यूपी की भर्ती संस्थाएं: भंवर में फंस गईं भर्तियां

नई दिल्ली,  उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद को 5 मई तक 24 भर्तियों के तहत 3,996 पदों के लिए चयन प्रक्रिया पूरी करनी थी. 21 मार्च को आयोग में सहायक अभियोजन अधिकारी और एलोपैथी चिकित्साधिकारी पदों के लिए इंटरव्यू की तैयारी चल रही थी.
तभी शाम को मुक्चय सचिव राहुल भटनागर का फोन आयोग के सचिव अटल कुमार राय के पास आया. इसके बाद सारी गहमागहमी शांत हो गई. मुख्य सचिव ने आयोग में चल रहे सभी इंटरव्यू को फौरन रोकने का मौखिक आदेश दिया. आयोग के अफसरों ने लिखित आदेश की मांग की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

सरकार से टकराव मोल लेने की जगह आयोग ने भर्ती प्रक्रिया रोकना ज्यादा मुनासिब समझा. हालांकि आयोग के एक अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, ''अगर सरकार लिखित आदेश करती तो कोर्ट इसे रद्द कर देता. देश के संविधान का अनुच्छेद 317 कहता है कि राज्य लोक सेवा आयोग की कोई भी जांच राज्य सरकार नहीं कर सकती है." इस अफसर से पूछा गया कि सरकार के पास अधिकार नहीं था फिर भी आयोग ने सरकार के मौखिक आदेश का पालन क्यों किया? जवाब मिला ''हमने केवल सरकार की गलतफहमी दूर करने के लिए भर्तियां रोकी हैं. अगर आयोग भर्तियां नहीं रोकता तो गलत संदेश जाता."

भारी बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार के सामने अपने उस चुनावी वादे को पूरा करने की चुनौती आ पड़ी है जिसमें उसने प्रदेश के चयन आयोगों और बोर्ड की भर्तियों की जांच कराने की बात कही थी. फिलहाल, सरकार के निर्देश पर लोक सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग समेत अन्य कई भर्ती बोर्डों की 50 हजार से अधिक पदों पर चल रही भर्ती प्रकिया रुक गई है. नौकरी की आस लगाए लाखों अभ्यर्थी आक्रोशित हैं और अगर सरकार ने समय रहते रुकी हुई भर्तियों पर कोई निर्णय नहीं लिया तो पूरे प्रदेश में अभ्यर्थियों के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है.

आयोग की शुचिता पर संदेह
राज्य सिविल सेवा में जाने का सपना पालने वाले अभ्यर्थियों के लिए इलाहाबाद स्थित लोक सेवा आयोग किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में आयोग की शुचिता किस तरह संदेह के घेरे में आई है उसकी बानगी हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दायर मुकदमे ही जाहिर कर देते हैं. पांच वर्षों में लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं से संबंधित 558 याचिकाएं हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. छात्रों की तरफ से हाइकोर्ट में पैरोकार आलोक मिश्र कहते हैं, ''आयोग के पूर्व चेयरमैन अनिल यादव के कार्यकाल की कोई ऐसी भर्ती प्रक्रिया नहीं थी जिसमें गड़बड़ी का आरोप लगाकर कोर्ट में याचिका दाखिल न हुई.

हो." कोर्ट के आदेश पर अनिल यादव को हटना पड़ा, लेकिन गड़बडिय़ों का सिलसिला नहीं थमा. पीसीएस-2015 की मुख्य परीक्षा में रायबरेली की अभ्यर्थी सुहासिनी बाजपेयी की कॉपी बदलने के मामले ने आयोग की छवि को तार-तार कर दिया. कॉपी बदल जाने के बाद सुहासिनी मुख्य परीक्षा में फेल हो गई थीं लेकिन जब इनकी असल कॉपी जांची गई तो ये इंटरव्यू के योग्य निकलीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 मार्च को वाराणसी की रोहनिया रैली में यह मुद्दा उठाया था. आलोक मिश्र ने कोर्ट में एक याचिका दायर करके ऐसे चयनित अभ्यर्थियों की जानकारी दी है जो आयोग की परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए हैं.

इन गड़बडिय़ों के खिलाफ आवाज उठाने वाले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सामने पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के कार्यकाल और उसके बाद हुई भर्तियों (देखें बॉक्स) की सीबीआइ जांच की चुनौती आ पड़ी है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.सी. वर्मा बताते हैं ''चुनाव में गैर-यादव जातियों को बीजेपी के पक्ष में लामबंद करने के लिए भी लोक सेवा आयोग प्रकरण कामयाब रहा है. यहां परीक्षा में जिस तरह यादव अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के आरोप लगे उसने गैर यादव जातियों में समाजवादी पार्टी के खिलाफ गुस्सा पैदा किया."

शिक्षक कर रहे प्रधानाचार्य का चयन
जो व्यक्ति खुद प्रधानाचार्य बनने के लायक नहीं, उसके जिम्मे प्रधानाचार्य चयन करने का जिम्मा है. ऐसी उलटी गंगा उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में बह रही है. बोर्ड में इस वक्त अध्यक्ष समेत कुल नौ सदस्य हैं. इनमें एक सदस्य इटावा के के.के. इंटर कॉलेज में एलटी ग्रेड शिक्षिका हैं. एक अन्य सदस्य वर्ष 2007 में विषय विशेषज्ञ से प्रवक्ता बनी हैं. इनके सहयोगी एक सदस्य शिक्षा विभाग में लिपिक एलटी ग्रेड शिक्षक हैं और सीधे चयन बोर्ड के सदस्य बन गए. ये तीनों सदस्य स्वयं प्रधानाचार्य पद पर चयन की योग्यता नहीं रखते हैं लेकिन बोर्ड के सदस्य के नाते इन पर प्रधानाचार्य के चयन का जिम्मा है.

मामला सामने आने पर हाइकोर्ट ने जुलाई, 2015 में इन सदस्यों के काम करने पर रोक लगा दी थी. हालांकि नौ महीने बाद पिछले वर्ष अप्रैल में याचिकाकर्ता के शिकायत वापस ले लेने के बाद हाइकोर्ट ने पूरा मामला ही समाप्त कर दिया था. भर्ती संस्थाओं में गड़बडिय़ों के खिलाफ संघर्ष कर रहे अमित राणा कहते हैं, ''पूरे मामले को उठाने वाले अभ्यर्थी ने किस दबाव में अपनी याचिका वापस ली? इसकी जांच होनी चाहिए. अयोग्य सदस्य योग्य अभ्यर्थी का चयन कैसे कर सकेंगे."  पिछले वर्ष सपा सरकार ने हरियाणा के एक डिग्री कॉलेज में शिक्षक डॉ. एम. उमर को भी माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड में सदस्य के रूप में नियुक्त किया था. नियमतः वही व्यक्ति बोर्ड में बतौर सदस्य नियुक्त हो सकता था जो यूपी सरकार द्वारा स्थापित डिग्री कॉलेज या विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा हो. पूर्व सपा सरकार के एक कैबिनेट मंत्री के करीबी को सदस्य बनाने के लिए नियमों का सरेआम उल्लंघन किया गया. हालांकि जब तक डॉ. उमर ज्वाइन करते विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई और बीजेपी सरकार बनने के बाद इनकी ज्वाइनिंग अभी लंबित है.

किसी को रोजगार, कोई हुआ बेरोजगार
सरकार ने चयन परीक्षा न्न्या रोकी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के अभ्यर्थियों में उबाल आ गया. एक परीक्षा के ज्यादातर अभ्यर्थी नौकरी पा गए और कुछ सरकार के आदेश की जद में आकर बेरोजगार हो गए. मामला माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की 2013 में जारी हुई ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर (टीजीटी) और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर (पीजीटी) के 8,000 पदों पर नियुक्ति का है. कुल 45 विषयों के इन पदों के लिए फरवरी, 2015 में परीक्षा हुई थी. मार्च से पहले 39 विषयों का अंतिम परिणाम भी घोषित हो गया था और सफल अभ्यर्थी अलग-अलग कॉलेजों में प्रवक्ता पद पर ज्वाइन भी कर चुके हैं.

हिंदी, संस्कृत, सामाजिक विज्ञान, शारीरिक शिक्षा, सिलाई, कताई-बुनाई विषयों की परीक्षा का परिणाम पूरा हो चुका है लेकिन सरकार के आदेश से इसे रोक दिया गया है. माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में विसंगतियों के खिलाफ आवाज उठा रहे विक्की खान कहते हैं, ''एक ही परीक्षा के अभ्यर्थी नौकरी कर रहे हैं और दूसरे भटक रहे हैं. यह न्यायोचित नहीं है." परिणाम पर रोक से गुस्साए अभ्यर्थी आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं. अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों पर रोक से गुस्साए अभ्यर्थियों का आक्रोश 3 अप्रैल को लखनऊ की सड़कों पर फूट पड़ा. माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्य रहे डॉ. पी.सी. सिंह कहते हैं, ''सरकार को भर्ती प्रक्रिया रोकने का ठोस कारण बताना होगा. ऐसा न करने पर अभ्यर्थियों को कोर्ट से तो राहत मिलेगी और सरकार को उनके गुस्से का सामना करना पड़ेगा."

भर्ती आयोग पर कसेगा शिकंजा
चयन प्रक्रियाओं में गड़बड़ी की शिकायतें संज्ञान में आने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 3 अप्रैल को लोक सेवा आयोग के चेयरमैन अनिरुद्ध यादव को अपने लखनऊ कार्यालय में तलब किया. मुख्यमंत्री ने यादव से पिछले पांच वर्षों में हुई भर्तियों और आयोग के सदस्यों का ब्योरा मांगा है. इसके दो दिन बाद राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष राज किशोर यादव ने अपना इस्तीफा सरकार को सौंप दिया. इससे संकेत मिले हैं कि सरकार की संभावित कार्रवाई को लेकर भर्ती आयोग सशंकित हो उठे हैं. राज्य के सभी मुख्य चयन आयोगों, बोर्ड पर गड़बड़ी की शिकायतें हैं (देखें बॉक्स). उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा में बड़ी संख्या में कॉपियां सादी मिलने के बाद भी परिणाम जारी किया गया.

इसी तरह राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में ग्राम विकास अधिकारी और अन्य भर्तियों में गड़बडिय़ों के मामले कोर्ट तक पहुंचे हैं. मुख्य सचिव कार्यालय में तैनात एक अधिकारी बताते हैं, ''सरकार सभी भर्ती आयोगों, बोर्ड के सदस्यों और अध्यक्ष की योग्यता का अध्ययन कर रही है. नियमविरुद्ध तैनाती पाने वालों पर कार्रवाई की जा सकती है." हालांकि आयोग या चयन बोर्ड के सदस्यों को हटाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा. इसमें कई कानूनी अड़चनें हैं. ऐसे में सरकार चयन बोर्ड को भंग कर इसका नए सिरे से गठन कर सकती है. पूर्व में कल्याण सिंह सरकार ऐसा कर चुकी है. अब योगी सरकार के आगे सबसे बड़ी जिम्मेदारी भर्ती संस्थाओं का विश्वास बहाल करने की है. अगर सरकार इसमें कामयाब हुई तो भर्ती आयोगों, बोर्डों के ''अच्छे दिन" फिर वापस लौट आएंगे.
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