यूपी-टीईटी परीक्षा में उत्तरमाला सम्बंधी विवाद पर राज्य सरकार को हाईकोर्ट में बड़ा झटका लगा है। मंगलवार को निर्णय देते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा को फिलहाल टालने के आदेश दिए हैं। यह परीक्षा 12 मार्च को होने वाली थी। न्यायालय ने टीईटी परीक्षा- 2017 के परिणाम पुनः घोषित करने के
बाद ही लिखित परीक्षा कराने का आदेश दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में टीईटी परीक्षा के बाद 18 अक्टूबर 2017 को जारी उत्तरमाला के 14 जवाबों व सम्बंधित प्रश्नों को हटाने के बाद बन रहे पूर्णांक के आधार पर पुनः परिणाम घोषित करने को कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति आरएस चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान व 103 अन्य समेत कुल 316 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। इन याचिकाओं में टीईटी परीक्षा- 2017 के उत्तरमाला को चुनौती दी गई थी। याचिकाओं में कहा गया था कि उत्तरमाला में दिए कई जवाब या तो गलत हैं अथवा कुछ प्रश्नों के एक से अधिक जवाब सही हैं। कुछ ऐसे प्रश्न भी पूछे गए थे जो सिलेबस के बाहर से थे। याचिकाओं में इसे एनसीटीई के गाइडलाइंस का पूरी तरह उल्लंघन बताया गया था। याचिका का विरोध करते हुए महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का कहना था कि उक्त याचिकाएं पोषणीय नहीं हैं। याचियों ने उत्तरमाला के बावत आपत्ति नहीं दाखिल की थी। जबकि न्यायालय ने पाया कि याचियों की ओर से आपत्ति दाखिल की गई थी। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि चयन के मामलों में यदि नियम-कानूनों का पालन नहीं किया जाएगा तो हाईकोर्ट को ऐसे मामले में दखल देने की असाधारण शक्ति प्राप्त है। न्यायालय ने एक्जामिनेशन रेग्युलेटरी अथॉरिटी की सचिव डॉ. सुत्ता सिंह के जवाबी हलफनामी का जिक्र करते हुए कहा कि उक्त जवाब में कहा गया है कि पेपर सेट करने की जिम्मेदारी पेपर सेटर्स की होती है। इस जवाब से ही स्पष्ट है कि अनियमतता न सिर्फ स्वीकार की जा रही है बल्कि इसकी जिम्मेदारी पेपर सेटर्स के कंधों पर डाली जा रही है। न्यायालय ने अथॉरिटी को 14 विवादित प्रश्नों को हटाते हुए, नए सिरे से परीक्षा परिणाम घोषित करने का आदेश दिया। इस कार्य के लिए एक माह का समय देते हुए, परिणाम घोषित करने के बाद ही सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा कराने के भी आदेश दिए गए। इसके साथ ही न्यायालय ने आगे के लिए ऐसी स्थितियों में उत्तरमाला पर आपत्ति आने पर उन्हें विशेषज्ञ कमेटी द्वारा जांच करने व आपत्ति सही पाए जाने पर सम्बंधित प्रश्न को हटाकर मूल्यांकन करने के आदेश दिए।
पर्यावरण अध्ययन में पूछ लिया संविधान का प्रश्न
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि पर्यावरण अध्ययन विषय की परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों में से चार प्रश्न ऐसे थे जो संविधान या इंटरनेशनल अफेयर्स से पूछे गए थे। न्यायालय ने जिन प्रश्नों को हटाने को कहा है, उनमें क्वेश्चन बुकलेट 'सी' के आठ प्रश्न जिनके क्रमांक 16, 18, 26, 32, 123, 126, 131 व 146 हैं। इसके साथ ही संस्कृत विषय के दो प्रश्न क्रमांक 61 व 80 और पर्यावरण अध्ययन के चार प्रश्न 121, 133, 140 व 150 शामिल हैं। न्यायालय ने इन प्रश्नों के जवाब को या तो गलत पाया है या एक से अधिक विकल्प सही होना पाया है अथवा सिलेबस के बाहर का पाया है।
नहीं बता सके कि कब गठित हुई विशेषज्ञ कमेटी
याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दलील दी कि उसने विशेषज्ञ कमेटी का गठन किया है जिसने प्रश्नों व उनके जवाबों को जांच लिया है व सही पाया है। जिस पर न्यायालय ने विशेषज्ञ कमेटी के गठन के बावत पूछा था कि कमेटी का कब गठन किया गया, कमेटी में कौन-कौन लोग थे, कमेटी ने क्या संस्तुति दी व उनकी संतुष्टि का आधार क्या था। सरकार कोर्ट के इन सवालों के जवाब नहीं दे सकी।पूरी परीक्षा को ही शून्य घोषित किया जा सकता है
न्यायालय ने सम्बंधित अथॉरिटी के इतनी बड़ी परीक्षा को हल्के में लेने के रुख पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अथॉरिटी के गैर-गम्भीर रुख के कारण पूरी परीक्षा ही शून्य घोषित की जा सकती है लेकिन लाखों अभ्यर्थी टीईटी परीक्षा में शामिल हुए और हजारों ने परीक्षा पास कर ली है लिहाजा यह सफल अभ्यर्थियों के लिए उचित नहीं होगा। हम इसे अपवादजनक स्थिति पाते हुए, परीक्षा परिणाम में ही हस्तक्षेप कर रहे हैं।
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