24 की सुनवाई का आदेश पढ़ा ......बात सिर्फ इतनी है कि सुप्रीमकोर्ट बिना वजह याचियों की गाली खा रहा है क्योंकि वह तो सरकार से कह रहा है कि 7 दिसम्बर और 24 फरवरी के आदेश का पालन करते हुए उसके लाभार्थियों को भी नियुक्ति दो तथा यह भी कह रहा है
कि उक्त आदेशों के अनुपालन में उसे यदि कोई समस्याएं आ रही हैं उन्हें लेकर 5 अक्टूबर को कोर्ट में प्रस्तुत हों ,,,,,,,,,
बात आकर वहीं अटक जाती है कि याचियों की नियुक्ति के सम्बन्ध में सरकार का क्या रुख रहता है यह बात बहुत महत्वपूर्ण है ,,,,,,,,, कोर्ट तो याचियों को जॉब पर लगाना चाहता है लेकिन ऐसा करने के लिए उसे सरकार के सहयोग की जरूरत पड़ेगी ,,,,, यदि सरकार सहयोग नही करती है और ऐसी समस्याएं लेकर 5 अक्टूबर को कोर्ट पहुँचती है जिनका निदान प्रचलित विधि के दायरे में रहते हुए मुमकिन नहीं है तो ऐसी स्थिति में कोर्ट के हाथ बंध जाएंगे ,,,, मान लीजिये कोर्ट 5 अक्टूबर या एक दो और सुनवाइयों के बाद याचियों की नियुक्ति का आदेश दे भी देता है तो सरकार के पास उसके आदेश को मानने के स्थान पर अवमानना झेलने का विकल्प बचता है ,,,,,,, यदि आदेश हो भी गया तो तब तक वर्तमान सरकार का संक्रमण काल शुरू हो चुका होगा इसलिए ऐसी स्थिति में गेंद चुनावों के बाद बनने वाली नई सरकार के पाले में चली जायेगी ......
ये तो हुआ याचियों की दृष्टि से केस का नकारात्मक पहलू लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जो कम से कम मेरे दिल में तो उम्मीद की किरण जगा ही रहा है ......
सुप्रीम की तलवार सरकार के प्रिय पुत्र की गर्दन पर रखी हुई है इसलिए हो सकता है कि समायोजित शिक्षामित्रों को फिलहाल अपने वर्तमान पदों पर बने रहने देने के एवज में सरकार याचियों की नियुक्ति के मार्ग की विधिक बाधाओं का कोर्ट के आदेश से निराकरण कराकर अपने कार्यकाल में याचियों की 6 माह की ट्रेनिंग शुरू करा दे ,,,,,,
याचियों के हाथ में फिलहाल सिर्फ इतना है कि वो राजनीति करके सरकार को अपना पक्ष लेने के लिए मनाने का प्रयास करें और उसमे सफलता ना मिलने पर विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करके अगली सरकार को बनने से पूर्व ही अपने पक्ष में करें ,,,,,
यदि कोई व्यक्ति या समूह लक्ष्मण मेला मैदान में याचियों की माँग लेकर क्रमिक या अन्य किसी प्रकार के अनशन का नेतृत्व करने की क्षमता रखता हो तो उसके लिए इससे सुनहरा अवसर नहीं होगा ,,,,
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कि उक्त आदेशों के अनुपालन में उसे यदि कोई समस्याएं आ रही हैं उन्हें लेकर 5 अक्टूबर को कोर्ट में प्रस्तुत हों ,,,,,,,,,
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ये तो हुआ याचियों की दृष्टि से केस का नकारात्मक पहलू लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जो कम से कम मेरे दिल में तो उम्मीद की किरण जगा ही रहा है ......
सुप्रीम की तलवार सरकार के प्रिय पुत्र की गर्दन पर रखी हुई है इसलिए हो सकता है कि समायोजित शिक्षामित्रों को फिलहाल अपने वर्तमान पदों पर बने रहने देने के एवज में सरकार याचियों की नियुक्ति के मार्ग की विधिक बाधाओं का कोर्ट के आदेश से निराकरण कराकर अपने कार्यकाल में याचियों की 6 माह की ट्रेनिंग शुरू करा दे ,,,,,,
याचियों के हाथ में फिलहाल सिर्फ इतना है कि वो राजनीति करके सरकार को अपना पक्ष लेने के लिए मनाने का प्रयास करें और उसमे सफलता ना मिलने पर विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करके अगली सरकार को बनने से पूर्व ही अपने पक्ष में करें ,,,,,
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