इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के महाविद्यालयों में समायोजित व नियमित हुए अध्यापकों को उच्चतर शिक्षा निदेशक की ओर से नियमित वेतन देने के बजाय मानदेय का भुगतान करने के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार से याचिका पर जवाब भी मांगा है।1
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति इरशाद अली की खंडपीठ ने डा. श्याम बिहारी श्रीवास्तव व तीन अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अधिनियम की धारा 31-ई के तहत 18 मई 2017 के आदेश से याचियों जो विभिन्न कालेजों में मानदेय पर कार्यरत थे, को समायोजित करते हुए नियमित कर दिया गया। इन शिक्षकों को दूसरे कालेजों में भेज दिया गया। जिसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने जब तक खाली पद पर चयनित अभ्यर्थी न आ जाय तब तक उसी कालेज में कार्य करने देने व नियमित वेतन देने का आदेश दिया। इस आदेश की गलत व्याख्या करते हुए शिक्षा निदेशक ने 27 सितंबर 2017 के आदेश से नियमित वेतन देने के बजाय मानदेय भुगतान करने का आदेश दिया। इस आदेश को भी चुनौती दी गई। याची के अधिवक्ता का कहना है कि नियमित अध्यापकों को मानदेय भुगतान करने का आदेश देना गलत है। याची को समायोजन के बाद नियमित वेतन पाने का अधिकार है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति इरशाद अली की खंडपीठ ने डा. श्याम बिहारी श्रीवास्तव व तीन अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका के अनुसार उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग अधिनियम की धारा 31-ई के तहत 18 मई 2017 के आदेश से याचियों जो विभिन्न कालेजों में मानदेय पर कार्यरत थे, को समायोजित करते हुए नियमित कर दिया गया। इन शिक्षकों को दूसरे कालेजों में भेज दिया गया। जिसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने जब तक खाली पद पर चयनित अभ्यर्थी न आ जाय तब तक उसी कालेज में कार्य करने देने व नियमित वेतन देने का आदेश दिया। इस आदेश की गलत व्याख्या करते हुए शिक्षा निदेशक ने 27 सितंबर 2017 के आदेश से नियमित वेतन देने के बजाय मानदेय भुगतान करने का आदेश दिया। इस आदेश को भी चुनौती दी गई। याची के अधिवक्ता का कहना है कि नियमित अध्यापकों को मानदेय भुगतान करने का आदेश देना गलत है। याची को समायोजन के बाद नियमित वेतन पाने का अधिकार है।
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