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यूपी वालों तुम डरपोक और नकारा हो, तुम में लड़ने की हिम्मत नहीं! आंदोलन करने के मामले में यूपी बहुत पीछे

लखनऊ. यूपी देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है। देशी की राजनीति में भी यूपी की भूमिका हमेशा से अहम रही है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यूपी वाले किसी भी सरकार से लड़ने की हिम्मत नहीं रखते।
दरअसल इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि आंदोलन करने के मामले में यूपी बहुत पीछे है। साल 2009 से 2014 के बीच हुए आंदोलनों में केवल एक प्रतिशत आंदोलन यूपी में हुए हैं। लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश में इतने कम आंदोलन यह सवाल खड़ा करता है कि सिस्टम से लड़ने की हिम्मत यूपी वाले नहीं कर पाते।

क्या कहती है रिपोर्ट
जिन राज्यों में साक्षरता दर अधिक है, उन राज्यों में विरोध प्रदर्शन की घटनाएं अधिक हुई हैं और इनमें से लगभग आधे राजनीतिक दलों के नेतृत्व में हुए हैं। विश्लेषण के लिए वर्ष 2009 से 2014 के बीच का समय चुना गया। इस अवधि के दौरान पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (बीपीआरडी) के आंकड़ों से पता चलता है कि छात्र के नेतृत्व वाले आंदोलन (148 फीसदी) से देश की शांति ज्यादा भंग हुई है।

उत्तर प्रेदश और बिहार जैसे राज्य, जहां सामूहिक रुप से भारत की 25 फीसदी आबादी रहती है, वहां इस अवधि ( वर्ष 2009-14) के दौरान 1 फीसदी से भी कम आंदोलन हुए हैं। ये दोनों राज्य, आबादी चार्ट में पहले और तीसरे स्थान पर हैं और दोनों की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं। बिहार का साक्षरता दर सबसे कम है।

इसी तरह, देश की आबादी के संदर्भ में अविभाजित आंध्र प्रदेश का स्थान पांचवा है, लेकिन साक्षरता दर केवल 67 फीसदी है। इस अवधि के दौरान रिकॉर्ड किए गए सभी आंदोलन में से आंध्र प्रदेश की हिस्सेदारी केवल 1.55 फीसदी है। जिन राज्यों में साक्षरता दर अधिक है, उन राज्यों में विरोध प्रदर्शन की घटनाएं अधिक हुई हैं और इनमें से लगभग आधे राजनीतिक दलों के नेतृत्व में हुए हैं। वर्ष 2009 से 2014 के बीच, भारत भर में 420,000 विरोध प्रदर्शन हुए हैं। यानी राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिदिन औसतन 200 का आंकड़ा है। इन आंकड़ों में पिछले पांच वर्षों में 55 फीसदी की वृद्धि हुई है।


भारत में छात्र विरोध प्रदर्शन में कर्नाटक आगे
कर्नाटक में साक्षरता दर 75.6 फीसदी है। राष्ट्रीय औसत 74 फीसदी है। कर्नाटक की राजधानी, बैंगलुरु में कॉलेजों की संख्या 911 है, जो अन्य किसी भारतीय शहर की तुलना में ज्यादा है। वर्ष 2009 से 2014 के बीच पुलिस द्वारा दर्ज की गई सभी विरोध प्रदर्शनों में से तमिलनाडु, पंजाब, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक है। मध्य प्रदेश को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। वर्ष 2009 से 2014 के बीच, भारत भर में 420,000 विरोध प्रदर्शन हुए हैं। यानी राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिदिन औसतन 200 का आंकड़ा है। इन आंकड़ों में पिछले पांच वर्षों में 55 फीसदी की वृद्धि हुई है।


अधिकांश आंदोलन में राजनीतिक पार्टियों का हाथ
देश में दर्ज किए गए 32 फीसदी विरोध प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक दलों और उनके सहयोगियों का हाथ है। अगर हम उनके छात्र संगठनों और श्रमिक यूनियनों को जोड़ते हैं तो यह प्रतिशत 50 फीसदी तक हो सकता है। प्रदर्शन के मामले में देश की राजधानी, दिल्ली सातवें स्थान पर है। अध्ययन के लिए लिए गए अवधि के दौरन दिल्ली में 23,000 प्रदर्शन हुए हैं । यहां प्रदर्शन स्थानों को नामित किया है। इनमें सबसे प्रसिद्ध हैं जंतर मंतर, रामलीला मैदान और इंडिया गेट। इन स्थानों पर लगभग रोज ही कोई न कोई प्रदर्शन होता है। इन स्थानों ने 'एक रैंक, एक पेंशन' के लिए सेवानिवृत्त सैनिकों की मांग, दिसंबर 2012 निर्भया मामले पर प्रदर्शन और अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को देखा है।


लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कविराज की मानें तो यूपी में आंदोलन कम होने का कारण राजनीतिक पार्टियों का समर्थन न मिलना है। यहां अगर विधानसभा के सामने कोई संगठन प्रदर्शन करने जाता है तो उस पर लाठी चार्ज कर दिया जाता है। हाल ही में एक शिक्षक संगठन के नेता की मौत भी हो गई थी। ऐसे में कैसे आंदोलन होंगे।
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