एनसीटीई ने कहा है कि शिक्षक बनने के लिए टीईटी अनिवार्य है। 2010 से पहले
नियुक्त शिक्षकों को इसमें छूट दी है लेकिन वहां पर शिक्षामित्र शब्द का
इस्तेमाल नहीं है। शिक्षामित्र 2010 से पहले नियुक्त हुए थे लेकिन शिक्षक
के तौर पर नियुक्ति 2014 में की गई। शिक्षामित्र संविदा पर थे, उन्हें 11
माह का वेतन दिया जाता था।
उनसे एफिडेविट भी लिया जाता था कि वे स्थायी नौकरी का दावा नहीं करेंगे। बाद के शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य होगी। पुराने आदेशों का हवाला देते हुए कहा है कि शिक्षक बनने के लिए टीईटी में कोई छूट नहीं है। जहां तक शिक्षामित्रों की बात है तो ये नियमत: नियुक्त किए गए हैं या नहीं, इसके लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। ये नियमित शिक्षक थे या नहीं, इसके लिए भी प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। अब कोर्ट में फिर से सरकार को स्थिति साफ करनी होगी।
शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाए जाने के मुद्दे पर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने प्रदेश सरकार के पत्र का जवाब दिया है। एनसीटीई ने नियमावली, साफ करते हुए कहा है कि 2010 से पहले नियुक्त और नियमित पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य नहीं है। यह भी साफ किया है कि शिक्षकों (शिक्षामित्रों) की नियमानुसार नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। ऐसे में इस पर फैसला कोर्ट में ही होगा। फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि 2010 के पहले नियुक्त होने वाले शिक्षकों में शिक्षामित्र शामिल हैं या नहीं। हालांकि सरकार और शिक्षामित्रों के नेता मामला अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं।
यूपी में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाए जाने का आदेश प्रदेश सरकार ने पिछले साल जारी किया था। दो चरणों में बीटीसी के समकक्ष प्रशिक्षण देकर 1.37 लाख शिक्षामित्रों को नियमित शिक्षक बना दिया गया था। उसके बाद इस साल सितंबर में हाईकोर्ट ने इन शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद कर दी थी। तब से शिक्षा मित्र एनसीटीई के अधिकारियों, मानव संसाधन मंत्री, गृह मंत्री और प्रधानमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं। इधर, मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखा था।
एनसीटीई ने मुख्य सचिव के पत्र के जवाब में उन्हें पत्र भेजा है। इसमें एनसीटीई ने शिक्षक बनने की अर्हताएं बताई हैं। यह भी कहा है कि टीईटी की अनिवार्यता का नियम 2011 में आया था। ऐसे में 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता नहीं है
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उनसे एफिडेविट भी लिया जाता था कि वे स्थायी नौकरी का दावा नहीं करेंगे। बाद के शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य होगी। पुराने आदेशों का हवाला देते हुए कहा है कि शिक्षक बनने के लिए टीईटी में कोई छूट नहीं है। जहां तक शिक्षामित्रों की बात है तो ये नियमत: नियुक्त किए गए हैं या नहीं, इसके लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। ये नियमित शिक्षक थे या नहीं, इसके लिए भी प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। अब कोर्ट में फिर से सरकार को स्थिति साफ करनी होगी।
शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाए जाने के मुद्दे पर राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने प्रदेश सरकार के पत्र का जवाब दिया है। एनसीटीई ने नियमावली, साफ करते हुए कहा है कि 2010 से पहले नियुक्त और नियमित पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य नहीं है। यह भी साफ किया है कि शिक्षकों (शिक्षामित्रों) की नियमानुसार नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार जिम्मेदार होगी। ऐसे में इस पर फैसला कोर्ट में ही होगा। फिलहाल यह साफ नहीं हो सका है कि 2010 के पहले नियुक्त होने वाले शिक्षकों में शिक्षामित्र शामिल हैं या नहीं। हालांकि सरकार और शिक्षामित्रों के नेता मामला अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं।
यूपी में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाए जाने का आदेश प्रदेश सरकार ने पिछले साल जारी किया था। दो चरणों में बीटीसी के समकक्ष प्रशिक्षण देकर 1.37 लाख शिक्षामित्रों को नियमित शिक्षक बना दिया गया था। उसके बाद इस साल सितंबर में हाईकोर्ट ने इन शिक्षामित्रों की नियुक्ति रद कर दी थी। तब से शिक्षा मित्र एनसीटीई के अधिकारियों, मानव संसाधन मंत्री, गृह मंत्री और प्रधानमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं। इधर, मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखा था।
एनसीटीई ने मुख्य सचिव के पत्र के जवाब में उन्हें पत्र भेजा है। इसमें एनसीटीई ने शिक्षक बनने की अर्हताएं बताई हैं। यह भी कहा है कि टीईटी की अनिवार्यता का नियम 2011 में आया था। ऐसे में 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों के लिए टीईटी की अनिवार्यता नहीं है
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