इसमें राज्य एवं केंद्र सरकार की सेवाओं में राज्य के मुक्त विवि से पीएचडी डिग्री धारकों के साथ न्याय करने की मांग की गई है।
मुक्त विवि से सैकड़ों अभ्यर्थी वर्ष 2007 से पीएचडी डिग्री धारक हैं। विश्वविद्यालय के कुलाधिपति अर्थात प्रदेश के राज्यपाल दीक्षांत समारोह में डिग्री प्रदान करते हैं। यही प्रक्रिया परंपरागत विश्वविद्यालयों में पीएचडी की उपाधि प्रदान करने में की जाती है। ऐसे में मुक्त विवि की डिग्री पर असमंजस कैसे हो सकता है। संघ के कार्यकारी मंत्री डॉ. आलोक त्रिपाठी का कहना है कि जब मुक्त विवि की पीएचडी उपाधि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सभी नियमों एवं शर्ताे को पूरा करने के बाद दी जाती है। ऐसे में नियमित विश्वविद्यालय एवं इससे जुड़े कॉलेजों द्वारा शिक्षक चयन प्रक्रिया में उपेक्षा करना ठीक नहीं है। कहा कि मुक्त विवि से उपाधि प्राप्त करने वाले नेट-जेआएफ उपाधि धारक भी उपेक्षा के शिकार हैं। इस संबंध में मुक्त विवि के कुलपति, कुलाधिपति एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से गुहार लगाई गई है। सभी को भेजे गए मांग पत्र में शासन एवं कुलाधिपति से मामले में हस्तक्षेप कर यूजीसी को इस संबंध में समानता का आदेश जारी करने के लिए निर्देशित करने की मांग की गई है।
बैठक में डॉ. सुरेंद्र सिंह यादव, डॉ. संजय मिश्र, डॉ. अरूण सिंह, डॉ. एस कुमार, डॉ. चंद्रभान मौर्य और डॉ. चंद्रशेखर आदि मौजूद रहे।
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प्रमाणपत्र जारी करने की मांग
इलाहाबाद : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2016 के अनुरूप उन सभी पीएचडी धारकों को निर्धारित पांच प्वाइंट का प्रमाणपत्र प्रदान किया जाना है, जो नेट-जेआरएफ उत्तीर्ण नहीं हैं। उत्तर प्रदेश मुक्त विवि के दर्जनों अभ्यर्थी जो 11 जुलाई 2009 के पूर्व पीएचडी उपाधि के लिए पंजीकृत हुए थे, सभी ने विश्वविद्यालय से निर्धारित प्रारूप में प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की है। यूजीसी के दिशा निर्देशानुसार पांच निर्धारित प्वाइंट को विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रति कुलपति, डीन एकेडेमिक अथवा किसी विद्या शाखा के डीन द्वारा प्रदान करना है। यह प्रमाणपत्र विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सहायक आचार्य पद पर नियुक्ति में अनिवार्य रूप से संलग्न करना है। संघ ने त्वरित कार्यवाई करते हुए प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की है।