बदलाव की आस में टूटती रहीं उम्मीदें: भर्ती, साक्षात्कार आदि रिजल्ट रोकने व आयोगों के पुनर्गठन पर दिखा उत्साह, पारदर्शिता के नाम पर देरी, अफसरों के मनमाने निर्णयों से हर ओर निराशा

इलाहाबाद : योगी सरकार को मिले प्रचंड बहुमत के पीछे बदलाव की बड़ी आस रही है। शायद इसीलिए जब सरकार ने चल रही भर्तियां, साक्षात्कार व परीक्षा परिणाम रोका तो किसी ने विरोध नहीं किया, बल्कि हर कोई उत्साह से लबरेज ही दिखा।

कुछ अंतराल बीतने के बाद सरकार के अगले कदम का इंतजार शुरू हुआ, जो अब तक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। नियमावली बदलने व पारदर्शिता के नाम पर अफसरों ने इतना समय लिया कि आशाएं निराशा में बदल गईं, जो जयकारे लगा रहे थे, वही विरोधी नारे लगाने लगे। आयोग व शिक्षा महकमे के कार्यालय आंदोलनस्थली बन गए। नई सरकार के तमाम निर्णय लागू होने से पहले ही कोर्ट की कसौटी पर कसे गए।
कार्यवाहक जमे, अपने दरकिनार : बेसिक शिक्षा निदेशक रहे दिनेश बाबू शर्मा 28 फरवरी 2016 को रिटायर हुए। इस पर नई नियुक्ति न करके कार्यवाहक से काम चलाया जा रहा है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक को सेवा विस्तार दिया गया है। वहीं, कई अपर निदेशक, चयन बोर्ड सचिव सहित अन्य पद अब कार्यवाहकों के भरोसे हैं। मंडलों में तैनात अफसरों को अतिरिक्त प्रभार मिले हैं। बीएसए व डीआइओएस जैसे पदों पर अधिकांश वही अफसर तैनात हैं, जो सपा व बसपा शासन में दूसरे जिलों में रहे हैं। भाजपा समर्थक अफसर हाशिए पर हैं। शिक्षकों के तबादलों में भी मनमाने आदेश कोर्ट तक पहुंचे इससे आठ माह बाद भी तबादले नहीं हो सके हैं। प्राथमिक स्कूलों में 2011 भर्ती में नियुक्ति पाने वाले 803 शिक्षक कई बार निदेशालय पर आंदोलन कर चुके हैं, क्योंकि उन्हें अब तक मौलिक नियुक्ति नहीं मिली है, जबकि कार्य सामान्य आदेश से काफी पहले ही हो जाना चाहिए था।
चयन बोर्ड ठप, उच्चतर रेंग रहा : नया शैक्षिक सत्र शुरू होने में चंद दिन शेष हैं लेकिन, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का अब तक गठन नहीं हो सका है। भाजपा सरकार बनने के कई माह बाद अध्यक्ष व सदस्यों ने इस्तीफा दिया, नई टीम गठन को आवेदन लिए जा चुके हैं। पुनर्गठन की कई तारीखें दी गई है, एक भी सही नहीं उतरी। ऐसे ही उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का पिछले माह दोबारा गठन हुआ है। नई टीम दो बैठकें भी कर चुकी है, पुरानी और नई भर्तियों की तस्वीर स्पष्ट नहीं है।

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