आगरा: उनके कंधों पर शिक्षकों की कमी से जूझ रही प्राथमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने की जिम्मेदारी है। सीमित संसाधनों और अल्प मानदेय में भी वह माथे पर लगे अयोग्यता के कलंक को मिटाने और खुद को साबित करने के लिए शिक्षकों की तरह ही तमाम जिम्मेदारियां संभालते हुए काम कर रहे है। बावजूद इसके उनकी सुनने वाला कोई नहीं। यह आज भी खुद के वजूद को तलाश रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं शिक्षामित्रों की जो शिक्षकों की कमी से जूझ रहे परिषदीय विद्यालयों के संचालन में एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। नगर क्षेत्र के कई विद्यालय तो सिर्फ इन्हीं के हवाले हैं, बावजूद इसके न तो इन्हें मिलने वाला 10 हजार का अल्प मानदेय ही समय पर मिलता है, न ही समायोजन रद होने के बाद दोबारा शिक्षामित्र बनाए गए इन लोगों के लिए शासन अब तक कोई ठोस व्यवस्था ही नहीं तलाश पाई है।
1999 में मिली थी तैनाती शिक्षा मित्रों की तैनाती बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए वर्ष 1999 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने शिक्षामित्र योजना के अंतर्गत की थी। धीरे-धीरे यह व्यवस्था का अहम हिस्सा बन गए, टेस्टिंग में सफल रहने पर वर्ष 2004, 2005 और 2006 में प्रत्येक विद्यालय में दो-दो शिक्षामित्रों की नियुक्ति सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत की गई।
लंबी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद वह वर्ष 2014 में शिक्षक पद पर समायोजित हुए, लेकिन वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य बताते हुए समायोजन रद कर दिया। शिक्षण योग्यता के भारांक से हालांकि कुछ शिक्षा मित्र मेहनत व योग्यता के दम पर शिक्षक बनने में सफल रहे। 68500 शिक्षक भर्ती में 183 और 69 हजार शिक्षक भर्ती में 156 शिक्षा मित्रों का शिक्षक पद पर चयन हुआ लेकिन, करीब ढाई हजार शिक्षा मित्रों का संघर्ष अब भी जारी है।
यह है जिले की स्थिति
जिले में कुल 2491 परिषदीय विद्यालय हैं, जिनमें 1625 प्राथमिक और 434 उच्च प्राथमिक, 432 कंपोजिट और 61 सहायता प्राप्त विद्यालय हैं। इनमें दो लाख 69 हजार विद्यार्थी पंजीकृत हैं। जिले में करीब 10 हजार शिक्षक हैं, जबकि जिले में नी शिक्षामित्र बेसिक शिक्षा योजनातर्गत, जबकि करीब 2500 शिक्षा मित्र सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत कार्यरत है, जो अब समग्र शिक्षा योजना नाम से प्रचलित है।
चार महीने से नहीं मिला मानदेय
प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र कर का कहना है कि शिक्षामित्रों को लेकर शासन हमेशा ही उदासीन रही। समायोजन रद होने के बाद राहत देने का आश्वासन जरूर मिला। सरकार के पांच साल पूरे होने को हैं, लेकिन अब तक उनकी सुनवाई नहीं हुई। उन्हें मिलने वाला मानदेय भी पिछले चार महीनों से नहीं मिल सका है लाकडाउन में भी यह शिक्षकों की तरह नियमित रूप से विद्यालय गए, मोहल्ला कक्षाएं लगाई, राशन वितरण से लेकर बीएलओ और चुनाव ड्यूटी तक करीब 13 जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं।