नए शैक्षिक सत्र से कई राज्य स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की
तैयारी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार े भी अंग्रेजी माध्यम के पांच हजार
सरकारी स्कूल चलाे का एलान किया है। तर्क है कि अभिभावक ही अंग्रेजी माध्यम
स्कूलों की मांग कर रहे हैं और इसी कारण वह हिंदी माध्यम स्कूलों को
अंग्रेजी माध्यम में बदल रही है।
इस पर यह प्रश् उठेगा ही कि आखिर अभिभावक
अंग्रेजी की क्यों मांग कर रहे हैं? और क्या ऐसी मांग को पूरा करा राज्य और
देश के हित में है? आज अंग्रेजी व्यवसाय, ौकरी और विज्ञा एवं तकीक से जुड़
गई है। इस सबके फलस्वरूप वह समाज में सम्मा का प्रतीक ब गई है। ऐसे में
अंग्रेजी की ओर रुझा स्वाभाविक ही लगता है, लेकि हम यह हीं पहचा रहे हैं कि
अंग्रेजी के महत्व का एक भ्रम जाल सा फैलाया गया है। इसकी जड़ में सरकार
की गलत ीतियां हैं। भारत में अंग्रेजी का वर्चस्व वैश्विक अिवार्यता के
कारण हीं है। विश्व के समृद्ध देश अपी-अपी भाषाओं का प्रयोग कर रहे हैं और
िज भाषा ही उकी उ्ति का मूल है। मुङो विश्व के करीब 35 देशों में जाे का
अवसर मिला और मैंे यह पाया कि हर एक विकसित देश अपी भाषा के आधार पर आगे
बढ़ रहा है। कोई भी विकसित देश ज भाषाओं को छोड़कर किसी गैर भाषा के प्रयोग
से विकसित हीं हुआ। हर विकसित देश तकीक-विज्ञा और व्यवसाय में ज भाषा का
प्रयोग कर रहा है। अपी ही भाषा के आधार पर इ देशों में ौकरियां भी मिलती
हैं और उच्च कोटि का शोध भी होता है। आखिर इस सबके बावजूद भारत में
अंग्रेजी का बोलबाला क्यों है?अंग्रेजी-माध्यम के स्कूलों में बच्चों को
पढ़ाे की होड़ क्यों है? यह इसलिए है, क्योंकि सरकार की ीतियों े अंग्रेजी
को ऊंचे ओहदे पर कायम रखा है। 1सरकार उच्च कोटि के सभी संस्था आइआइटी,
आइआइएम, एम्स इत्यादि केवल अंग्रेजी माध्यम में चलाती है। सरकार की ीति के
कारण ही अधिकतर उच्च ्यायालय और सर्वोच्च ्यायालय केवल अंग्रेजी में कार्य
करता है। भारत सरकार अधिकतर परीक्षाओं में अंग्रेजी को माध्यम ही हीं बाती,
अपितु अिवार्य भी करती है। एसएससी जैसी परीक्षा के लिए भी अंग्रेजी
अिवार्य है। इसका परिणाम यह िकलता है कि विद्यार्थियों का सबसे अधिक
परिश्रम विषय समझे की जगह अंग्रेजी से जूझे में िकल जाता है। यह भावुक बात
हीं है, बल्कि वैज्ञािक सत्य है। अेक वैज्ञािक शोध यह साबित कर चुके हैं कि
मातृभाषा में पढ़े से बच्चे की बुद्धि का सबसे अच्छा विकास होता है। दशकों
से यूेस्को का भी यही विमर्श है। भारत में भी हाल में आइबीसी के शोध े
साबित किया कि आंध्र प्रदेश में तेलुगु माध्यम में पढ़ रहे बच्चों की
विज्ञा और गणित की समझ अंग्रेजी-माध्यम में पढ़ रहे बच्चों से कहीं अच्छी
थी। जापा, रूस, ची आदि देश अपी भाषा में उच्च शिक्षा देे के कारण ही बहुत
तेजी से विज्ञा और तकीक में प्रगति इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि वहां
छात्रों को अपी भाषा में विषय को समझे में आसाी होती है। इसके विपरीत देश
में अंग्रेजी का वर्चस्व विकास का सबसे बड़ा अवरोधक ब गया है। हम देश की
बुद्धि का हरण कर रहे हैं और अंग्रेजी लाद कर बच्चों को मासिक विकलांग बा
रहे हैं। इ गलत ीतियों के कारण ही अभिभावक अंग्रेजी के पीछे दौड़ रहे हैं।
समस्या अभिभावकों की हीं है, समस्या गलत व्यवस्था की है। आखिर इसका समाधा
क्या है? हर स्तर पर भारतीय भाषाओं का विकल्प होा चाहिए,चाहे वह प्रबंध की
पढ़ाई हो या चिकित्सा की अथवा तकीक की। सरकार को भाषा को व्यवसाय से जोड़ा
होगा। 1हर राज्य सरकार एला कर सकती है कि सभी िजी उद्योग सरकार से संवाद
केवल उस प्रदेश की भाषा में करें। इससे भाषा की मांग बढ़ेगी। िजी उद्योग
भारतीय भाषाओं में समा अवसर प्रदा करें, इसे भी ीतिगत रूप से लागू किया जा
सकता है। कुछ समय के लिए भारतीय भाषा के माध्यम में पढ़े लोगों को सरकारी
ौकरी में कुछ प्रतिशत आरक्षण भी दिया जा सकता है। यह भी आवश्यक है कि
भारतीय भाषाओं को तकीक के साथ जोड़ा जाए। आज जब कोई बच्चा स्कूल में
कंप्यूटर सीखता है तो केवल अंग्रेजी में। वह भारतीय भाषाओं में टाइप करा तक
हीं जाता। अपी भाषा में तकीक की जाकारी से सृज शक्ति बढ़ेगी, ए-ए आविष्कार
होंगे। भाषा को केवल पुरात संस्कृति या साहित्य ही हीं, आधुिकता का भी
वाहक बाा अिवार्य है। अंग्रेजी सीखे में कोई आपत्ति हीं है। सरकार अपे
स्कूलों में भाषा के रूप में अंग्रेजी सिखाए। समस्या तब आती है जब अंग्रेजी
को माध्यम बा दिया जाता है। जब बच्चे को भाषा ही हीं आती तो वह उस भाषा
में कोई अ्य विषय कैसे सीखेगा? क्या सरकार े इस पर वैज्ञािक रूप से कोई शोध
किया है? सरकारें आठवीं कक्षा में अंग्रेजी माध्यम सरकारी स्कूलों को
हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूलों से माप लें। कि स्कूलों के बच्चे गणित को
ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं?1मैंे अेक वर्षो तक कई देशों में कंप्यूटर के
क्षेत्र में सक्रियता से काम किया है। आज इजरायल कंप्यूटर में बहुत आगे है।
वहां पर तकीक की पढ़ाई हिब्रू भाषा में होती है। मैंे माइक्रोसॉफ्ट में
रूस के कंप्यूटर इंजीियरों को ौकरी दी। उ्हें के बराबर अंग्रेजी आती थी,
लेकि कंप्यूटर विज्ञा में अंग्रेजी हीं, बल्कि गणित और तर्क की समझ चाहिए।
आज ची चीी भाषा में कंप्यूटर विज्ञा की शिक्षा देकर अमेरिका से भी आगे िकल
रहा है। गणित और तर्क की इस दुिया में अपे बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में
धकेलकर हम उ्हें पीछे ही रख रहे हैं। 1यदि भारत सरकार हर राजकीय भाषा में
एक-एक आइआइटी और आइआइएम खोल दे तो भारतीय भाषाओं का दर्जा और समाज में उसके
प्रति रुचि तत्काल बढ़ जाएगी। कल को अगर उत्तर प्रदेश सरकार एला कर दे कि
िजी उद्योगों के टेंडर केवल हिंदी में ही मा्य होंगे तो अगले दि ही िजी
उद्योगों में हिंदी की मांग बढ़ जाएगी और इसी के साथ सभी की रुचि हंिदूी के
प्रति बढ़ जाएगी। सबसे बड़ी जसंख्या वाला प्रांत उत्तर प्रदेश यदि एक देश
होता तो आबादी के लिहाज से विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश होता। इससे कहीं
छोटे-छोटे देश अपी भाषाओं में सब काम कर रहे हैं। विश्व की वास्तविकता
अंग्रेजी हीं है। विश्व के तमाम बहुराष्ट्रीय उद्योग भी अंग्रेजी पर आधारित
हीं हैं। वैश्वीकरण अंग्रेजीकरण हीं है। हमे भारतेंदु हरिश्चंद्र की इ
पंक्तियों को केवल भावुक ही मा लिया-िज भाषा उ्ति अहै, सब उ्ति को मूल। यह
केवल भाव हीं, एक वैज्ञािक तथ्य है। यह एक भ्रम समाज में व्याप्त हो गया है
कि अंग्रेजी से ही हमारी उ्ति होगी। सरकार का काम इस भ्रम को दूर करा है
कि उसमें शामिल होा, लेकि उस राष्ट्रवादी सोच की सरकार को क्या कहें जो अपे
पैर पर कुल्हाड़ी मार अपी जड़ें काटे पर तुली है? सरकार को अंग्रेजी की
भेड़-चाल छोड़ एक वैज्ञािक दृष्टिकोण अपाे की आवश्यकता है। 1(लेखक आइआइटी
स्ातक, माइक्रोसॅाफ्ट के पूर्व अधिकारी और भारतीय भाषाओं में विज्ञा की
पुस्तकों के प्रकाशक हैं)
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