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सहायक अध्यापक पद पर नौकरी कर रहे 400 शिक्षकों का होगा सत्यापन, डिग्री निरस्त होने की संस्तुति के बाद जांच शुरू

बरेली वरिष्ठ संवाददाता 2004 में आगरा यूनिवर्सिटी से बीएड करने के बाद नौकरी पाने वाले करीब 400 अभ्यर्थियों पर तलवार लटक गई है। इनमें से अधिकांश विशिष्ट बीटीसी कर बेसिक शिक्षा विभाग में नौकरी कर रहे हैं। डायट फरीदपुर ने इनका डाटा खंगालना शुरू कर दिया है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में सत्र 2004-05 में बीएड घोटाला हुआ था। सत्र 2004-05 में विश्वविद्यालय में 8132 छात्रों ने बीएड की परीक्षा दी थी। मगर विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने गोलमाल कर 11132 छात्रों को मार्कशीट जारी की थी। 4000 फर्जी मार्कशीट जारी होने का मामला उछला तो इसकी जांच के लिए हाईकोर्ट ने एसआईटी का गठन करने को कहा था। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में 4000 मार्कशीट को निरस्त करने की संस्तुति की है। बताया जा रहा है कि बरेली में भी इन मार्कशीट के आधार पर लगभग 400 शिक्षक बेसिक शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग और निजी स्कूलों में जॉब कर रहे हैं। विश्वविद्यालय अगर इन लोगों की मार्कशीट निरस्त करेगा तो इन सभी की नौकरी जाना भी तय है। वही मामला खुलने के बाद डायट ने भी अपने स्तर से मार्कशीट का सत्यापन शुरू कराए जाने का फैसला किया है।सूची बनवाकर कराएंगे सत्यापन: डायट प्राचार्य डॉ. सुषमा शर्मा ने कहा कि यह बहुत बड़ा गोलमाल है। आगरा यूनिवर्सिटी से सत्र 2004 में बीएड कर डायट में ट्रेनिंग लेने वालों की सूची बनवाई जा रही है। इन सभी का सत्यापन कराया जाएगा।

वर्ष 2004-05 में आगरा में बीएड की डिग्रियां खूब बिकी थी। आलम यह था कि जिसको कही भी बीएड में एडमिशन नहीं मिल रहा था। वो 1.5 से दो लाख रुपये तक खर्च कर आगरा से बीएड कर आया।

वर्ष 2004-05 में आगरा में बीएड की डिग्रियां खूब बिकी थी। आलम यह था कि जिसको कही भी बीएड में एडमिशन नहीं मिल रहा था। वो 1.5 से दो लाख रुपये तक खर्च कर आगरा से बीएड कर आया।

लोगों को आगरा से बीएड करवाने में सुभाषनगर और संजय नगर के एजेंट ने खूब पैसा कमाया था। उस वक्त लोगों को फंसाने के लिए विज्ञापन भी दिया गया था। ऐसे लोग जो नियमित कक्षाएं नहीं करना चाहते थे, उन्होंने जमकर पैसा खर्च किया था। बाद में 80-90 फीसदी नम्बर के लिए भी 20 से 25 हजार रुपये तक खर्च किये गए थे।

लोगों को आगरा से बीएड करवाने में सुभाषनगर और संजय नगर के एजेंट ने खूब पैसा कमाया था। उस वक्त लोगों को फंसाने के लिए विज्ञापन भी दिया गया था। ऐसे लोग जो नियमित कक्षाएं नहीं करना चाहते थे, उन्होंने जमकर पैसा खर्च किया था। बाद में 80-90 फीसदी नम्बर के लिए भी 20 से 25 हजार रुपये तक खर्च किये गए थे।

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