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NCTE एनसीटीई की गाइडलाइन में टीईटी अंकों को वरीयता देने का अर्थ

सवाल -जबाब : एनसीटीई की गाइडलाइन में टीईटी अंकों को वरीयता देने का क्या अर्थ है?
जवाब : 1. शिक्षक भर्ती के परिपेक्ष्य में NCTE की गाइडलाइन जो कि दिनांक 11 फरवरी 2011 को जारी हुयी थी , किसी भी प्रकार से मनमानी नहीं है , नोटिफिकेशन/एक्ट से संपूर्ण बातें स्पष्ट नहीं हो सकती थी
अतः NCTE ने गाइडलाइन जारी करके टीईटी परीक्षा कैसे आयोजित हो , टीईटी के अंकों का कैसे उपयोग हो और टीईटी की मार्कशीट की वैधता समेत कई विषयवस्तुओं को स्पष्ट किया ।
2. टीईटी मेरिट चयन का आधार हो सकता है लेकिन सिर्फ टीईटी मेरिट ही चयन का आधार हो ऐसा नहीं हो सकता है ।
राज्य टीईटी के अंकों को न्यूनतम या अधिकतम किसी भी सीमा तक महत्व देते हुये अपनी इच्छा से अन्य कोई भी चयन का आधार बना सकती है , बशर्ते कि उक्त चयन का आधार किसी के मौलिक अधिकारों का हनन न करती हो अर्थात संविधान के अनुच्छेद 14 का उलंघन न करती हो ।
3. हाई कोर्ट द्वारा सर्विस रूल के संशोधन 15 को निरस्त करना उचित फैसला है क्योंकि अलग-अलग यूनिवर्सिटी और बोर्ड की अलग-अलग मूल्यांकन प्रणाली होती है ।
टीईटी के अंकों के साथ भी ऐसा ही है परंतु टीईटी के अंकों को लेकर CTET और UPTET की परीक्षा प्रणाली की असमानता को कभी भी चुनौती नहीं दी गयी है ।
गोविन्द दीक्षित और सीताराम ने संशोधन 12 को चुनौती दी थी परंतु कोर्ट ने चयन के आधार को राज्य का विषय बताकर याचिका खारिज कर दी थी ।
4. NCTE की गाइडलाइन के क्लॉज़ 9बी में शिक्षक हेतु चयन में टीईटी के अंकों के अधिमान की बात की गयी है ।
RTE एक्ट का उद्देश्य शिक्षक बनाना नहीं अपितु बच्चों को अनिवार्य, निःशुल्क एवं योग्य शिक्षकों द्वारा शिक्षा देना है, केंद्र ने RTE एक्ट के बाद NCTE को विशेषज्ञ एवं योग्यता निर्धारक संस्था बनाया ।
अतः टीईटी के भारांक से वर्तमान परिपेक्ष्य में योग्य शिक्षकों का चयन संभव हो सकता है ।
NCTE को केंद्र से मिली शक्तियों के आधार पर राज्य के अधिकारों का उलंघन किये बगैर न्यूनतम भारांक की बात करना विधिक रूप से सही है ।
राज्य ने अपनी नियमावली में भले ही टीईटी के अंकों के महत्त्व को घटाया बढ़ाया हो परंतु NCTE ने कभी भी अपनी गाइडलाइन में कोई भी परिवर्तन करना उचित नहीं समझा है ।
अतः राज्य को अपने चयन के आधार में टीईटी 60 फीसदी व आरक्षित को 55 फीसदी अंकों से अधिक भी
महत्त्व देना चाहिए ।
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