शाहाबाद/हरदोई (ब्यूरो) – एक तरफ तो शिक्षा को बच्चे
का मौलिक अधिकार बना दिया गया है वहीं सरकार प्राथमिक शिक्षा की
सुव्यवस्थित व्यवस्था नहीं कर पा रही है|
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्षुब्ध आंदोलनरत शिक्षामित्रों को मुख्यमंत्री ने आश्वासन देकर स्कूल वापस भेज दिया है| अधिकांश शिक्षामित्र शिक्षक पात्रता परीक्षा न देकर सीधे शिक्षक बनना चाहते है। वहीं दूसरी तरफ शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण किये लोग बेरोजगार घूम रहे हैं, हालाँकि इनकी भी पात्रता पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है| अभी दो दिन पहले अपनी शिक्षक के रूप में तैनाती करने की माँग को लेकर विधानसभा के समक्ष धरना प्रदर्शन कर रहे थे| शिक्षामित्रों को तो आन्दोलन करने पर स्कूल वापस लौटने का फरमान और उज्ज्वल भविष्य का आश्वासन तो मिल गया लेकिन इन बेचारे शिक्षकों को नौकरी नहीं बल्कि पुलिस पीएससी की लाठियां झेलनी पड़ी|
एक तरफ शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण सड़क पर घूम रहे बेरोजगार और दूसरी तरफ अदालती मार से त्रस्त शिक्षामित्र इस समय सरकार के सामने चुनौती बने हुये हैं। यदि शिक्षक पात्रता का प्रमाण पत्र सही है और शिक्षक बनने की योग्यता है तो इन प्रशिक्षित बेरोजगारों को शिक्षक बना कर शिक्षामित्रों की तरह रोजी रोटी देकर शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाना उचित रहेगा| प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक शिक्षा के गिरते स्तर और शिक्षा विभाग की हो रही किरकिरी से बचने के लिये कक्षावार नहीं बल्कि विषय या घंटावार शिक्षकों व्यवस्था करना आवश्यक है|
सरकार की इतनी सुविधाओं के बावजूद प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों का अभाव सोचनीय विषय है| वैसे गाड़ी का क्लीनर तीन साल में गाड़ी चलाने लगता है और साल दो साल बाद डाक्टर के रहने पर कम्पाउंडर दवा देने लगता है| शिक्षामित्रों का डेढ़ दशक शिक्षक के रूप में बच्चों को सरकारी शिक्षकों के निर्देशन में पढ़ाने का अनुभव उनके सहायक शिक्षक बनने के लिये पर्याप्त माना जा सकता है| अब सरकार को तय करना है कि वह शिक्षकों की कमी को कैसे और कहाँ से पूर्ति करके गिरती शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाती है।
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