लखनऊ। नयी सरकार बनने जा रही है, शिक्षकों, अभिभावकों के साथ विद्यार्थियों ने भी नयी सरकार से कई उम्मीदे बांध ली हैं। इस सम्बन्ध में शिक्षकों, अभिभावकों और विद्यार्थियों ने अपनी उन उम्मीदों को गाँव कनेक्शन के साथ साझा किया जो वह नयी सरकार से कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “पिछली जितनी भी सरकार रही हैं उन्होंने अभिभावकों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। स्कूल प्रशासन अभिभावकों को बहुत परेशान करते हैं, इस पर लगाम लगनी चाहिये। हर नये शैक्षिक सत्र में मनमाने तौर पर स्कूल फीस में बढ़ोत्तरी कर देते हैं। स्कूलों द्वारा ड्रेस, किताबों को लेने के लिए दुकाने निर्धारित कर दी गयी हैं जिन पर कमीशन तय है और दुकानदार अभिभावकों को जी भरकर लूटते हैं। इसलिए सारे पाठ्यक्रम और सभी ड्रेस को एक जैसा किया जाना चाहिये जिससे अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक परेशानी से छुटकारा मिल सके और वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा सकें।”
स्कूलों में शिक्षकों से बीएलओ, जनगणना जैसे काम करवाये जा रहे हैं। विधान सभा चुनावों में शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ व निर्वाचन में लगाये जाने के चलते बड़ी संख्या में शिक्षक अनुपस्थित नजर आते थे जिससे स्कूल में बच्चों की पढ़ाई बाधित रही थी।
पिछली जितनी भी सरकार रही हैं उन्होंने अभिभावकों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। स्कूल प्रशासन अभिभावकों को बहुत परेशान करते हैं, इस पर लगाम लगनी चाहिये।
प्रदीप श्रीवास्तव, अध्यक्ष, अभिभावक कल्याण संघ, उत्तर प्रदेश
प्राथमिक विद्यालय सीवा, बीकेटी के प्रधानाध्यापक, विनोद कुमार कहते हैं, “स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाये। शिक्षकों को अन्य जिम्मेदारी न सौंपकर केवल बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी दी जाये जिससे वह बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकें। बीएलओ, जनगणना और चुनाव जैसी अन्य जिम्मेदारियों को निभाते हुए शिक्षक अपनी नैतिक जिम्मेदारी के प्रति उदासीन हो जाते हैं, यदि ऐसा नहीं होगा तो शिक्षकों का मन पढ़ाने में पूरी तरह से लगेगा और शिक्षा का स्तर सुधर सकेगा।”
पिछले दिनों एटा में हुए स्कूल बस हादसे में बच्चों की मौत के बाद स्कूल वाहनों के खिलाफ तीन दिवसीय अभियान चलाया गया था। इस दौरान स्कूल वाहनों की फिटनेस, लाइसेंस की जांच जारी रही लेकिन इसके रुकते ही एक बार फर वाहनों का आलम वही है। इस पर भी नयी सरकार से अपेक्षाएं की जा रही हैं।
एलयू के लिए मैं यह अपेक्षा करता हूं कि नयी सरकार एलयू के बजट में बढ़ोत्तरी के लिए सोचे, अभी जितना बजट दिया जाता है उससे कही ज्यादा सैलरी में जाता है। अगर सैलरी का बजट बढ़ा दिया जाये तो एलयू में बाकी संसाधनों से आने वाले पैसे को एलयू के डवलेपमेंट में लगाया जा सके।
प्रो. एन.के. पांडेय, लखनऊ यूनिवर्सिटी
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सुविधाएं नहीं
प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूलों में फर्नीचर की कमी बनी हुई है और छात्र टाटपट्टी पर बैठ रहे हैं। कई तरह की दक्कितों का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद भी रिक्त पड़े हैं। इनकी मांग भी नयी सरकार से की जा रही है।
लखनऊ स्थित कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य, डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं, “स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति पर्याप्त रूप में की जाये। शिक्षकों के जो पद खाली पड़े हैं उनको भरा जाये। चयन आयोग में जो भ्रष्टाचार जारी है उसको खत्म किया जाये साथ ही स्कूल व कॉलेजों में बिजली, पानी, पंखे, फर्नीचर, लैबोरेटरी जैसे संसाधनों को भी मुहैया करवाया जाये जिससे बच्चों को शिक्षित करना शिक्षकों के लिए केवल औपचारिकता न रहे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो।”
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उत्तर प्रदेश अभिभावक कल्याण संघ के अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, “पिछली जितनी भी सरकार रही हैं उन्होंने अभिभावकों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। स्कूल प्रशासन अभिभावकों को बहुत परेशान करते हैं, इस पर लगाम लगनी चाहिये। हर नये शैक्षिक सत्र में मनमाने तौर पर स्कूल फीस में बढ़ोत्तरी कर देते हैं। स्कूलों द्वारा ड्रेस, किताबों को लेने के लिए दुकाने निर्धारित कर दी गयी हैं जिन पर कमीशन तय है और दुकानदार अभिभावकों को जी भरकर लूटते हैं। इसलिए सारे पाठ्यक्रम और सभी ड्रेस को एक जैसा किया जाना चाहिये जिससे अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक परेशानी से छुटकारा मिल सके और वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा सकें।”
स्कूलों में शिक्षकों से बीएलओ, जनगणना जैसे काम करवाये जा रहे हैं। विधान सभा चुनावों में शिक्षकों की ड्यूटी बीएलओ व निर्वाचन में लगाये जाने के चलते बड़ी संख्या में शिक्षक अनुपस्थित नजर आते थे जिससे स्कूल में बच्चों की पढ़ाई बाधित रही थी।
पिछली जितनी भी सरकार रही हैं उन्होंने अभिभावकों के हित के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। स्कूल प्रशासन अभिभावकों को बहुत परेशान करते हैं, इस पर लगाम लगनी चाहिये।
प्रदीप श्रीवास्तव, अध्यक्ष, अभिभावक कल्याण संघ, उत्तर प्रदेश
प्राथमिक विद्यालय सीवा, बीकेटी के प्रधानाध्यापक, विनोद कुमार कहते हैं, “स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था की जाये। शिक्षकों को अन्य जिम्मेदारी न सौंपकर केवल बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी दी जाये जिससे वह बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकें। बीएलओ, जनगणना और चुनाव जैसी अन्य जिम्मेदारियों को निभाते हुए शिक्षक अपनी नैतिक जिम्मेदारी के प्रति उदासीन हो जाते हैं, यदि ऐसा नहीं होगा तो शिक्षकों का मन पढ़ाने में पूरी तरह से लगेगा और शिक्षा का स्तर सुधर सकेगा।”
पिछले दिनों एटा में हुए स्कूल बस हादसे में बच्चों की मौत के बाद स्कूल वाहनों के खिलाफ तीन दिवसीय अभियान चलाया गया था। इस दौरान स्कूल वाहनों की फिटनेस, लाइसेंस की जांच जारी रही लेकिन इसके रुकते ही एक बार फर वाहनों का आलम वही है। इस पर भी नयी सरकार से अपेक्षाएं की जा रही हैं।
एलयू के लिए मैं यह अपेक्षा करता हूं कि नयी सरकार एलयू के बजट में बढ़ोत्तरी के लिए सोचे, अभी जितना बजट दिया जाता है उससे कही ज्यादा सैलरी में जाता है। अगर सैलरी का बजट बढ़ा दिया जाये तो एलयू में बाकी संसाधनों से आने वाले पैसे को एलयू के डवलेपमेंट में लगाया जा सके।
प्रो. एन.के. पांडेय, लखनऊ यूनिवर्सिटी
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सुविधाएं नहीं
प्रदेश के अधिकतर सरकारी स्कूलों में फर्नीचर की कमी बनी हुई है और छात्र टाटपट्टी पर बैठ रहे हैं। कई तरह की दक्कितों का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद भी रिक्त पड़े हैं। इनकी मांग भी नयी सरकार से की जा रही है।
लखनऊ स्थित कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य, डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं, “स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति पर्याप्त रूप में की जाये। शिक्षकों के जो पद खाली पड़े हैं उनको भरा जाये। चयन आयोग में जो भ्रष्टाचार जारी है उसको खत्म किया जाये साथ ही स्कूल व कॉलेजों में बिजली, पानी, पंखे, फर्नीचर, लैबोरेटरी जैसे संसाधनों को भी मुहैया करवाया जाये जिससे बच्चों को शिक्षित करना शिक्षकों के लिए केवल औपचारिकता न रहे और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो।”
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