प्रदेश सरकार ने परिषदीय स्कूलों को कान्वेंट की टक्कर का बनाने की ठान
ली है। इन स्कूलों को बिजली, पेयजल और बैठने की सुविधाओं से लैस कर पढ़ाई
का वातावरण बनाया जाएगा।
अभी करीब 47 हजार स्कूलों में बिजली लगनी बाकी है।
करीब साढ़े तीन हजार स्कूलों में पेयजल की सुविधा देना बाकी है जबकि एक
स्कूल भवन का करीब 36 हजार रुपये के खर्च से विद्युतीकरण कराया जाएगा। करीब
36 हजार स्कूलों में बेंच-डेस्क नहीं हैं, इसलिए पहले चरण में 18 हजार
उच्च प्राथमिक स्कूलों में बेंच और डेस्क मुहैया कराने का निर्णय किया गया
है। प्रत्येक स्कूल को 35 डेस्क-बेंच उपलब्ध कराई जाएगी। इन सुविधाओं के
बाद ये स्कूल इस स्थिति में होंगे इनमें बच्चों को आकर्षित किया जा सके।
बार-बार बात उठती है कि सरकारी अधिकारी-कर्मचारी बच्चों को परिषदीय स्कूलों
में नहीं पढ़ाते। वाकई सरकार से जुड़े अभिभावकों को सरकारी स्कूलों का
सम्मान करना चाहिए। जून के अंत में स्कूलों को जायजा लिया गया तो कई तरह की
दुश्वारियां देखने को मिलीं। कहीं रसोई घर में बैल बंधे मिले, तो कहीं
रास्ता ही कीचड़ से भरा हुआ है, कहीं दरवाजे-खिड़कियां गायब तो कहीं छत टपक
रही है। सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों को स्कूलों तक लाने के
लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं। ऐसा
नहीं कि परिषदीय स्कूलों के शिक्षक प्रशिक्षित नहीं हैं। दरअसल लोगों में
इनके प्रति कुछ विरक्ति सी पैदा हो गई है। इसलिए देखने में आता है कि इन
स्कूलों में नाम पंजीकृत कराने के बाद बच्चा किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई
पूरी करता है। यूनीफार्म, टाई प्राइवेट स्कूल की और छात्रवृत्ति एवं अन्य
सुविधाएं सरकारी स्कूल की। अगर सरकार की नई योजना मूल स्वरूप में लागू हो
जाए तो हालात बदल सकते हैं। फिलहाल इन स्कूलों की इमारतों को निजी स्कूलों
की तरह ही साफ-सुथरा बनाना होगा, वहां बैठने के उचित संसाधन उपलब्ध कराने
होंगे तथा बिजली, पेयजल और शौचालय की उचित व्यवस्था करनी होगी। गांववासियों
को भी स्कूल की गतिविधियों में शामिल होकर शिक्षकों पर विश्वास करना होगा।
तब ये परिषदीय स्कूल भी बच्चों से गुलजार रहेंगे।
