उच्च न्यायालय ने पेंशन को रिटायर कर्मचारियों का अधिकार बताया है। न्यायालय ने कहा है कि पेंशन का लाभ न तो सरकार/नियोक्ता की इच्छा पर मिलने वाला इनाम और न ही किसी तरह का अनुदान राशि।
जस्टिस ज्योति सिंह ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि ‘पेंशन रिटायर से पहले किए गए सेव के बदले भुगतान है। उन्होंने रिटायर एक प्रोफेसर के पेंशन पर रोक लगाने के जेएनयू के फैसले को गलत ठहाराते हुए यह टिप्पणी की है।
उन्होंने कहा है कि रिटायर होने के बाद मिलने वाली पेंशन सहित अन्य सुविधाएं कर्मचारी अधिकार होता है और यह पिछली सेवा के बदले का भुगतान है। न्यायालय ने कहा है कि पेंशन व अन्य सुविधाएं रिटायर कर्मचारी के सामाजिक कल्याण के लिए होती है जो उसने अपने जीवन के सुनहरे दिनों में नियत समय पर काम करते हुए कमाई गई राशि है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने जेएनयू को चार सप्ताह के भीतर सेवानिवृत्त प्रो. कुणाल चक्रवर्ती को भविष्य निधि सहित सभी अन्य वित्तीय सुविधाओं का भुगतान करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, न्यायालय ने सेवानिवृत्ति के दिन से इस रकम पर 9 फीसदी ब्याज भी देने का आदेश दिया है।
हालांकि उच्च न्यायालय ने यह भी साफ किया है कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ गंभीर अनुशासानात्मक कार्रवाई के आधार पर उक्त भत्तें रोके जा सकते हैi न्यायालय ने कहा है कि जहां तक इस मामले के सवाल है तो इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके आधार पर पेंशन और भविष्य निधि रोका जा सके
उच्च न्यायालय के कहा है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ न तो अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित है और न ही उन्हें निलंबित किया गया। उच्च न्यायालय ने कहा है कि याचिकाकर्ता पर जेएनयू ने 31 जुलाई, 2018 को अन्य शिक्षकों के साथ एक दिन की हड़ताल में शामिल होने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा है कि जेएनयू ने सितंबर, 2018 को इस मामले में प्रो. चकवर्ती को कारण बताओ नोटिस जारी किया है, लेकिन अभी तक आरोप पत्र नहीं दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे में पेंशन पर रोक लगाना उचित नहीं है।
मई, 2019 में सेवानिवृत होने के बाद प्रो. चक्रवर्ती ने जेएनयू प्रशासन के पास पेंशन सहित रिटायर के सभी लाभ के लिए आवदेन किया। लेकिन जेएनयू ने कारण बताओ नोटिस जारी होने के हवाला देते हुए उन्हें पेंशन व अन्य लाभ नहीं दिया।