्षण दिलाने का अनुमोदन भी प्राप्त कर लिया।
मानदेय पर रखे गए थे शिक्षामित्र
प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षामित्रों को रखने की प्रक्रिया 1999 में प्रारंभ की गई। बेरोजगार युवकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाने और स्कूलों में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी को देखते हुए सरकार ने गुजरात मॉडल पर यह व्यवस्था लागू की थी। शिक्षामित्रों को एक निश्चित मानदेय पर मात्र 11 माह के लिए संविदा पर नियुक्ति दी गई। कोर्ट ने कहा कि यह बात स्पष्ट रूप से शिक्षामित्रों को भी पता है कि उनकी नियुक्ति अस्थायी और संविदा आधारित है, लिहाजा नियमितीकरण या समायोजन संभव नहीं है।
6 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों को शिक्षक के रूप में भर्ती करने पर रोक लगाई।
27 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट को मामले का निपटारा दो माह में करने का निर्देश।
बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति एनसीटीई से ली, बीटीसी प्रशिक्षण मिला।
सपा सरकार ने सहायक अध्यापक पर समायोजित करने का फैसला लिया।
वर्ष 2009
वर्ष 2012
वर्ष 2015
शिक्षक नहीं अब फिर कहलाएंगे शिक्षा मित्र
लखनऊ। राज्य सरकार की कृपा से समायोजन पाने वाले अब फिर से शिक्षक नहीं शिक्षा मित्र कहलाएंगे। शिक्षक बनने के बाद इन्हें 30,500 रुपये वेतन मिलने लगा था लेकिन हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद शिक्षा मित्र के रूप में इन्हें सिर्फ 3500 रुपये हर माह मानदेय मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट जाएगी राज्य सरकार:
हाईकोर्ट से शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद्द होने के फैसले के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाने की संभावनाएं तलाशने में जुट गई है। राज्य सरकार इस पर विधिक राय लेने के बाद निर्णय करेगी। बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने कहा कि फैसला देखने के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में एक लाख 70 हजार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने इसके लिए सेवा नियमावली में किए गए संशोधनों व सभी सरकारी आदेशों को भी रद कर दिया है। शिक्षा मित्रों को दूरस्थ शिक्षा के तहत दिया गया प्रशिक्षण अवैध माना गया है। 1कोर्ट ने कहा है कि बिना टीईटी पास किए कोई भी प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक नियुक्त नहीं किया जा सकता। न्यूनतम योग्यता तय करने या इसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को ही है। राज्य सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान योजना के तहत संविदा पर नियुक्त शिक्षा मित्रों का समायोजन करने में अपनी विधाई शक्ति सीमा का उल्लंघन किया है। वह केंद्र सरकार द्वारा तय मानक एवं न्यूनतम योग्यता को लागू करने में विफल रही है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की तीन सदस्यीय पूर्ण पीठ ने शिवम राजन व कई अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। शिक्षा मित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता ल्लशेष पृष्ठ 17 परराज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली।
-इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ’ दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण असंवैधानिक’
राज्य सरकार नहीं तय कर सकती शिक्षा के मानक’
राज्य सरकार को चयन के नए स्रोत बनाने का हक नहीं ’
नियमावली संशोधन व सरकारी आदेश अवैध
बिना टीईटी पास नहीं बन सकते प्राथमिक अध्यापक
बिना प्रशिक्षण न हो किसी की नियुक्तिशिक्षा मित्रों के समायोजन मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को अवकाश के बावजूद फैसला लिखाया। ऐसा पहली बार हुआ कि फैसला लिखाने के लिए मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट खोली गई। कोर्ट ने सुबह दस बजे से फैसला लिखाना शुरू किया, जो कि अपराह्न 2.20 तक चला। इस बीच अधिवक्ताओं से कोर्ट भरी रही। हाईकोर्ट से बाहर टीईटी व बीएड पास अभ्यर्थियों का जमावड़ा रहा।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
कोर्ट ने इससे संबंधित सरकार के सभी प्रशासनिक आदेशों सहित शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के लिए बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में किए गए संशोधन और उन्हें दिए गए दो वर्षीय दूरस्थ शिक्षा प्रशिक्षण को भी असंवैधानिक और अवैध करार दिया है।
शिक्षामित्रोें के समायोजन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने कहा कि न्यूनतम अर्हता में छूट देने का सहायक अध्यापकों की नियुक्ति असंवैधानिक
•बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन को अदालत ने बताया असंवैधानिक
•शिक्षामित्रों को दिया गया दो वर्षीय दूरस्थ शिक्षा प्रशिक्षण भी मनमाना व अवैध बताया
शिक्षामित्रों न्यूनतम अर्हता नहीं रखते
पीठ ने कहा निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम प्रावधानों के अनुसार शिक्षामित्र, एनसीटीई की ओर से तय की गई न्यूनतम अर्हता भी नहीं रखते हैं। प्रदेश सरकार को बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन कर न्यूनतम योग्यता और अध्यापक की परिभाषा बदलने और केंद्र व एनसीटीई की ओर से तय मानक से इतर जाकर नियुक्ति के नए मानक बनाने का अधिकार नहीं है। प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित करने के लिए बेसिक शिक्षक सेवा नियमावली 1981 में संशोधन करके शिक्षामित्रों को न सिर्फ टीईटी की अनिवार्यता से छूट दे दी बल्कि एनसीटीई से दो वर्षीय दूरस्थ प्रशिक्षण दिलाने का अनुमोदन भी प्राप्त कर लिया।
मानदेय पर रखे गए थे शिक्षामित्र
प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षामित्रों को रखने की प्रक्रिया 1999 में प्रारंभ की गई। बेरोजगार युवकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाने और स्कूलों में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी को देखते हुए सरकार ने गुजरात मॉडल पर यह व्यवस्था लागू की थी। शिक्षामित्रों को एक निश्चित मानदेय पर मात्र 11 माह के लिए संविदा पर नियुक्ति दी गई। कोर्ट ने कहा कि यह बात स्पष्ट रूप से शिक्षामित्रों को भी पता है कि उनकी नियुक्ति अस्थायी और संविदा आधारित है, लिहाजा नियमितीकरण या समायोजन संभव नहीं है।
6 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों को शिक्षक के रूप में भर्ती करने पर रोक लगाई।
27 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट को मामले का निपटारा दो माह में करने का निर्देश।
बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति एनसीटीई से ली, बीटीसी प्रशिक्षण मिला।
सपा सरकार ने सहायक अध्यापक पर समायोजित करने का फैसला लिया।
वर्ष 2009
वर्ष 2012
वर्ष 2015
शिक्षक नहीं अब फिर कहलाएंगे शिक्षा मित्र
लखनऊ। राज्य सरकार की कृपा से समायोजन पाने वाले अब फिर से शिक्षक नहीं शिक्षा मित्र कहलाएंगे। शिक्षक बनने के बाद इन्हें 30,500 रुपये वेतन मिलने लगा था लेकिन हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद शिक्षा मित्र के रूप में इन्हें सिर्फ 3500 रुपये हर माह मानदेय मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट जाएगी राज्य सरकार:
हाईकोर्ट से शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजन रद्द होने के फैसले के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाने की संभावनाएं तलाशने में जुट गई है। राज्य सरकार इस पर विधिक राय लेने के बाद निर्णय करेगी। बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने कहा कि फैसला देखने के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है।
शिक्षा मित्रों का समायोजन अवैध
ऐतिहासिक फैसला
अवकाश के बावजूद लिखा गया फैसला
1.70 लाख शिक्षा मित्रों की उम्मीदें धराशायी
----------------------==============================इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में एक लाख 70 हजार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। कोर्ट ने इसके लिए सेवा नियमावली में किए गए संशोधनों व सभी सरकारी आदेशों को भी रद कर दिया है। शिक्षा मित्रों को दूरस्थ शिक्षा के तहत दिया गया प्रशिक्षण अवैध माना गया है। 1कोर्ट ने कहा है कि बिना टीईटी पास किए कोई भी प्राथमिक विद्यालय का अध्यापक नियुक्त नहीं किया जा सकता। न्यूनतम योग्यता तय करने या इसमें ढील देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार को ही है। राज्य सरकार ने सर्वशिक्षा अभियान योजना के तहत संविदा पर नियुक्त शिक्षा मित्रों का समायोजन करने में अपनी विधाई शक्ति सीमा का उल्लंघन किया है। वह केंद्र सरकार द्वारा तय मानक एवं न्यूनतम योग्यता को लागू करने में विफल रही है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की तीन सदस्यीय पूर्ण पीठ ने शिवम राजन व कई अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। शिक्षा मित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता ल्लशेष पृष्ठ 17 परराज्य सरकार ने बिना विधिक प्राधिकार के मनमाने तौर पर नियमों में संशोधन किए। यहां तक कि अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली।
-इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ’ दूरस्थ शिक्षा से मिला प्रशिक्षण असंवैधानिक’
राज्य सरकार नहीं तय कर सकती शिक्षा के मानक’
राज्य सरकार को चयन के नए स्रोत बनाने का हक नहीं ’
नियमावली संशोधन व सरकारी आदेश अवैध
बिना टीईटी पास नहीं बन सकते प्राथमिक अध्यापक
बिना प्रशिक्षण न हो किसी की नियुक्तिशिक्षा मित्रों के समायोजन मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को अवकाश के बावजूद फैसला लिखाया। ऐसा पहली बार हुआ कि फैसला लिखाने के लिए मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट खोली गई। कोर्ट ने सुबह दस बजे से फैसला लिखाना शुरू किया, जो कि अपराह्न 2.20 तक चला। इस बीच अधिवक्ताओं से कोर्ट भरी रही। हाईकोर्ट से बाहर टीईटी व बीएड पास अभ्यर्थियों का जमावड़ा रहा।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC