सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश
वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त करने के अपने फैसले को
वापस लेते हुए जस्टिस संजय मिश्र को नया लोकायुक्त नियुक्त किया है।
संजय मिश्र इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं।
जस्टिस मिश्र का नाम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अदालत को दिए प्रस्तावित पांच नामों में शामिल था। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को एक हफ्ते के भीतर जस्टिस संजय मिश्र को लोकायुक्त नियुक्त करने संबंधी अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति रंजन गोगई और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने बृहस्पतिवार को अपने फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के बयान के आधार पर वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त किया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह गलत था। इस पूरे प्रकरण से जो बातें सामने आईं वे धुंधली, अस्पष्ट और अनिश्चित थीं।
हम इस बात को लेकर घोर चिंतित हैं कि संवैधानिक या वैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों ने लोकायुक्त पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं जताई। पीठ ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंबी और कई दौर की बैठकों के बाद भी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के बीच लोकायुक्त को नियुक्त करने जैसे सरल मसले पर मत विभेद था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की ओर से जस्टिस वीरेंद्र सिंह के नाम पर आपत्ति जताने को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकायुक्त की नियुक्ति में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के मत को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 16 दिसंबर को राज्य सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि सीएम और विपक्ष के नेता के बीच तीन नामों को लेकर सहमति बनी है लेकिन चीफ जस्टिस किसी भी नाम पर सहमत नहीं हैं और न ही उन्होंने किसी नाम पर विचार करने के लिए कहा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार की ओर से भेजे गए पांच नामों में से जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था।
शेष 9/संबंधित पेज 8 पर
विशेषाधिकार का प्रयोग कर शीर्ष अदालत ने की नियुक्ति
•सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार (संविधान के अनुच्छेद-142) का प्रयोग करते हुए इस पद के लिए राज्य सरकार की ओर से भेजे गए पांच नामों में से जस्टिस संजय मिश्र के नाम पर मुहर लगा दी। 16 दिसंबर को भी अदालत ने इन्हीं पांच नामों में शामिल जस्टिस विरेंद्र सिंह के नाम पर मुहर लगाई थी लेकिन बाद में उसे पता चला कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जस्टिस सिंह के नाम पर आपत्ति थी।
दबाव भी पड़ा पर दिक्कत नहीं हुई
लखनऊ (ब्यूरो)। लंबे समय तक लोकायुक्त पद की जिम्मेदारी संभालने वाले न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा मानते हैं कि कुछ अहम जांचों के दौरान उन पर दबाव रहा, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने अपने कार्यकाल में सामने आए प्रकरणों का विधि सम्मत तरीके से निस्तारण किया। जस्टिस मेहरोत्रा कहते हैं कि भ्रष्टाचार कैंसर से भी खतरनाक है।
•राज्य सरकार को एक सप्ताह में अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया
विवादों से दूर-दूर तक नाता नहीं
इलाहाबाद। 64 वर्षीय जस्टिस संजय मिश्र अपने सौम्य स्वभाव व न्यायप्रियता के लिए जाने जाते हैं। उनका विवादों से दूर-दूर तक भी नाता नहीं रहा। वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में 24 सितंबर 2004 को एडिशनल जज, 18 अगस्त 2005 को पूर्णकालिक जज बने। यहीं से नवंबर 2014 में रिटायर हुए। जस्टिस मिश्र के दादा स्व.पंडित कन्हैया लाल मिश्र पहले ऐसे अधिवक्ता रहे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
हम इस बात को लेकर घोर चिंतित हैं कि संवैधानिक या वैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों ने लोकायुक्त पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं जताई। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंबी और कई दौर की बैठकों के बाद भी इनके बीच लोकायुक्त को नियुक्त करने जैसे सरल मसले पर मत विभेद था। - सुप्रीम कोर्ट
Sponsored links :
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Breaking News: सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
संजय मिश्र इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं।
जस्टिस मिश्र का नाम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अदालत को दिए प्रस्तावित पांच नामों में शामिल था। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को एक हफ्ते के भीतर जस्टिस संजय मिश्र को लोकायुक्त नियुक्त करने संबंधी अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति रंजन गोगई और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने बृहस्पतिवार को अपने फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के बयान के आधार पर वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त किया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि यह गलत था। इस पूरे प्रकरण से जो बातें सामने आईं वे धुंधली, अस्पष्ट और अनिश्चित थीं।
हम इस बात को लेकर घोर चिंतित हैं कि संवैधानिक या वैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों ने लोकायुक्त पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं जताई। पीठ ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंबी और कई दौर की बैठकों के बाद भी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के बीच लोकायुक्त को नियुक्त करने जैसे सरल मसले पर मत विभेद था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की ओर से जस्टिस वीरेंद्र सिंह के नाम पर आपत्ति जताने को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकायुक्त की नियुक्ति में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के मत को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। 16 दिसंबर को राज्य सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि सीएम और विपक्ष के नेता के बीच तीन नामों को लेकर सहमति बनी है लेकिन चीफ जस्टिस किसी भी नाम पर सहमत नहीं हैं और न ही उन्होंने किसी नाम पर विचार करने के लिए कहा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार की ओर से भेजे गए पांच नामों में से जस्टिस वीरेंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त कर दिया था।
शेष 9/संबंधित पेज 8 पर
विशेषाधिकार का प्रयोग कर शीर्ष अदालत ने की नियुक्ति
•सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार (संविधान के अनुच्छेद-142) का प्रयोग करते हुए इस पद के लिए राज्य सरकार की ओर से भेजे गए पांच नामों में से जस्टिस संजय मिश्र के नाम पर मुहर लगा दी। 16 दिसंबर को भी अदालत ने इन्हीं पांच नामों में शामिल जस्टिस विरेंद्र सिंह के नाम पर मुहर लगाई थी लेकिन बाद में उसे पता चला कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जस्टिस सिंह के नाम पर आपत्ति थी।
दबाव भी पड़ा पर दिक्कत नहीं हुई
लखनऊ (ब्यूरो)। लंबे समय तक लोकायुक्त पद की जिम्मेदारी संभालने वाले न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा मानते हैं कि कुछ अहम जांचों के दौरान उन पर दबाव रहा, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने अपने कार्यकाल में सामने आए प्रकरणों का विधि सम्मत तरीके से निस्तारण किया। जस्टिस मेहरोत्रा कहते हैं कि भ्रष्टाचार कैंसर से भी खतरनाक है।
•राज्य सरकार को एक सप्ताह में अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया
विवादों से दूर-दूर तक नाता नहीं
इलाहाबाद। 64 वर्षीय जस्टिस संजय मिश्र अपने सौम्य स्वभाव व न्यायप्रियता के लिए जाने जाते हैं। उनका विवादों से दूर-दूर तक भी नाता नहीं रहा। वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में 24 सितंबर 2004 को एडिशनल जज, 18 अगस्त 2005 को पूर्णकालिक जज बने। यहीं से नवंबर 2014 में रिटायर हुए। जस्टिस मिश्र के दादा स्व.पंडित कन्हैया लाल मिश्र पहले ऐसे अधिवक्ता रहे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
हम इस बात को लेकर घोर चिंतित हैं कि संवैधानिक या वैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों ने लोकायुक्त पद के लिए किसी नाम पर सहमति नहीं जताई। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि लंबी और कई दौर की बैठकों के बाद भी इनके बीच लोकायुक्त को नियुक्त करने जैसे सरल मसले पर मत विभेद था। - सुप्रीम कोर्ट
Sponsored links :
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Breaking News: सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC