वार्ता : 5 अक्टूबर 2016 की सुनवाई टी ई टी मुकदमे के लिए एक महत्त्वपूर्ण तिथि

वार्ता : सोशल मीडिया पर साथियों व भाई बहनों की व्यग्रता सदैव मुझे लिखने को मजबूर करती है । दिनांक 5 अक्टूबर 2016 की सुनवाई टी ई टी मुकदमे के लिए एक महत्त्वपूर्ण तिथि है । यह भी स्पष्ट कर दूँ कि सरकार के क्लोज़र रिपोर्ट से विवाद क्लोज नहीं होगा ।

माननीय न्यायमूर्ति ने दिनांक 7 दिसम्बर 2015 को याचियों को राहत दी और याची राहत की मात्र एक वजह थी कि न्यायमूर्ति ने समझा कि 14640 शीट मात्र रिक्त है और 12091 लोग ही मात्र दावेदार हैं ।
मेरे द्वारा प्रत्यावेदन की डिमांड करने के बाद सरकार ने 75 हजार लोगों का प्रत्यावेदन लेकर मात्र 12091 लोगों को पात्र बताया और जो रिक्त शीट 14640 बताया था उसमें न याची का चयन किया न 12091 का चयन किया 12091 से मात्र 506 लोग ही चयन प्राप्त कर सके , चयन वही 75 हजार लोगों में से पाये जो कि सरकार की नजर में अयोग्य थे अर्थात 12091 में उनका नाम नहीं था ।
अफवाह है कि सरकार क्लोज़र रिपोर्ट लगाएगी तो क्लोज़र रिपोर्ट लगाने के बाद भी सरकार ने अब तक जितना भी शपथ पत्र जमा किया है उसपर बहस होगी ।
फाइनल आर्डर में किसी के भी मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होगा ।
मुझे यह कहने में हिचक नहीं कि 72825 प्रशिक्षु चयन की प्रक्रिया और याची राहत चयन की प्रक्रिया संविधान के मौलिक अधिकारों का उलंघन करती हैं , आपके मन में यह सवाल आयेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने याची राहत देकर क्यों खुद उस संविधान का उलंघन किया जिसकी वह रक्षक है तो इसका एकमात्र जवाब है कि कोर्ट ने समझा कि कोई दावेदार ही नहीं है ।
प्रशिक्षु प्रोसेस में माननीय न्यायमूर्ति श्री HL दत्तू ने मात्र बच्चों के अधिकारों का उलंघन न हो इसके लिए हाई कोर्ट के आदेश को अंतरिम रूप से आगे बढ़ाया ।
न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा उक्त अवैध प्रोसेस को वैध करने के संपूर्ण विफल प्रयास कर चुके हैं ।
अब उनको या तो सम्पूर्ण प्रोसेस निरस्त करना होगा अन्यथा सबको राहत देनी होगी ।
इस विवाद में याची राहत शब्द कोई नया शिगूफा नहीं है ।
एकल बेंच में न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन ने अप्रेंटिस टीचर शब्द का प्रयोग किया था इसलिए उस प्रोसेस को
सरकार द्वारा रद्द किये जाने के बाद उसे बहाल करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी ।
उस रद्द प्रोसेस को खंडपीठ ने सहायक अध्यापक का प्रोसेस बताकर बहाल किया था ।
मुकदमे की विडंबना तो देखिये अशोक खरे खंडपीठ में बोले कि उक्त भर्ती का रूल से सम्बन्ध नहीं है अतः उसे बहाल कर दीजिए और न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने उनकी बात ख़ारिज कर दी और कहा कि रूल फॉलो होगा ।
अशोक खरे की बात कोर्ट ने खारिज की परंतु अशोक खरे के मुअक्किल लाभान्वित हुये क्योंकि एकल बेंच द्वारा अप्रेंटिस टीचर के प्रोसेस को न बहाल करने के फैसले को न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने सहायक अध्यापक का प्रोसेस बताकर बहाल किया ।
इसके बावजूद सरकार ने रूल फॉलो नहीं किया और अप्रेंटिस टीचर ही बनाया और बाद में मौलिक नियुक्ति दी ।
सुप्रीम कोर्ट में वादी सरकार थी और उसकी जिरह पर प्रतिपक्ष को नोटिस मिला परंतु अंतरिम राहत भी प्रतिपक्ष ही पाया, यह राहत प्रतिपक्ष को नहीं अपितु RTE के कारण प्राइमरी में पढ़ रहे बच्चों को थी कि उनकी शिक्षा बाधित न हो ।
इस प्रकार अप्रेंटिस टीचर और याची टीचर दोनों मौलिक नियुक्ति की प्रक्रिया से सहायक अध्यापक बनाये गये या बनाये जायेंगे ।
वादी के रूप में कपिल देव व अन्य को दिनांक 7 दिसम्बर 2015 को राहत मिली क्योंकि सरकार ने 2500 पद दावेदार विहीन बता दिया था, यदि सरकार 75 हजार प्रत्यावेदनों में 14640 को योग्य बताया होता और उतनी ही रिक्ति बतायी होती तो याची राहत न मिलती ।
मेरा मकसद प्रत्यावेदन के जरिये उक्त 72825 अवैध चयन प्रक्रिया का पोल खोलना था ।
12091 और याची राहु केतु की तरह अमृत पा गये अब वो अलग बात है कि सरकार ने याची को अमृत पिलाया परंतु 12091 की संख्या बड़ी होने के कारण उनको अमृत पान नहीं कराया ।
12091 और चयनित याची भी अवैध हैं लेकिन अचयनित और चयनित प्रशिक्षु के बीच यही दोनों लिंक मार्ग हैं । हाई कोर्ट में वादियों के वकील अशोक खरे और अभिषेक श्रीवास्तव ने बगैर रूल के प्रोसेस को कोर्ट को गुमराह करके बहाल करवाया था तो मेरा मकसद सुप्रीम कोर्ट में सभी जिन्न को बोतल से बाहर निकालना था जिसमे मैं कामयाब रहा ।
राकेश द्विवेदी को कोर्ट सुनती थी इसलिए उनकी भूमिका लीडिंग की थी ।
अब सरकार क्लोज़र रिपोर्ट लगाकर अवैध प्रोसेस को तब तक नहीं बचा पायेगी जब तक कि सभी टी ई टी उत्तीर्ण बीएड बेरोजगार नियुक्ति न पा जायेंगे ।
वर्तमान में इस तरह इस प्रोसेस से टी ई टी में न्यूनतम 60/55 फीसदी अंक पाने वाला भी नौकरी कर रहा है तो तमाम अधिक अंक पाने वाले रूल फॉलो न होने के कारण अप्रेंटिस अर्थात प्रशिक्षु शिक्षक न बन सके तो तमाम लोग कोर्ट में उस अवैध प्रोसेस का विरोध न करने अर्थात याची न होने के कारण चयन न पा सके ।
इसके बावजूद मेरा मानना है याची होना कोई चयन का आधार नहीं है इसलिए जो कोर्ट में नहीं पहुंचे उनको भी न्याय मिलेगा ।
जो कुछ भी आज हो रहा है इससे एक व्यापक समुदाय या तो लाभान्वित होगा अथवा या फिर सब कुछ नियम संगत होने पर एक बड़ा समुदाय जो कि नौकरी कर रहा है टूट जाएगा ।
अंतिम निर्णय में सिर्फ न्याय होगा ।
न्याय का मतलब यह नहीं कि नौकरी मिले बल्कि न्याय का मतलब यह हुआ कि आप को नौकरी जरूर मिलेगी यदि आपसे कम अंक वाला कोई नौकरी कर रहा है बशर्ते कि कम अंक वाले की नौकरी न डूबे ।
शिक्षामित्रों को दस फीसदी कोटा किस नियम के तहत मिला यह जवाब किसी के पास नहीं है , जबकि यह सब जानते हैं कि RTE एक्ट
के बाद बीएड के लिए पैरा तीन में पहले नियुक्ति और रूल अनुपालन का प्राविधान है ।
मैंने शुरू से ही यह लड़ाई मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए लड़ा ।
मुझे याद है जब मेरे अधिवक्ता ने कहा था कि न्यायमूर्ति यदि आप भर्ती को 72825 पदों पर सीमित मानते हैं तो टीईटी 105/97 की न्यूनतम क्राइटेरिया नहीं बना सकते हैं और यदि क्राइटेरिया बना रहे हैं तो पद की लिमिट ख़त्म हो जाती है फिर आपको कई चरणों में सबको नियुक्त करना पड़ेगा ।
उस वक़्त शिक्षामित्रों के हिमायती अभिषेक श्रीवास्तव ने मात्र 72825 की विज्ञप्ति का हवाला दिया था जिससे न्यायमूर्ति पलट गये ।
अभिषेक श्रीवास्तव यह भी भूल गये थे कि खंडपीठ में वह टी ई टी मेरिट टीम के वकील थे और कोर्ट को गुमराह करके अवैध 72825 की विज्ञप्ति जो रूल पर नहीं थी फिर भी रूल पर बताकर बहाल करवाया था ।

मैंने हर क्षण संघर्ष का हर लम्हा देखा है , इसलिए भविष्य को लेकर तनिक भी भय नहीं है ।
ईश्वर के घर में देर है अंधेर नहीं है ।
सत्य की विजय होगी ।
ईश्वर सबका कल्याण करें ।
माँ विजयते ।

राहुल पाण्डेय
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