आगरा(जागरण संवाददाता): शिक्षक भर्ती घोटाले में बाहर की कमेटी के गठन
के बाद अब भ्रष्टाचार की परतें उधड़ने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। जांच में
2008 से लेकर 2015 तक तैनात रहे अफसरों और पटल बाबुओं की गर्दन फंस सकती
है।
मथुरा में शिक्षक भर्ती घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद यह तय हो गया
था कि आगरा सहित अधिकांश जिलों में पैसे लेकर फर्जी डिग्री धारकों को
शिक्षक के तौर पर नियुक्ति दी गई। आगरा में फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर
अध्यापक, अध्यापिकाओं की अनियमित रूप से की गई नियुक्तियों की जांच
रिपोर्ट कमेटी को 15 दिन में सौंपनी है। जांच कमेटी को बिंदुवार जांच आख्या
देने को कहा गया है। इधर, डायट प्राचार्य, बीएसए, वित्त एवं लेखाधिकारी को
जांच में सहयोग करने के भी निर्देश दिए गए हैं।
फर्जी डिग्रियों से बने थे शिक्षक:
2008 से लेकर 2015 तक हुई शिक्षक भर्तियों में घोटाले किए गए। पूर्व
में इसका राजफाश एसआइटी की रिपोर्ट पर किए गए सत्यापन में हो चुका है। इसके
अलावा संभावना है कि देश के अन्य विश्वविद्यालयों के नाम के फर्जी प्रमाण
पत्रों के आधार पर भी अनियमित नियुक्तियां की गई हों। जानकारों का कहना है
कि एसआइटी की रिपोर्ट के मुताबिक 543 फर्जी शिक्षक बताए गए थे। जबकि विभाग
ने 241 फर्जी शिक्षकों की पुष्टि की थी। लेकिन कार्रवाई एक भी शिक्षक पर
नहीं की गई थी। जानकारों के मुताबिक वर्तमान में फर्जी प्रमाण पत्रों के
आधार पर करीब 1500 शिक्षक कार्यरत हैं।
दो बाबू फिर चर्चा में:
शिक्षक भर्ती घोटाले का जिक्र होते ही बेसिक शिक्षा विभाग के दो बाबुओं
की चर्चा शुरू हो गया है। एक बाबू शिक्षक भर्ती के दौरान कार्यालय में
सक्रिय रहा था। जबकि दूसरा बाबू सहायता प्राप्त स्कूलों की गई नियुक्तियों
का कार्य देखता रहा है।
सफदपोशों से थी जुगलबंदी:
2008 से 2015 तक बेसिक शिक्षा विभाग में रहे अफसरों की सफेदपोश लोगों
से भी जुगलबंदी थी। वे सत्ताधारी दलों के नेताओं के यहां आते जाते रहते थे।