अमेठी (ब्यूरो)- इसे उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग का
दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि उसे हर स्तर पर धोखा ही खाना पड़ रहा है।
लोग सरकार के मुफ्त खाना मुफ्त कपड़ा किताब बस्ता सबकुछ उपलब्ध कराने के बावजूद शिक्षा व्यवस्था के अभाव में अपने बच्चे को खाना कपड़ा फीस सबकुछ झेल रहे हैं। प्रति महीना हर विद्यालय पर लाखों रूपये वेतन दिया जाता है इसके बावजूद अधिकांश प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा व घंटा विषयवार पढ़ाने के लिये शिक्षकों की समुचित व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों की कमी को पूरी करने के लिये दशकों पूर्व शिक्षा मित्रों की व्यवस्था की गयी थी।
सत्तरह सालों तक बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बावजूद अदालत द्वारा उन्हें शिक्षक पद हटा दिया गया है।शिक्षा मित्रों के पास शिक्षक बनने की योग्यता मतलब डिग्री नहीं थी लेकिन जो लोग योग्यता की डिग्री लिये शिक्षक बनने के लिये वर्षों से धरना प्रदर्शन करते घूम रहें थे और अदालत तक पहुँच गये थे उनकी योग्यता की तो पोल ही सरकारी जाँच के बाद खुल गयी है। कहिए कुशल था कि इन फर्जी डिग्री वालों को शिक्षक नहीं बनाया गया वरना वह तो शिक्षा विभाग का बेड़ा ही गर्क कर देते। जिस तरह फर्जी डिग्री बाँटने का भंडाफोड़ हुआ है उससे लगता है कि यह धंधा काफी पहले से फलफूल रहा था।अगर ऐसा रहा है तो इसे भी शिक्षा विभाग का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। इन फर्जी डिग्री वालों से शिक्षा मित्र कई गुना बेहतर हैं लेकिन इसे भी शिक्षा विभाग का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि अदालत ने शिक्षा मित्रों को अयोग्य घोषित कर दिया।
कोई समुदाय न योग्य होता है और न ही अयोग्य होता हैं उसमें कुछ लोग ही योग्य होते हैं और कुछ अयोग्य होते हैं । जब तक सरकारी प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की संख्यावार नहीं बल्कि कक्षा विषय व घंटावार शिक्षकों की व्यवस्था करनी ही होगी।यह सही है कि शिक्षा मित्रों ने विभाग की डूबती नौका को डूबने से बचा लिया था और सभी लोगों ने इसकी सराहना भी रहे है। आज उन्हीं शिक्षा मित्रों को अपने भविष्य के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।प्रदेश में हुये फर्जी डिग्री कांड पर्दाफाश हो जाने के बाद इन डिग्रियों के सहारे नौकरी माँग रहे लोगों का क्या होगा ?
रिपोर्ट – हरी प्रसाद यादव
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लोग सरकार के मुफ्त खाना मुफ्त कपड़ा किताब बस्ता सबकुछ उपलब्ध कराने के बावजूद शिक्षा व्यवस्था के अभाव में अपने बच्चे को खाना कपड़ा फीस सबकुछ झेल रहे हैं। प्रति महीना हर विद्यालय पर लाखों रूपये वेतन दिया जाता है इसके बावजूद अधिकांश प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा व घंटा विषयवार पढ़ाने के लिये शिक्षकों की समुचित व्यवस्था नहीं है। शिक्षकों की कमी को पूरी करने के लिये दशकों पूर्व शिक्षा मित्रों की व्यवस्था की गयी थी।
सत्तरह सालों तक बच्चों को बेहतर पढ़ाने के बावजूद अदालत द्वारा उन्हें शिक्षक पद हटा दिया गया है।शिक्षा मित्रों के पास शिक्षक बनने की योग्यता मतलब डिग्री नहीं थी लेकिन जो लोग योग्यता की डिग्री लिये शिक्षक बनने के लिये वर्षों से धरना प्रदर्शन करते घूम रहें थे और अदालत तक पहुँच गये थे उनकी योग्यता की तो पोल ही सरकारी जाँच के बाद खुल गयी है। कहिए कुशल था कि इन फर्जी डिग्री वालों को शिक्षक नहीं बनाया गया वरना वह तो शिक्षा विभाग का बेड़ा ही गर्क कर देते। जिस तरह फर्जी डिग्री बाँटने का भंडाफोड़ हुआ है उससे लगता है कि यह धंधा काफी पहले से फलफूल रहा था।अगर ऐसा रहा है तो इसे भी शिक्षा विभाग का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। इन फर्जी डिग्री वालों से शिक्षा मित्र कई गुना बेहतर हैं लेकिन इसे भी शिक्षा विभाग का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि अदालत ने शिक्षा मित्रों को अयोग्य घोषित कर दिया।
कोई समुदाय न योग्य होता है और न ही अयोग्य होता हैं उसमें कुछ लोग ही योग्य होते हैं और कुछ अयोग्य होते हैं । जब तक सरकारी प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की संख्यावार नहीं बल्कि कक्षा विषय व घंटावार शिक्षकों की व्यवस्था करनी ही होगी।यह सही है कि शिक्षा मित्रों ने विभाग की डूबती नौका को डूबने से बचा लिया था और सभी लोगों ने इसकी सराहना भी रहे है। आज उन्हीं शिक्षा मित्रों को अपने भविष्य के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।प्रदेश में हुये फर्जी डिग्री कांड पर्दाफाश हो जाने के बाद इन डिग्रियों के सहारे नौकरी माँग रहे लोगों का क्या होगा ?
रिपोर्ट – हरी प्रसाद यादव
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