शिक्षकों की बड़ी भर्ती में हर बार बेईमानी हुई है। चाहे बेसिक शिक्षा
विभाग रहा हो या सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षक भर्ती।
भर्ती का जिम्मा उठाने वालों के नाम घोटाले में फंसे हैं। इन गड़बड़ियों ने
नियुक्ति प्रक्रिया को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। लेकिन
बेरोजगारों के पास घूम-फिरकर इन्हीं संस्थाओं के सहारे नौकरी के सपने देखने
के सिवा कोई रास्ता नहीं है।
परिषदीय स्कूलों में 68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए आयोजित
लिखित परीक्षा के परिणाम में हुई बेईमानी के कारण कई योग्य अभ्यर्थी सड़क की
ठोकरें खा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी सुत्ता
सिंह और रजिस्ट्रार विभागीय परीक्षाएं जीवेन्द्र सिंह ऐरी को निलंबित कर
दिया। कई अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी है।
इतनी महत्वपूर्ण परीक्षा की कॉपियां इस लापरवाही से जांची गई जैसे यूपी
बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा की कॉपियां भी नहीं जांची जाती।
एक-एक दिन में एक शिक्षक ने 100 से अधिक कॉपी जांच डाली। मूल्यांकन के
दौरान अधिक कॉपियां जांचने वाले शिक्षक का नाम हाल में माइक से बुलाकर
उन्हें प्रोत्साहित किया जाता था।
जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद गड़बड़ी का खुलासा हो चुका है।
पुर्नमूल्यांकन के लिए अभ्यर्थियों से 11 से 20 अक्टूबर तक ऑनलाइन आवेदन
लेने की तैयारी है। इससे पहले बेसिक शिक्षा विभाग में ही सबसे बड़ी धांधली
सात साल पहले 72825 प्रशिक्षु शिक्षक भर्ती में हुई थी। 13 नवंबर 2011 को
आयोजित परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद से ही मनमाने तरीके से नंबर
देने के आरोप लगने लगे।
इस बीच रुपये लेकर नंबर बढ़ाने के आरोप में रमाबाईनगर पुलिस ने तत्कालीन
माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन को गिरफ्तार कर लिया था। उत्तर प्रदेश
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरपी वर्मा ने अपने
सगे भाई-बहन को लिखित परीक्षा में फेल होने के बावजूद शिक्षक पद पर
नियुक्ति दे दी थी। पूर्व चयन बोर्ड अध्यक्ष डॉ. आरपी वर्मा के सगे भाई
वेदरत्न वर्मा और बहन कमल वर्मा को स्कूल भी आवंटित हो गया था। लेकिन
प्रतियोगियों के बवाल के बाद मामले सारा खुलासा हो गया। इन्हीं सब गड़बड़ियों
के कारण 22 जुलाई 2012 को डॉ. आरपी वर्मा को हटा दिया गया था।
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