फीरोजाबाद: शहर से मात्र तीन किमी टूंडला
रोड पर पड़ने वाले एक शिक्षक परेशान हैं। टूंडला ब्लॉक में आने वाले इस
स्कूल पर एनपीआरसी से किताबें लेने के लिए फोन आया तो किताबें लेने पहुंचे।
टैंपों ने स्कूल तक किताबें लाने के लिए 80 रुपये का भाड़ा लिया। इस
धनराशि को शिक्षक किसी खर्च में भी नहीं डाल सकते हैं, वजह साफ है।
सरकार
किताबों की ढुलाई स्कूल स्तर तक करने के लिए विभाग को भुगतान करती है तो
टेंडर भी स्कूल तक किताबें पहुंचाने के नाम पर निकाला जाता है, लेकिन इसके
बाद भी किताबें सिर्फ एनपीआरसी पर उतार दी जाती हैं। जिले भर में किताबों
का वितरण चल रहा है। इसके लिए बीते दिनों विभाग ने बाकायदा टेंडर उठाया।
किताबें एनपीआरसी स्तर पर पहुंच गई हैं, लेकिन वहां से शिक्षकों को फोन कर
बुलाया जा रहा है। शिक्षकों से कहा जा रहा है कि वह अपने वाहन से आएं तथा
किताबें उठा ले जाएं। ऐसे में शिक्षक परेशान हैं। कोई टैंपों बुलाता है तो
आसपास के शिक्षक रेहड़ी या रिक्शा लेकर किताबें लेने के लिए पहुंच रहे हैं।
देहात क्षेत्र में स्कूल दूर-दूर होने के कारण शिक्षकों को टैंपों भी नहीं
मिलते हैं। ऐसे में परिचितों के वाहन मांग कर किताबें ले जानी पड़ रही
हैं।
मार्ग में पड़ने वाले स्कूलों पर भी
नहीं उतारी किताबें : हकीकत में स्थिति यह है हर न्याय पंचायत में आधे से
ज्यादा स्कूल रास्ते में पड़ते हैं। जहां पर अगर किताबें उतारी जाती तो
विभाग पर अतिरिक्त खर्च भी नहीं पड़ता। टूंडला न्याय पंचायत में पड़ने वाले
कई स्कूल टूंडला तक के रास्ते में पड़ जाते हैं, ऐसे ही अगर फीरोजाबाद नगर
क्षेत्र में 30 फीसद स्कूल दबरई से यूआरसी के रास्ते में ही पड़ते हैं,
लेकिन यहां भी किताबें नहीं उतारी। अगर एनपीआरसी अपने स्तर पर किताबों को
वहां से पैक कराने के बाद में उतरवाते तो परेशानी नहीं होती।
छोटी गाड़ियों की क्यों ली जाती है
रेट : विभाग द्वारा पुस्तकों की ढुलाई के लिए जो टेंडर निकाला गया था,
उसमें अंकित था कि पुस्तकों की सप्लाई ब्लॉक, न्याय पंचायत एवं विद्यालय
स्तर तक की जानी है। किताबों की सप्लाई ब्लॉक एवं एनपीआरसी स्तर तक तो की
जा रही है, लेकिन स्कूलों तक किताबें नहीं पहुंचाई जा रही हैं। जबकि विभाग
द्वारा बड़ी गाड़ी एवं छोटी गाड़ी के हिसाब से टेंडर लिए जाते हैं। छोटी
गाड़ी से न्याय पंचायत तक किताबें पहुंचना संभव नहीं है। आखिर फिर छोटी
गाड़ी की रेट क्यों ली गई? शिक्षकों को किताबें लेकर आने में अपनी जेब से
धनराशि खर्च करनी पड़ती है। विभाग टेंडर उठाता है तो स्कूल तक किताबों को
पहुंचाना चाहिए। हम अधिकारियों से बात करेंगे।डॉ.शौर्यदेव मणि यादव,
जिलाध्यक्ष, प्राथमिक शिक्षक संघ
किताबों की ढुलाई का पैसा कम मिलता
है लिहाजा एनपीआरसी तक किताबें पहुंचाई जा रही हैं, ज्यादा जानकारी
कोऑर्डिनेटर के पास में होगी। बैजनाथ सिंह, सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी
सर्व शिक्षा अभियान, फीरोजाबाद
कुछ स्कूलों तक भी किताबें पहुंचाई
जा रही हैं। अधिकांश किताबें एनपीआरसी तक पहुंची हैं। अधिकांश स्कूलों में
किताबें बंट चुकी हैं।हरिश्चंद्र, कोऑर्डीनेटर बालिका शिक्षा