उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के बच्चों को सरकारी
स्कूल में पढ़ाने का आदेश लागू नहीं किए जाने पर मुख्य सचिव अनूप चंद्र
पांडेय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है।
याचिका में मांग
की गई है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 18 अगस्त, 2015 के आदेश पर अमल नहीं किए
जाने पर प्रदेश के मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होनी चाहिए।
हाई कोर्ट ने सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की दशा सुधारने के लिए यह आदेश
दिया था।
याचिकाकर्ता शिव कुमार त्रिपाठी ने आरोप लगाया है कि मुख्य सचिव ने हाई
कोर्ट का आदेश लागू करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। याचिकाकर्ता
का कहना है कि उन्होंने मुख्य सचिव के समक्ष यह मुद्दा उठाया था। त्रिपाठी
का कहना है कि इससे पहले उन्होंने मुख्य सचिव के खिलाफ हाई कोर्ट में
अवमानना याचिका दायर की थी। लेकिन, हाई कोर्ट ने तथ्यों पर गंभीरता से
विचार किए बगैर ही याचिका खारिज कर दी।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह मामला गरीब लोगों के बच्चों की
पढ़ाई से जुड़ा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को हाई कोर्ट
के आदेश का पालन करने का निर्देश दे। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश
सरकार ने आज तक आदेश पर अमल नहीं किया है।
क्या था हाई कोर्ट का आदेश : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी बेसिक शिक्षा
बोर्ड के स्कूलों की खराब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा था कि अफसरों,
नेताओं और अमीर लोगों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। इसलिए ये लोग
इन सरकारी स्कूलों का स्तर बनाए रखने पर ध्यान नहीं देते। हाई कोर्ट ने
प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि वे अन्य जिम्मेदार अधिकारियों
के साथ परामर्श से उचित कार्रवाई करें। वे यह सुनिश्चित करें कि सरकारी
कर्मचारी, अर्ध सरकारी कर्मचारी, स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि, न्यायपालिका
और अन्य सभी लोग जो सरकारी कोष से वेतन या लाभ लेते हैं, के बच्चे सरकारी
प्राथमिक विद्यालय में पढ़ें। इस शर्त का उल्लंघन करने वालों पर दंड के
प्रावधान भी सुनिश्चित किए जाएं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई सरकारी कर्मचारी
अपने बच्चे को निजी स्कूल में पढ़ाता है, तो वह स्कूल फीस के बराबर पैसा
हर महीने सरकारी कोष में जमा कराएगा। यह काम तब तक जारी रखेगा जब तक उसका
बच्चा निजी स्कूल में पढ़ेगा। इस एकत्रित धन को बोर्ड द्वारा संचालित
स्कूलों की बेहतरी में खर्च किया जाएगा।
