पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश का प्रचलित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाले की जांच की आंच अब उप्र में बैठे फर्जी अभ्यर्थियों पर तेज होने वाली है। उत्तर प्रदेश की विशेष अनुसंधान दल (एसआईटी) की जांच-पड़ताल में गिरफ्तारी भी शुरू हो गयी है।
घोटाले में लिप्त रहे लोगों को ढूंढने के लिए एसआईटी का राडार सीधा प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग पर घूम गया है। इसी क्रम में दल संबंधित अधिकारियों से अगले 15 दिन के भीतर चिन्हित कर व्यापक पूछताछ की कार्रवाई शुरू करेगा।
फर्जी मार्कशीट मामले पर राजधानी लखनऊ से एक अध्यापक की गिरफ्तारी कर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मप्र की अशोक नगर, भोपाल तथा आगरा पुलिस को अवगत करा दिया है।व्यापम घोटाले की व्यापकता वर्ष 2013 में तब सामने आई जब मप्र की इंदौर पुलिस ने वर्ष 2009 की पीएमटी प्रवेश से जुड़े मामलों में 20 नकली अभ्यर्थियों को पकड़ा जो दूसरों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। पूछताछ के दौरान जगदीश सागर का नाम घोटाले के मुखिया के रूप में सामने आया जो एक संगठित रैकेट के माध्यम से इस घोटाले को अंजाम दे रहा था।
जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद मप्र सरकार ने 26 अगस्त 2013 को एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की स्थापना की और बाद की जांच और गिरफ्तारियों से घोटाले में कई नेताओं, नौकरशाहों, व्यापम अधिकारियों, बिचौलियों, उम्मीदवारों और उनके माता-पिता की घोटाले में भागीदारी का पर्दाफाश किया गया। जून 2015 तक 2,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है जिसमें मप्र के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और सौ से अधिक अन्य राजनेता भी शामिल हैं।
ज्ञात हो कि व्यापम घोटाले में मप्र और उप्र में अब तक लगभग 2,000 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इसी प्रकरण में 24 अक्टूबर 2011 को आगरा विविद्यालय के चार कर्मचारियों को एसआईटी ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। यह मध्य प्रदेश से जुड़ा प्रवेश एवं भर्ती घोटाला है जिसके पीछे कई नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यावसाइयों का हाथ रहा है। राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार द्वारा गठित एक स्व-वित्तपोषित और स्वायत्त निकाय है।
ये प्रवेश परीक्षाएं, राज्य के शैक्षिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में दाखिले और भर्ती के लिए आयोजित की जाती हैं। इनमें नौकरियों में अपात्र परीक्षार्थियों और उम्मीदवारों को बिचौलियों, उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं राजनेताओं की मिलीभगत से रिश्वत के लेन-देन और भ्रष्टाचार के माध्यम से प्रवेश दिया गया और बड़े पैमाने पर धांधली की गयी। प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितता बरतने पर वर्ष 1990 के बीच सूचित किया गया था, जिसमें पहली एफआईआर 2009 में दर्ज हुई। मप्र सरकार ने मामले की जांच के लिए समिति कि स्थापना की, जिसने 2011 में अपनी रिपोर्ट जारी की और 100 से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसमें अभी भी कई फरार हैं।
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घोटाले में लिप्त रहे लोगों को ढूंढने के लिए एसआईटी का राडार सीधा प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग पर घूम गया है। इसी क्रम में दल संबंधित अधिकारियों से अगले 15 दिन के भीतर चिन्हित कर व्यापक पूछताछ की कार्रवाई शुरू करेगा।
फर्जी मार्कशीट मामले पर राजधानी लखनऊ से एक अध्यापक की गिरफ्तारी कर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मप्र की अशोक नगर, भोपाल तथा आगरा पुलिस को अवगत करा दिया है।व्यापम घोटाले की व्यापकता वर्ष 2013 में तब सामने आई जब मप्र की इंदौर पुलिस ने वर्ष 2009 की पीएमटी प्रवेश से जुड़े मामलों में 20 नकली अभ्यर्थियों को पकड़ा जो दूसरों के स्थान पर परीक्षा देने आए थे। पूछताछ के दौरान जगदीश सागर का नाम घोटाले के मुखिया के रूप में सामने आया जो एक संगठित रैकेट के माध्यम से इस घोटाले को अंजाम दे रहा था।
जगदीश सागर की गिरफ्तारी के बाद मप्र सरकार ने 26 अगस्त 2013 को एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की स्थापना की और बाद की जांच और गिरफ्तारियों से घोटाले में कई नेताओं, नौकरशाहों, व्यापम अधिकारियों, बिचौलियों, उम्मीदवारों और उनके माता-पिता की घोटाले में भागीदारी का पर्दाफाश किया गया। जून 2015 तक 2,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है जिसमें मप्र के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा और सौ से अधिक अन्य राजनेता भी शामिल हैं।
ज्ञात हो कि व्यापम घोटाले में मप्र और उप्र में अब तक लगभग 2,000 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। इसी प्रकरण में 24 अक्टूबर 2011 को आगरा विविद्यालय के चार कर्मचारियों को एसआईटी ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। यह मध्य प्रदेश से जुड़ा प्रवेश एवं भर्ती घोटाला है जिसके पीछे कई नेताओं, वरिष्ठ अधिकारियों और व्यावसाइयों का हाथ रहा है। राज्य में कई प्रवेश परीक्षाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार राज्य सरकार द्वारा गठित एक स्व-वित्तपोषित और स्वायत्त निकाय है।
ये प्रवेश परीक्षाएं, राज्य के शैक्षिक संस्थानों तथा सरकारी नौकरियों में दाखिले और भर्ती के लिए आयोजित की जाती हैं। इनमें नौकरियों में अपात्र परीक्षार्थियों और उम्मीदवारों को बिचौलियों, उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं राजनेताओं की मिलीभगत से रिश्वत के लेन-देन और भ्रष्टाचार के माध्यम से प्रवेश दिया गया और बड़े पैमाने पर धांधली की गयी। प्रवेश परीक्षाओं में अनियमितता बरतने पर वर्ष 1990 के बीच सूचित किया गया था, जिसमें पहली एफआईआर 2009 में दर्ज हुई। मप्र सरकार ने मामले की जांच के लिए समिति कि स्थापना की, जिसने 2011 में अपनी रिपोर्ट जारी की और 100 से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था जिसमें अभी भी कई फरार हैं।
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