सहारनपुर : प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा की रीढ़ माने जाने वाले
शिक्षामित्रों को बेसिक शिक्षा विभाग नजरअंदाज कर रहा है। छात्र-शिक्षक
अनुपात में शिक्षा मित्रों को शामिल नहीं किया गया।
मानदेय भी नियमित रूप
से नहीं मिलता। सरकार द्वारा मूल स्कूलों में भेजने के फैसले को शिक्षा
मित्र सकारात्मक कदम मानकर चल रहे हैं।
वर्ष-2001 में सर्व शिक्षा अभियान के आगाज के साथ ही कई चरणों में ग्रामीण
क्षेत्र के स्कूलों में मानदेय के आधार पर शिक्षा मित्रों की नियुक्ति हुई
थी। जिले में 2300 से अधिक कार्यरत शिक्षा मित्रों को 10 हजार मासिक मानदेय
मिल रहा है। सपा शासनकाल के दौरान शिक्षा मित्रों को प्राथमिक स्कूलों में
शिक्षक पदों पर समायोजित किया गया था। गत एक दशक से शिक्षा मित्र संघर्ष
कर रहे थे। बाद में हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके समायोजन को
अमान्य कर दिए जाने के फैसले से उन्हें वर्ष-2017 में शिक्षा मित्र के पद
पर वापिस लौटना पड़ा था।
छात्र-शिक्षक अनुपात में शामिल नहीं: बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा परिषदीय
स्कूलों में केवल नियमित शिक्षकों को ही छात्र-शिक्षक अनुपात की श्रेणी में
शामिल किया गया है। जिले में कार्यरत 2300 से अधिक शिक्षा मित्रों में से
करीब 1650 का ही समायोजन हो सका था। समायोजन रद होने के बाद शिक्षामित्र
मूल पद पर वापस आ चुके हैं। लोकसभा चुनाव से पहले उनकी नाराजगी दूर करने के
लिए सरकार ने शिक्षामित्रों को उनके मूल स्कूलों में भेजने का निर्णय लिया
है।
मानदेय को लंबा इंतजार: शिक्षामित्रों को नियमित रूप से मानदेय न मिलने के
कारण कई बार उनके समक्ष परिवार के भरण-पोषण की समस्या गहरा जाती है। अप्रैल
का मानदेय भी 19-20 जुलाई को ही भेजा जा सका। सूत्रों का कहना है कि मूल
स्कूलों में भेजने के शिक्षामित्रों से विकल्प लिए जा सकते हैं। हालांकि इस
बारे में अभी कोई गाइड लाइन नहीं मिली है।
■ छात्र व शिक्षक अनुपात में शिक्षामित्र शामिल नहीं हुए
■ अप्रैल से नहीं मिल सका शिक्षामित्रों का मानदेय
स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात में केवल नियमित शिक्षकों की गणना ही की
जाती है। मानदेय के आधार पर नियुक्त होने के कारण शिक्षामित्र प्रक्रिया से
बाहर हैं। _ रमेंद्र कुमार सिंह, बीएसए।
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