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एक शिक्षक के सद्कर्म का विजय पत्र

मित्रो हमारे कुछ शिक्षक भाई लगातार हमसे विविध प्रश्न किया करते हैं कि गाँव के लोग ऐसे है, वेैसे है, कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं, शासन प्रशासन हमें कुछ करने नहीं देता है। आदि कई प्रकार के प्रश्नों का सामना करना पड़ता है।
हमने अपने जीवन में अनुभव किया कि गाँव के अभिभावक भले ही अनपढ़ कहे जाते हो, लेकिन वह जितना शिक्षक का सहयोग और सम्मान करते हैं। उतना शायद जो समझदार पढ़े- लिखे कहे जाने वाले लोग न करते हों।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है कि एक शिक्षक गाँव के अभिभावकों को सहयोगी कहता है दूसरा असहयोगी कहता है। इसका उत्तर विज्ञान के एक नियम से और व्यवहारिक रूप से भी समझ सकते हैं।
“क्रिया- प्रतिक्रिया का नियम„
“जैसे को तैसा„
यह व्यवहारिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से स्पष्ट है कि आपके विचार और सद्कार्य ही समाज में कहीं न कहीं दर्पण की तरह प्रतिबिम्बित होते हैं।

जिसका अनुभव हमने अपने जीवन सहित कई शिक्षक साथियों के परिचय के साथ किया है उन्हीं साथियों के बीच से हम अपने मिशन शिक्षण संवाद के सहयोगी अनमोल रत्न शिक्षक भाई सिंह शिवम जी के सद्कर्म का विजय पत्र आपको दिखा रहे हैं।

प्राथमिक विद्यालय रजमलपुर, वि०क्षे० मड़ियाहूं, जौनपुर में प्रशिक्षु शिक्षक के रूप में कार्य करते समय किया गया कार्य आज भी गाँव वालों को याद है। सहायक अध्यापक के रूप में जब स्थानांतरण हुआ तब गाँव वालों ने नम आँखो से विदाई किया। इसके बाद गाँव में किये गये कार्यों को अनुभव किया गया तो गाँव के लोगों ने जिलाधिकारी को पत्र लिखा है। कि वही शिक्षक हमारे विद्यालय में पुनः वापस भेजा जाये। नहीं तो हम अपने बच्चे उस विद्यालय में नहीं पढ़ायेगे। जिसकी एक प्रति मुझे भी भेजा गया है। यह प्रति पढ़कर आप समझ सकते है कि शिक्षक का गाँव में सम्मान होता है कि नहीं। यह पत्र ही एक शिक्षक के सद्कर्म का सच्चा पुरस्कार दर्शाता है। शिक्षक के लिए यही मान सम्मान और इनका प्रेम है।
साभारः सिंह शिवम जौनपुर

ऐसे कर्मयोगी और प्रेरक शिक्षक को मिशन शिक्षण संवाद की ओर से बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!

मित्रो आपके जीवन की यदि कोई प्रेरक घटना हो, जो शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान को प्रेरित करती हो तो मिशन शिक्षण संवाद के WhatsApp no- 9458278429 पर भेज सकते हैं।

मिशन शिक्षण संवाद उ० प्र०
सहयोगी
विमल कुमार
कानपुर देहात
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