Saturday 29 October 2016

उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों की महत्त्वाकांक्षा बढ़ाकर उनको बर्बादी के मंजर में झोक दिया

सुशांत पाण्डेय : न्यायमूर्ति की टिप्पणी को किस अवलोक में लिया जा सकता है ?
यदि मुकदमा शिक्षामित्रों के पक्ष में होता तो उन्हें ऐसा न कहना पड़ता ।
उन्होंने अपने रिटायरमेंट की बात की है ।
उन्हें ज्ञात है कि उनका फैसला हिंदुस्तान के इतिहास में बेशक संविधान के दायरे में होगा लेकिन उत्तर प्रदेश में लाशों की ढेर लग जायेगी ।
नौकरी न मिले तो संतोष हो सकता है लेकिन मिलने के बाद नौकरी का जाना इंसान को समाज और घर परिवार कहीं भी जीने लायक नहीं छोड़ता है ।
इंसान सदमे में टूट जाता है और गलत कदम उठाने को मजबूर होता है ।

न्यायमूर्ति डॉ० साहब ने अपने फुल बेंच के आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि वे किसका हक़ खा रहे हैं इसपर उनपर न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा दया भी नहीं दिखा सकते हैं ।
उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों की महत्त्वाकांक्षा बढ़ाकर उनको बर्बादी के मंजर में झोक दिया है ।
इसकी जिम्मेदार उत्तर प्रदेश की सपा एवं बसपा सरकार है ।
हर ब्राह्मण क्रूर नहीं हो सकता है , जनहित के जज की इस टिप्पणी ने ढेर सारा सन्देश दिया है ।
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