जरूरी भर्तियां: सरकार ने अब आंगनबाड़ी केंद्रों के रिक्त पदों की ओर दिया ध्यान, ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के मिलेंगे अवसर

 भर्तियों की श्रृंखला में सरकार ने अब आंगनबाड़ी केंद्रों के रिक्त पदों की ओर ध्यान दिया है तो इससे न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे, बल्कि कुपोषण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों को भी

गति मिलेगी। आंगनबाड़ी केंद्रों को एक तरह से शिशुओं और गर्भवती महिलाओं के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से अधिक महत्वपूर्ण रूप में देखा जा सकता है, जहां कार्यकर्ता न सिर्फ उनकी उचित देखभाल करते हैं, बल्कि उन्हें स्वास्थ्य के नजरिए से उचित परामर्श हासिल होता है। पिछले कुछ वर्षो में यदि गांव की महिलाओं में अपने स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा हुई है तो इसका बहुत कुछ श्रेय आंगनबाड़ी केंद्रों को दिया जा सकता है। आंगनबाड़ी केंद्रों में तैनात महिलाओं के कार्य और दायित्व पर कहीं-कहीं सवाल जरूर उठते रहे हैं फिर भी यह कहा जा सकता है कि कुपोषण के खिलाफ इन कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका रही है। इसके अलावा महिलाओं को जागरूक करने में भी उनका अविस्मरणीय योगदान है। बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग की तो अधिकांश योजनाओं की सफलता आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर ही टिकी है।



प्रदेश में आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या 1,89,789 है। इन केंद्रों पर मातृ समितियों के माध्यम से तीन से छह वर्ष तक की आयु के बच्चों को गरम पका-पकाया खाना (हाट कुक्ड फुड) उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा कार्यकर्ता महिलाओं को बच्चों के लालन पालन, स्वास्थ्य, सफाई एवं सामान्य बीमारियों के संबंध में शिक्षित करती हैं। यह अचरज की बात है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका के बाद भी उनके 53 हजार पद अभी तक रिक्त चल रहे थे। जब किसी विभाग में पद रिक्त होते हैं तो उस विभाग की योजनाओं पर इसका सीधा असर पड़ता है। उत्तर प्रदेश ने मातृ और शिशु मृत्यु दर को आंशिक रूप से कम जरूर किया है, लेकिन अभी वह लक्ष्य नहीं हासिल हो सका है, जो अपेक्षित है। इसका एक कारण भर्तियां न होने को भी माना जा सकता है। अब भर्तियों की गाड़ी आगे बढ़ी है तो माना जाना चाहिए कि सरकार की योजनाओं को भी गति मिलेगी।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कुपोषण दूर करने में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका रही है। गांवों में महिलाओं को जागरूक करने में भी इनका उल्लेखनीय योगदान रहा है