वाराणसी, जेएनएन। सूबे के संस्कृत महाविद्यालयों में
अध्यापकों की नियुक्तियों को लेकर ऊहापोह की स्थिति अब भी बरकरार है। उच्च
न्यायालय ने जहां भर्ती पर लगी रोक का शासनादेश रद करते हुए संपूर्णानंद
संस्कृत विश्वविद्यालय को नियुक्ति करने की छूट दे दी है।
वही शासन ने विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 की धारा 50 की उपधारा छह में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए परिनियमावली संशोधित करते हुए विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार ही छीन लिया है। ऐसे में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
परिनियम के तहत विश्वविद्यालय को सूबे के सभी संबद्ध संस्कृत महाविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती करने का अधिकार है। हालांकि किन्हीं कारणवश वर्ष 2000 से अध्यापकों की भर्ती बंद चल रही है। वर्ष 2013 में विश्वविद्यालय ने भर्ती प्रक्रिया पुन: खोली। इसके तहत वर्ष 2018 में 416 अध्यापकों व 68 प्रधानाचार्यों की भर्ती शुरू की गई थी। वहीं 10 अक्टूबर 2018 को शासन ने नियुक्तियों पर रोक लगा दी। महाविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार उच्चतर शिक्षा आयोग को सौंप दिया। इस शासनादेश के खिलाफ महाविद्यालयों ने उच्च न्यायालय शरण ले ली। इस बीच शासन ने विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद से परियनियम में संशोधन करने की अपेक्षा की। हालांकि शासन के प्रस्ताव पर कार्यपरिषद में सहमति नहीं बनी।
अपरिहार्य कारणों से स्थगित करने की सूचना शासन को भेज दी। वहीं शासन ने
परिनियम में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए विश्वविद्यालय में
नियुक्ति का अधिकार ही छीन लिया। इस संबंध में शासन के सचिव आर. रमेश कुमार
ने कुलपति से परिनियमों में सम्मलित करने का आदेश भी दिया है। उधर उच्च
न्यायालय ने कहा कि जब तक सरकार पदों का सृजन व यूजीसी मानकों के अनुसार
वेतन निर्धारण नहीं कर लेती है तक तक संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के
परिनियमावली के तहत भर्ती जारी रखी जाए। शासन द्वारा भर्ती पर रोक की अपील
हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है।
बोले कुलसचिव : शासन ने परिनियम संशोधित कर विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार छीन लिया है। वहीं उच्च न्यायालय के फैसले से लंबित शिक्षकों की भर्ती होने की संभावना जग गई है। हालांकि उच्च न्यायालय में भर्ती संबंधी एक मुकदमा और लंबित है। उसके फैसले का भी इंतजार किया जा रहा है। सभी बिंदुओं पर व्यापक विचार करने के बाद ही नियुक्ति संबंधी कोई कदम उठाया जाएगा। -राज बहादुर, कुलसचिव।
वही शासन ने विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 की धारा 50 की उपधारा छह में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए परिनियमावली संशोधित करते हुए विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार ही छीन लिया है। ऐसे में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।
परिनियम के तहत विश्वविद्यालय को सूबे के सभी संबद्ध संस्कृत महाविद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती करने का अधिकार है। हालांकि किन्हीं कारणवश वर्ष 2000 से अध्यापकों की भर्ती बंद चल रही है। वर्ष 2013 में विश्वविद्यालय ने भर्ती प्रक्रिया पुन: खोली। इसके तहत वर्ष 2018 में 416 अध्यापकों व 68 प्रधानाचार्यों की भर्ती शुरू की गई थी। वहीं 10 अक्टूबर 2018 को शासन ने नियुक्तियों पर रोक लगा दी। महाविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का अधिकार उच्चतर शिक्षा आयोग को सौंप दिया। इस शासनादेश के खिलाफ महाविद्यालयों ने उच्च न्यायालय शरण ले ली। इस बीच शासन ने विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद से परियनियम में संशोधन करने की अपेक्षा की। हालांकि शासन के प्रस्ताव पर कार्यपरिषद में सहमति नहीं बनी।
बोले कुलसचिव : शासन ने परिनियम संशोधित कर विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार छीन लिया है। वहीं उच्च न्यायालय के फैसले से लंबित शिक्षकों की भर्ती होने की संभावना जग गई है। हालांकि उच्च न्यायालय में भर्ती संबंधी एक मुकदमा और लंबित है। उसके फैसले का भी इंतजार किया जा रहा है। सभी बिंदुओं पर व्यापक विचार करने के बाद ही नियुक्ति संबंधी कोई कदम उठाया जाएगा। -राज बहादुर, कुलसचिव।