इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि सरकार कोई नीति बनाती है तो यह माना जाता है कि उसका पालन किया जायेगा और ऐसी नीति किसी अधिकारी की मनमर्जी से नकारी नहीं
जा सकती है जब तक कि उसका नियमानुसार संशोधन न किया जाए। यह कहते हुए कोर्ट ने एक दिव्यांग उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी का स्थानांतरण आदेश रद कर दिया और सरकार को आदेश दिया कि उसे पूर्व पद पर ही कार्य करने दिया जाए।यह आदेश जस्टिस चंद्र धारी सिंह की एकल पीठ ने डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर लक्ष्मी कांत मिश्र की रिट याचिका पर पारित किया।
याची के वकील गौरव मेहरोत्र का तर्क था कि याची का चयन एआरटीओ पद पर 1987 में यूपीएससी से दिव्यांग कोटे के तहत हुआ था। बाद में उसका प्रमोशन आरटीओ और अब डीटीसी के पद पर हुआ। याची का ट्रांसफर 27 जून 2019 को लखनऊ जोन से वाराणसी किया गया जहां उसका कार्य अच्छा आंका गया। एक साल के भीतर ही उसे पुन: 11 जून 2020 को वाराणसी जोन से लखनऊ जोन ट्रांसफर करने का आदेश प्रमुख सचिव ट्रांसपोर्ट विभाग ने जारी कर दिया जो कि मनमाना और गलत है।