इलाहाबाद : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शिक्षामित्रों का बतौर शिक्षक समायोजन रद करते हुए कड़ी टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा है कि उ.प्र. बेसिक शिक्षा (अध्यापक सेवा) नियमावली 1981 में राज्य सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के उपबंधों के विपरीत संशोधन किए।
सरकार ने अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन के लिए अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। केन्द्र व एनसीटीई द्वारा निर्धारित मानकों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना अधिकार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए।
1981 की सेवा नियमावली जूनियर बेसिक एवं सीनियर बेसिक स्कूलों के लिए मानक निर्धारित करती है। हाई कोर्ट ने कहा कि अवैध नियुक्ति और अनियमित नियुक्ति में बड़ा फर्क है। अनियमित को कोर्ट नियमित कर सकती है, लेकिन अवैध नियुक्ति अवैध है और वह नियमित नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति सरकार ने बिना पद और योग्यता के कर दी थी, इसलिए यह अवैध हैं और कोर्ट इसे वैध नहीं कर सकती।
सपा के वोट बैंक का सवाल
हाई कोर्ट का फैसला सरकार की साख पर पड़ने के साथ ही यह सपा के वोट बैंक के लिए भी बड़ा सवाल है। लोकसभा चुनाव में भी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इसे वोट बैंक से जोड़ते हुए चेताया था कि हम ही आपको शिक्षक बनाएंगे। ऐसे में उम्मीद है कि सरकार भी इनके लिए कोई न कोई रास्ता निकलाने की कोशिश करेगी।
पढ़ाई पर पड़ेगा खराब असर
कोर्ट के इस फैसले से स्कूलों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा। शिक्षक बनने वालों को फिर शिक्षा मित्र बनाया जाता है या हटाया जाता है, तो दोनों ही स्थितियों में पढ़ाई प्रभावित होगी। प्रदेश में करीब 3.5 लाख शिक्षक हैं। इसमें से 1.72 लाख शिक्षा मित्रों के कम हो जाने से छात्र-शिक्षक अनुपात काफी कम हो जाएगा।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
सरकार ने अध्यापक नियुक्ति के नए मानक तय किए, जो असंवैधानिक है। शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्र अध्यापक नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता नहीं रखते। सरकार ने शिक्षामित्रों की नियुक्ति व समायोजन के लिए अध्यापक की परिभाषा ही बदल डाली। केन्द्र व एनसीटीई द्वारा निर्धारित मानकों के विपरीत राज्य सरकार ने बिना अधिकार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के अतिरिक्त स्रोत बनाए।
1981 की सेवा नियमावली जूनियर बेसिक एवं सीनियर बेसिक स्कूलों के लिए मानक निर्धारित करती है। हाई कोर्ट ने कहा कि अवैध नियुक्ति और अनियमित नियुक्ति में बड़ा फर्क है। अनियमित को कोर्ट नियमित कर सकती है, लेकिन अवैध नियुक्ति अवैध है और वह नियमित नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों की नियुक्ति सरकार ने बिना पद और योग्यता के कर दी थी, इसलिए यह अवैध हैं और कोर्ट इसे वैध नहीं कर सकती।
सपा के वोट बैंक का सवाल
हाई कोर्ट का फैसला सरकार की साख पर पड़ने के साथ ही यह सपा के वोट बैंक के लिए भी बड़ा सवाल है। लोकसभा चुनाव में भी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इसे वोट बैंक से जोड़ते हुए चेताया था कि हम ही आपको शिक्षक बनाएंगे। ऐसे में उम्मीद है कि सरकार भी इनके लिए कोई न कोई रास्ता निकलाने की कोशिश करेगी।
पढ़ाई पर पड़ेगा खराब असर
कोर्ट के इस फैसले से स्कूलों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ेगा। शिक्षक बनने वालों को फिर शिक्षा मित्र बनाया जाता है या हटाया जाता है, तो दोनों ही स्थितियों में पढ़ाई प्रभावित होगी। प्रदेश में करीब 3.5 लाख शिक्षक हैं। इसमें से 1.72 लाख शिक्षा मित्रों के कम हो जाने से छात्र-शिक्षक अनुपात काफी कम हो जाएगा।
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