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NCTE काउंटर : UPTET मेरिट लीडर एस०के० पाठक FACEBOOK POST

प्यारे साथियों सादर अभिनन्दन तकरीबन आज से 18 साल पहले की बात है जब पहली बार मेरा उच्च न्यायलय जाना हुआ । अदालत थी माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ।
मामला कुछ इस प्रकार था कि गांव में पैतृक आवास से कुछ ही दूरी पर लगभग 2 बीघे जमीन की रजिस्ट्री (बैनामा) पिता जी के नाम से हुयी थी जो की उस स्थान की सर्वाधिक मालियत की जमीन थी जो की एक अनचाहे विवाद का कारण बनी ।यहां इस बात का अनायास ही सही किन्तु उल्लेख करना जरूरी है कि तब टेट मोर्चे का गठन नहीं हुआ था । खैर मुकदमा चला और जिले के सक्षम न्यायलय से हमारे पक्ष में निर्णीत हुआ ।मेरा विपक्ष उच्च न्यायलय गया और उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि पर दोनों पक्षों को यथा स्थिति कायम रखने का आदेश दिया साथ साथ इशू नोटिस भी हुआ । इसके पहले मेरा इन सब बातों से कोई लेना देना नहीं था मैं विशुद्ध रूप से विद्यार्थी जीवन में था और पूज्य पिता जी के वरिष्ठ अधिवक्ता एस. सी .मिश्रा , एस. के. कालिया तथा कमरुल हसन जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं से अच्छे संबंध थे और यही वो चैंबर और वरिष्ठ अधिवक्ता थे जो 1990 के दशक में पिता जी के मामलों को देखते थे जिसमें एस सी मिश्रा की भूमिका प्रमुख हुआ करती थी । इन सबके बावजूद अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में मेरे दादा जी जो की सिंचाई, विकास,शिक्षा,एवम राजस्व आदि विभागों में लगभग 40 वर्ष की राजकीय सेवा देने के पश्चात वर्ष 1989 में सेवानिवृत्त हो चुके थे उन्होंने इस मुकदमे की फाइल मुझे सौंपी यद्यपि मैं विधिक ज्ञान और अनुभव दोनों मामलों में शून्य था और उच्च न्यायलय का आदेश भी हमारे विपरीत । मैंने उनसे बेसिक कांसेप्ट समझा और लखनऊ पहुंचा और पहला निर्णय जो मैंने लिया वह था वकील बदलने का ।मैंने इस मामले की पैरवी के लिए दादा उपनाम से प्रख्यात श्री डी सी मुखर्जी का चुनाव किया और उस वर्ष के नवरात्र की पूर्व् सन्ध्या पर उनके साथ इस मामले पर गहन विचार विमर्श हुआ और उन्होंने नवरात्र बाद काउंटर लिखाने के लिए समय दिया । आप सोच रहे होंगे की यह कहानी मैं आपको क्यों सुना रहा हूँ और वास्तव में अभी तक मैंने आपको कहानी ही सुनाई लेकिन अब कहानी का अगला भाग सीधे सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से सम्बंधित है....आगे चलते हैं .....|
 मैं श्री मुखर्जी के यहाँ काउंटर लिखवाने पहुंचा वे स्वयम मुझसे डिस्कस करते जा रहे थे और काउंटर लिखवाते जा रहे थे ।तकरीबन आधे से अधिक लिखवाने के बाद एक बिंदु पर रुक गए ।उन्होंने कहा घर जाइये या तो अपने दादा जी से पूछकर आइये या उनको बुला लीजिये तब आगे लिखाया जाएगा ।दुसरे शब्दों में कहूँ तो उस विंदु पर मेरे द्वारा दी जा रही जानकारी से श्री मुखर्जी न तो सहमत थे और न ही संतुष्ट ।खैर मैंने दुबारा तैयारी की, काउंटर दाखिल हुआ विपक्ष की अपील डिसमिस हुयी हाइकोर्ट का आदेश मेरे पक्ष में हुआ और श्री मुखर्जी भी अब इस दुनियां में नहीं रहे । अब आते हैं अपने मुकदमे पर ............. जस्टिस यू यू ललित ने ncte के वकील से कहा मौखिक नहीं शपथपत्र दाखिल करिये यानि लिखवाकर लाइए वो भी किससे ??? टॉप मोस्ट पर्सन यानी दादा जी से ।इसका साधारण आशय क्या है ????मेरी समझ से यही की मैं आपकी बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता आप अपने घर के मुखिया से लिखवाकर लाइए तभी मैं इस बात पर विचार करूंगा यानी मैं आप की बात से कतई सहमत नहीं हूँ ।फिलहाल मेरी अपनी समझ यही है बाकी सभी अपने मुताबिक समझने के के लिए स्वतंत्र हैं । एक बात और अभी मुझे ज्वाइन किये दो महीने ही हुए थे क्रियात्मक प्रशिक्षण चल रहा था ।एक बच्चे ने मुझसे कहा ----सर जी 7 दिन कै छुट्टी चाही ।हमने पूछा क्यों? बच्चे ने कहा अम्मा कहीं है ।हमने पूछा किस लिए ?बच्चे ने कहा हमरे मौसी के यहाँ विआह है ।हमने पूछा किसका बच्चे ने कहा कि हमरे मौसी के जेठानी के बिटिया का ।मैं भी अपने बच्चे की बात से सहमत नहीं था । हमने कहा बेटा कल अपने पापा को साथ लेकर स्कूल आना तब देखेंगे । स्पष्ट है कि न्यायधीश द्वय ncte के अधिवक्ता के तर्कों से सहमत नहीं थे ।इसलिए दादा जी को तलब किया गया ।जिस दिन जस्टिस यू यू ललित ने ncte के वकील से ncte के टॉप मोस्ट पर्सन का लिखित जवाब मांगा उसके बाद बहुत से मित्रों ने इनबॉक्स में प्रश्न किया ।पूरे प्रकरण पर मेरा जो विचार था मैंने आपके समक्ष हूबहू रख दिया ।बाकी आप खुद समझदार हैं । खैर अब दादा जी (ncte)का जवाब भी आ चुका है जिस पर विस्तार से चर्चा अगली पोस्ट मेंकरूंगा ।आज सिर्फ इतना ही........ सधन्यवाद सत्यमेवजयते आपका एस के पाठक कार्यकर्त्ता टेट मोर्चा उत्तरप्रदेश

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