सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की तारीफ हमें क्यों करनी चाहिए, उसके पाँच कारणों पर ग़ौर फरमाते हैं।
1. पहली बात, ऐसे शिक्षक बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहे होते हैं। उनके स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए बेंच नहीं होती, कभी-कभी दरी तक नहीं होती, पंखे और बिजली तो दूर की बात है, फोन का नेटवर्क भी नहीं आता बहुत से इलाक़ों में, शिक्षकों को स्कूल पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होती है।
2. दूसरी बात, ऐसे शिक्षक उन बच्चों के साथ काम कर रहे हैं जिनको वाकई सपोर्ट की जरूरत है। जिनके घर पर कोई पूछने वाला नहीं है कि तुम्हारा आज का दिन स्कूल में कैसा था? इन बच्चों के लिए किसी तरह के ट्युशन की कोई व्यवस्था नहीं होती। ऐसे बच्चों को घर का काम भी करना होता है। अभिभावकों के खेत पर जाने वाली स्थिति में घर और छोटे बच्चों के रखवाली करने की जिम्मेदारी भी बच्चों के ऊपर होती है। ऐसे बच्चों के साथ धैर्य से काम करने और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए सदैव प्रयास करने वाले शिक्षकों की तारीफ करनी जरूरी है ताकि उनके भीतर यह अहसास बना रहे कि कतार की आखिर में खड़े लोगों को आगे लाने की मुहिम में उनके दर्द को समझने वाले लोग भी हैं। केवल आलोचना के बाण छोड़ने वाले लोगों की मौजूदगी से तो सब वाकिफ हैं।
3. तीसरी बात, लोगों में विश्वास पैदा हो कि सरकारी स्कूल में अच्छा काम करने वाले शिक्षक भी हैं। चाहें उनकी संख्या कुछ हज़ार ही क्यों न हो। ऐसे शिक्षक काम करना चाहते हैं, जब वे बच्चों को पढ़ा नहीं पाते तो उन्हें भी तकलीफ होती है। एक शिक्षक कहते हैं, “हमें तकलीफ होती है जब हम पूरे महीने शैक्षणिक कार्यों के अलावा अन्य काम करके वेतन लेते हैं। हमें लगता है कि हम बच्चों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं।”
4. हमें ऐसे इंसान की कद्र करनी चाहिए जो चौतरफा आलोचनाओं के बावजूद अपने काम को ज़िंदादिली के साथ करने की कोशिश कर रहे हैं।बोर्ड की परीक्षाओं के कारण बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी दबाव में हैं। उनके ऊपर परिणाम देने का दबाव बनाया जा रहा है। शिक्षकों पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। उनको हर बात के लिए निशाना बनाया जाता है। मगर जब फैसले की बात होती है। निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी की बात होती है तो वे हासिये पर ढकेल दिये जाते हैं। किसी भी पॉलिसी को अंतिम रूप देने से पहले उनके विचारों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। हमने उनको सिर्फ किसी काम को लागू करने वाली एजेंसी का एजेंट बना दिया है।
5. किसी सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक की कद्र हमें इसलिए भी करनी चाहिए कि हममें से अधिकांश लोगों को उन लोगों ने पढ़ाया है जिनकी पढ़ाई-लिखाई खुद इन्हीं सरकारी स्कूलों में हुई है। या फिर हमने भी इन्हीं सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की है। चाहें वह पहली से आठवीं तक की बात हो या फिर दसवीं या बारहवीं की। अगर वे शिक्षक हमारी ज़िंदगी में नहीं होते तो शायद हम इस मुकाम पर नहीं होते। यह और बात है कि वक्त के साथ सरकारी स्कूलों, सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों, सरकारी शिक्षा का महत्व कम होता दिख रहा है।
पर जितने बड़े स्तर पर ये स्कूल काम करते हैं, उस नज़रिये से इनका महत्व आज भी ज्यों का त्यों कायम है। इसकी चुनौतियां अगर बदली हैं तो हमें नये समाधान खोजने होंगे। कुछ फैसले अगर स्कूलों व शिक्षा के हित में नहीं हैं तो उन्हें बदलना भी होगा। यह ध्यान रखते हुए कि शिक्षक की जगह कोई भी तकनीक, कोई भी पासबुक या कोई भी डिजिटल डिवाइस या टीचर एजुकेटर नहीं ले सकता है। एक शिक्षक का काम एक शिक्षक ही भली भांति कर सकता है।
इसलिए भी हमें एक शिक्षक का दिल से सम्मान करना चाहिए। उनके मेहनत की कद्र करनी चाहिए क्योंकि वे बहुत से घरों में शिक्षा का पहला दीपक जलाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी तारीफ से उनकी कोशिशों को बल मिलेगा और वे अपने प्रयासों को ज्यादा अच्छे ढंग से करने की कोशिश करेंगे।
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
1. पहली बात, ऐसे शिक्षक बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में काम कर रहे होते हैं। उनके स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए बेंच नहीं होती, कभी-कभी दरी तक नहीं होती, पंखे और बिजली तो दूर की बात है, फोन का नेटवर्क भी नहीं आता बहुत से इलाक़ों में, शिक्षकों को स्कूल पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होती है।
- Big Breaking : सुनवाई लगातार दो दिन चलेगी 26 और 27 अप्रैल 2017 को , मुकदमा शीघ्र निस्तारण की तरफ अग्रसर
- डिप्टी cm दिनेश शर्मा जी से 72825 को पूरा कराने के संदर्भ में टेटियन ज्ञापन देते हुए और अपने भर्ती टेट 2011 के सम्बन्ध में बात रखते हुए
- बेसिक शिक्षा में स्थानांतरण की नयी नीति , महिला शिक्षिकाओं को राहत, घर के नजदीक स्कूलों में मिलेगी तैनाती
- खाली पड़े पद होंगे खत्म, मोदी सरकार ने खर्च घटाने को नौकरियों में शुरू की कटौती
- आरक्षितों को सिर्फ कोटे में ही मिलेगी नौकरी, सुप्रीमकोर्ट ने सुनाया फैसला: ज्यादा अंक लाने पर भी सामान्य वर्ग में नौकरी नहीं
2. दूसरी बात, ऐसे शिक्षक उन बच्चों के साथ काम कर रहे हैं जिनको वाकई सपोर्ट की जरूरत है। जिनके घर पर कोई पूछने वाला नहीं है कि तुम्हारा आज का दिन स्कूल में कैसा था? इन बच्चों के लिए किसी तरह के ट्युशन की कोई व्यवस्था नहीं होती। ऐसे बच्चों को घर का काम भी करना होता है। अभिभावकों के खेत पर जाने वाली स्थिति में घर और छोटे बच्चों के रखवाली करने की जिम्मेदारी भी बच्चों के ऊपर होती है। ऐसे बच्चों के साथ धैर्य से काम करने और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए सदैव प्रयास करने वाले शिक्षकों की तारीफ करनी जरूरी है ताकि उनके भीतर यह अहसास बना रहे कि कतार की आखिर में खड़े लोगों को आगे लाने की मुहिम में उनके दर्द को समझने वाले लोग भी हैं। केवल आलोचना के बाण छोड़ने वाले लोगों की मौजूदगी से तो सब वाकिफ हैं।
3. तीसरी बात, लोगों में विश्वास पैदा हो कि सरकारी स्कूल में अच्छा काम करने वाले शिक्षक भी हैं। चाहें उनकी संख्या कुछ हज़ार ही क्यों न हो। ऐसे शिक्षक काम करना चाहते हैं, जब वे बच्चों को पढ़ा नहीं पाते तो उन्हें भी तकलीफ होती है। एक शिक्षक कहते हैं, “हमें तकलीफ होती है जब हम पूरे महीने शैक्षणिक कार्यों के अलावा अन्य काम करके वेतन लेते हैं। हमें लगता है कि हम बच्चों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं।”
4. हमें ऐसे इंसान की कद्र करनी चाहिए जो चौतरफा आलोचनाओं के बावजूद अपने काम को ज़िंदादिली के साथ करने की कोशिश कर रहे हैं।बोर्ड की परीक्षाओं के कारण बच्चों के साथ-साथ शिक्षक भी दबाव में हैं। उनके ऊपर परिणाम देने का दबाव बनाया जा रहा है। शिक्षकों पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। उनको हर बात के लिए निशाना बनाया जाता है। मगर जब फैसले की बात होती है। निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी की बात होती है तो वे हासिये पर ढकेल दिये जाते हैं। किसी भी पॉलिसी को अंतिम रूप देने से पहले उनके विचारों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। हमने उनको सिर्फ किसी काम को लागू करने वाली एजेंसी का एजेंट बना दिया है।
5. किसी सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक की कद्र हमें इसलिए भी करनी चाहिए कि हममें से अधिकांश लोगों को उन लोगों ने पढ़ाया है जिनकी पढ़ाई-लिखाई खुद इन्हीं सरकारी स्कूलों में हुई है। या फिर हमने भी इन्हीं सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की है। चाहें वह पहली से आठवीं तक की बात हो या फिर दसवीं या बारहवीं की। अगर वे शिक्षक हमारी ज़िंदगी में नहीं होते तो शायद हम इस मुकाम पर नहीं होते। यह और बात है कि वक्त के साथ सरकारी स्कूलों, सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों, सरकारी शिक्षा का महत्व कम होता दिख रहा है।
पर जितने बड़े स्तर पर ये स्कूल काम करते हैं, उस नज़रिये से इनका महत्व आज भी ज्यों का त्यों कायम है। इसकी चुनौतियां अगर बदली हैं तो हमें नये समाधान खोजने होंगे। कुछ फैसले अगर स्कूलों व शिक्षा के हित में नहीं हैं तो उन्हें बदलना भी होगा। यह ध्यान रखते हुए कि शिक्षक की जगह कोई भी तकनीक, कोई भी पासबुक या कोई भी डिजिटल डिवाइस या टीचर एजुकेटर नहीं ले सकता है। एक शिक्षक का काम एक शिक्षक ही भली भांति कर सकता है।
इसलिए भी हमें एक शिक्षक का दिल से सम्मान करना चाहिए। उनके मेहनत की कद्र करनी चाहिए क्योंकि वे बहुत से घरों में शिक्षा का पहला दीपक जलाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी तारीफ से उनकी कोशिशों को बल मिलेगा और वे अपने प्रयासों को ज्यादा अच्छे ढंग से करने की कोशिश करेंगे।
- 26 अप्रैल : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अब कोर्ट नंबर 13 में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल जी और जस्टिस उदय उमेश ललित जी की बैंच में : मयंक तिवारी
- 26 अप्रैल की पैरवी हेतु जूनियर टेट मोर्चा द्वारा लिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णय : योगेंद्र यादव जूनियर टेट मोर्चा उत्तर प्रदेश
- शिक्षा मित्रों की विदाई शत प्रतिशत सुनिश्चित , 26 अप्रैल की सुनवाई में अब 100 घंटे भी शेष नहीं : गणेश शंकर दीक्षित
- केस की सुनवाई 26 और 27 दोनों दिन संभावित , टेट मेरिट को अजर अमर बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ेंगे : राकेश यादव
- हिमांशु राणा : शिक्षक भर्ती से सम्बंधित याचिकाएं डिसमिस होनी तय , टीईटी वाले सेंगर जी को अवश्य याद करें , अहम सुनवाई है
- 26 अप्रैल को 4347/2014 की मेरिट पर बहस , हियरिंग के लिए कुल 3 याचिकाकर्ता
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines