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बेहाल स्कूल: परिषदीय विद्यालयों पर विशेष लेख, एक बार जरुर पढ़ें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे दरी या बोरे पर क्यों बैठते हैं। उनको बैठाने के लिए बेंच या कुर्सियों की व्यवस्था क्यों नहीं की जाती है।
कोर्ट ने सरकार से प्राइमरी स्कूलों में शौचालय और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं की जानकारी भी मांगी है। प्रमुख सचिव प्राथमिक शिक्षा को निर्देश दिया गया है कि वह अधिकारियों के साथ बैठक कर कार्ययोजना तय करें और कोर्ट को उसकी जानकारी दें। सुप्रीम कोर्ट ने भी परिषदीय स्कूलों की बदहाली पर चिंता जताई है। प्रदेश के स्कूलों में फर्नीचर मुहैया कराने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने 1700 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिसंबर 2014 में वित्त विभाग को भेजा था लेकिन, सरकार ने संसाधनों की कमी बताते हुए यह रकम मुहैया कराने से हाथ खड़े कर दिये। 65 हजार परिषदीय स्कूल बिजली की सुविधा से वंचित हैं।
विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब इनमें से ऐसे 45 हजार स्कूलों को बिजली कनेक्शन दिलवाने की कवायद की जा रही है जिनमें मतदान केंद्र बनाये जाने हैं। 1सूबे के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था का यह हाल नया नहीं, पुराना है। शहरों में स्थित प्राइमरी स्कूलों की स्थिति फिर भी कुछ ठीक है पर गांवों का हाल बेहाल है। स्कूल के भवन वर्षो-वर्ष पुराने होने के कारण जर्जर हो चुके हैं। उनके रखरखाव की समुचित व्यवस्था नहीं। बरसात में टूटी छत से पानी गिरने के कारण कई स्कूलों में तो बच्चों की छुट्टी ही कर दी जाती है। कई स्कूल ऐसे भी हैं जहां धूप में पेड़ की छांव तले पढ़ाई करवाई जाती है। कहीं बच्चों की तुलना में शिक्षकों की संख्या बहुत कम है तो कहीं एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल चल रहा है। दूरदराज के इलाकों में तो शिक्षक स्कूल जाते तक नहीं। शौचालय व पेयजल व्यवस्था भी न के बराबर है। इन पुरातन समस्याओं का अब तक निदान नहीं हो पाया है। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के नेता प्राइमरी स्कूलों का कायाकल्प कर देने का वादा तो करते हैं पर कुर्सी पाते ही सब भूल जाते हैं। स्थिति इतनी विषम है कि शीर्ष अदालतों को भी हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। राज्य सरकारों को बताना पड़ रहा है कि प्राइमरी स्कूल में आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना आपकी जिम्मेदारी है।

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