जासं, नैनीताल : हाई कोर्ट ने उत्तराखंड के प्राथमिक विद्यालयों में छह महीने के भीतर फर्नीचर, ब्लैक बोर्ड, बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय के साथ ही शुद्ध पेयजल मुहैया कराने का आदेश दिया है।
प्राथमिक स्कूलों में सुविधाएं मुहैया कराने के आग्रह के साथ देहरादून निवासी दीपक राणा ने जनहित याचिका दायर की थी। गत 19 नवंबर को न्यायाधीश राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए 10 दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें फर्नीचर, पानी, शौचालय, स्कूल डेस प्रमुख थे। हाल ही में महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर की ओर से कोर्ट से आदेश की अनुपालना के लिए एक साल का समय मांगा गया था।
गुरुवार को अदालत ने इस पर सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक सिंह व राजीव सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में देश के सभी राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर चुका है कि स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं में सुधार किया जाए। बावजूद इसके उत्तराखंड अब तक न सुप्रीम कोर्ट और न ही हाई कोर्ट के आदेश का अनुपालन करा सका है। अब यह आवश्यक हो गया कि बिना देरी किए कदम उठाए जाएं।
कोर्ट ने कहा कि हम राज्य की वित्तीय स्थिति से बेखबर नहीं हैं, लेकिन राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह जमीनी स्तर पर बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाने को फंड की व्यवस्था करे।’
>>सरकारी स्कूलों की बदहाली पर नैनीताल हाई कोर्ट सख्त
’>>छह महीने के भीतर बुनियादी सुविधाएं जुटाने के आदेश
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प्राथमिक स्कूलों में सुविधाएं मुहैया कराने के आग्रह के साथ देहरादून निवासी दीपक राणा ने जनहित याचिका दायर की थी। गत 19 नवंबर को न्यायाधीश राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए 10 दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसमें फर्नीचर, पानी, शौचालय, स्कूल डेस प्रमुख थे। हाल ही में महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर की ओर से कोर्ट से आदेश की अनुपालना के लिए एक साल का समय मांगा गया था।
गुरुवार को अदालत ने इस पर सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। शुक्रवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक सिंह व राजीव सिंह की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में देश के सभी राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर चुका है कि स्कूलों में ढांचागत सुविधाओं में सुधार किया जाए। बावजूद इसके उत्तराखंड अब तक न सुप्रीम कोर्ट और न ही हाई कोर्ट के आदेश का अनुपालन करा सका है। अब यह आवश्यक हो गया कि बिना देरी किए कदम उठाए जाएं।
कोर्ट ने कहा कि हम राज्य की वित्तीय स्थिति से बेखबर नहीं हैं, लेकिन राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह जमीनी स्तर पर बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाने को फंड की व्यवस्था करे।’
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