आगरा। सुप्रीम कोर्ट से समायोजन रद्द होने के बाद शिक्षामित्र बेहद
परेशान हैं। वे अपने अनुभव को अाखिर बेकार कैसे जाने दें।
जीवन का अमूल्य समय तो शिक्षा विभाग को दे दिया, और अब उम्र के इस पड़ाव पर नौकरी लेने जाएं भी तो आखिर कहां। ये शिक्षामित्रों का दर्द है। पत्रिका टीम ने शिक्षामित्र महिला से बात की, तो उसने कहा कि शिक्षामित्रों का दर्द न तो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समझ रहे हैं और न हीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। महिला शिक्षामित्र ने भाजपाइयों से सवाल किया है, जिसका जवाब वह प्राप्त करना चाहती है।
पहला सवाल
गांव अटूस की रहने वाली महिला शिक्षामित्र विजया का पहला सवाल है कि जब चाय बेचने वाला व्यक्ति देश चला सकता है, तो 17 वर्ष से अधिक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षामित्र अयोग्य कैसे घोषित हो गए।
दूसरा सवाल
जब मंदिर में पूजा पाठ करने वाले संत प्रदेश चला सकते हैं, तो शिक्षामित्रों को अयोग्य किस आधार पर माना जा रहा है, जबकि शिक्षामित्रों ने प्रदेश की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को उस समय संभाला, जब ये स्कूल बंदी की कगार पर थे।
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जीवन का अमूल्य समय तो शिक्षा विभाग को दे दिया, और अब उम्र के इस पड़ाव पर नौकरी लेने जाएं भी तो आखिर कहां। ये शिक्षामित्रों का दर्द है। पत्रिका टीम ने शिक्षामित्र महिला से बात की, तो उसने कहा कि शिक्षामित्रों का दर्द न तो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समझ रहे हैं और न हीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। महिला शिक्षामित्र ने भाजपाइयों से सवाल किया है, जिसका जवाब वह प्राप्त करना चाहती है।
पहला सवाल
गांव अटूस की रहने वाली महिला शिक्षामित्र विजया का पहला सवाल है कि जब चाय बेचने वाला व्यक्ति देश चला सकता है, तो 17 वर्ष से अधिक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षामित्र अयोग्य कैसे घोषित हो गए।
दूसरा सवाल
जब मंदिर में पूजा पाठ करने वाले संत प्रदेश चला सकते हैं, तो शिक्षामित्रों को अयोग्य किस आधार पर माना जा रहा है, जबकि शिक्षामित्रों ने प्रदेश की चरमराती शिक्षा व्यवस्था को उस समय संभाला, जब ये स्कूल बंदी की कगार पर थे।
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