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हाईकोर्ट ने अधियाचन भेजने के बाद प्रोन्नति से पद भरने पर लगाई रोक

 इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रवक्ता के पद पर इंटर कालेज की ओर से सीधी भर्ती का अधियाचन भेजने के बाद उसी पद को प्रोन्नति से भरने के निर्णय पर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने कहा कि जब सीधी भर्ती से पद भरने का अधियाचन माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड उप्र को भेजा जा चुका है तो उसी पद को प्रोन्नति से नहीं भरा जा सकता है। याची विभिका सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा ने दिया है।
1याचिका में कहा गया कि उप्र माध्यमिक शिक्षा चयन सेवा बोर्ड ने 28 दिसंबर 2013 को अंग्रेजी के प्रवक्ता पद के लिए विज्ञापन निकाला था। याची इसमें चयनित हो गई। उसे जनता इंटर कालेज अमरोहा में नियुक्ति के लिए चयन बोर्ड ने पैनल में नाम भेजा। याची जब इंटर कालेज पहुंची तो उसे बताया गया कि प्रवक्ता का पद प्रोन्नति से भरा जा चुका है इसलिए उसे नियुक्ति नहीं दी जा सकती है। संयुक्त निदेशक माध्यमिक शिक्षा ने चार फरवरी 2017 को इस आशय का आदेश जारी कर जिला विद्यालय निरीक्षक को इस संबंध में चयन बोर्ड को अवगत कराने का आदेश दिया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। 1याची के अधिवक्ता का कहना था कि कालेज ने स्वयं अपने यहां प्रवक्ता अंग्रेजी का पद सीधी भर्ती से भरने का अधियाचन दिया था। कोर्ट ने प्रशांत कुमार कटियार केस में फुल बेंच के निर्णय का आधार लेते हुए कहा कि अधियाचन भेजने के बाद पद प्रोन्नति से नहीं भरा जा सकता है। कोर्ट ने संयुक्त निदेशक का आदेश रद कर याची के चयन पर विचार करने का निर्णय दिया है।
सीजनल स्टॉफ को एक अक्टूबर से नियुक्ति पाने का हक नहीं
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गन्ना सहकारी समितियों में कार्यरत सीजनल स्टाफ को एक अक्टूबर से नियुक्ति पाने का हकदार नहीं माना है। कोर्ट ने कहा कि जो कर्मी ‘ए’ श्रेणी के हैं वे पेराई सत्र में काम उपलब्ध होने की दशा में नियुक्ति पाने के अधिकारी हैं।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण टंडन तथा न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की खंडपीठ ने गन्ना समिति बस्ती की विशेष अपील पर दिया है। एकलपीठ ने कहा था कि नियमावली 26 के तहत सीजनल स्टाफ, पेराई सत्र शुरू होने पर नियुक्ति पाने के हकदार हैं। समिति के अधिवक्ता रवींद्र सिंह का कहना था कि एकलपीठ का फैसला सही नहीं है। नियमावली 26 की सही व्याख्या नहीं की गई है। कहा कि केवल सीजनल स्टॉफ को अगले पेराई सत्र के लिए पुनर्नियुक्ति का सुनिश्चित करना मात्र है।
इसका यह आशय नहीं है कि पेराई सत्र एक अक्टूबर से शुरू होते ही उन्हें नियुक्ति दी जाए। कोर्ट ने एकलपीठ के फैसले को रद कर दिया। इस आदेश में कहा गया था कि सीजनल स्टॉफ वेतन पाने के हकदार हैं। कर्मचारी अनिल कुमार पांडेय व अन्य ने एक अक्टूबर से नियुक्ति करने की मांग के लिए याचिका दाखिल की थी और कहा था कि सीजन खत्म होने के बाद खाली समय में भी वेतन दिलाया जाए। कोर्ट ने ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ के सिद्धांत को माना, लेकिन पेराई सत्र शुरू होते ही नियुक्त कर वेतन देने का आदेश दिया। इसे अपीलीय न्यायालय ने सही नहीं माना। मजदूरों के अधिवक्ता राजीव मिश्र का कहना था कि उन्हें एक अक्टूबर से 15 जुलाई तक के पेराई सत्र का वेतन पाने का हक है।
कोर्ट ने कहा है कि नियमावली 26 अगले पेराई सत्र में रोजगार सुनिश्चित करती है। इसका मतलब यह नहीं है कि एक अक्टूबर से सत्र शुरू होते ही नियुक्ति व वेतन दिया जाए। काम की उपलब्धता पर नियुक्ति पाने का अधिकार है।

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