UP teacher recruitment 2018: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले
की गाज समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 12 हजार 460 सहायक अध्यापकों
के चयन पर भी गिरी है।
न्यायालय ने बोर्ड ऑफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए
इन चयनों को रद्द कर दिया है। इन भर्तियों के लिए 21 दिसंबर 2016 को
विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि उक्त भर्तियां यूपी
बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों का पूरी तरह पालन करते
हुए नए सिरे से काउंसलिग करा के पूरी की जाएं। नई चयन प्रकिया के लिए वही
नियम लागू किए जाएंगे जो कि पूर्व में प्रकिया प्रारम्भ करते समय बनाए गए
थे। न्यायालय नई प्रकिया पूरी करने के लिए तीन माह का समय दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल
सदस्यीय पीठ ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जनों याचिकाओं की एक
साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में 26 दिसंबर 2016 के उस
नोटिफिकेशन को खारिज किए जाने की मांग की गई थी, जिसके तहत उन जिलों में
जहां कोई रिक्ति नहीं थी, वहां के अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए किसी भी
जिले को प्रथम वरीयता के तौर पर चुनने की छूट दी गई थी।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता
जेएन माथुर की दलील थी कि 26 दिसंबर 2016 के नोटिफिकेशन द्वारा नियमों में
उक्त बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद किया गया जबकि नियमानुसार
एक बार भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा
सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का तर्क था कि
नियमों में बदलाव इस लिए किया गया था ताकि काउंसलिंग में अधिक संख्या में
अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सके।
गौरतलब है कि होई कोर्ट ने 19
अप्रैल 2018 के एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त
पत्र देने पर रोक लगा दी थी। गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने
कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है
और रद्द करने लायक है।