उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती मामले में आखिरकार हाईकोर्ट से सरकार को झटका लगने के बाद योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. सरकार असमंजस में है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जाया जाए या नई मेरिट लिस्ट जारी की जाए. इस मुद्दे पर रविवार यानी 18 अगस्त को सीएम ने बड़ी बैठक बुलाई है.
उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसला सुनाते हुए भर्ती की मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया है. कोर्ट की डबल बेंच ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह 1994 की आरक्षण नियमावली की धारा 3(6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन करते हुए नई चयन सूची तैयार करे.
सरकार के सामने क्या विकल्प?
इस फैसले को लेकर सरकार के सामने दोनों ही विकल्प हैं, लेकिन दोनों ही विकल्पों की अपनी चुनौतियां भी हैं. अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है तो सरकार पर पिछड़ा विरोधी और आरक्षण की अनदेखी होने का आरोप लग सकता है. अगर सरकार नई मेरिट लिस्ट जारी करती है तो जो अभ्यर्थी सफल होकर नौकरी कर रहे हैं उनपर तलवार लटक सकती है.
अपने और विपक्षी दोनों हमलावर
योगी सरकार के लिए शिक्षक भर्ती मामला गले की फांस बन चुका है. इस मामले में योगी सरकार के अपने और विपक्षी दोनों हमलावर हैं. सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘शिक्षकों की भर्ती में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में स्वागत योग्य कदम है. यह उन पिछड़ा व दलित वर्ग के पात्रों की जीत है जिन्होंने अपने अधिकार के लिए लंबा संघर्ष किया।. उनका मैं तहेदिल से स्वागत करता हूं’.
ये पिछड़ों की जीत है’
डिप्टी सीएम का बयान ही ये बताने के लिए काफी है कि सीएम योगी इस मामले में किस तरह से संघर्ष कर रहे हैं. सरकार में सहयोगी दलों का रुख भी सरकार विरोधी ही दिख रहा है. अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर भी इसको पिछड़ों की जीत बता रहे हैं. विपक्षी समाजवादी पार्टी ने भी इसको संविधान और पिछड़ों की जीत बताई है. बयानों के आधार पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सुर मिले हुए हैं और सरकार पर दोनों तरफ से दबाव पड़ रहा है. प्रदेश में होने वाले 10 सीटों पर उपचुनाव से पहले हाईकोर्ट का ये फैसला सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द है. अब देखना दिलचस्प होगा कि इस संकट से निकलने के लिए योगी सरकार कौन सा रास्ता अख्तियार करती है